दे नव हर्ष, दे नव विमर्श
खेत को नव खाद दे, अन्न को नव स्वाद
मेहनत को मान दो, खलिहान को अनाज
मंदिर दो, तो पूजा भी दो
दिल दो ऐसा जिसमें दूजा भी हो
नभ को सीमा दो, वन को विस्तार
आंखों को कल्पना दो , प्यार को संसार
ओ नव वर्ष, ओ नौ वर्ष !
दे नव हर्ष, दे नव विमर्श
मेहनत को मान दो, खलिहान को अनाज
मंदिर दो, तो पूजा भी दो
दिल दो ऐसा जिसमें दूजा भी हो
नभ को सीमा दो, वन को विस्तार
आंखों को कल्पना दो , प्यार को संसार
ओ नव वर्ष, ओ नौ वर्ष !
दे नव हर्ष, दे नव विमर्श
नदी में जल हो, जल में हो जीवन
पर्वत में प्राण हो, आंगन में बचपन
धन को धैर्य दो, लोभ को लगाम
दारिद्रय के जंगल से निकले हर इंसान
पर्वत में प्राण हो, आंगन में बचपन
धन को धैर्य दो, लोभ को लगाम
दारिद्रय के जंगल से निकले हर इंसान
ओ नव वर्ष, ओ नौ वर्ष !
दे नव हर्ष, दे नव विमर्श
दे नव हर्ष, दे नव विमर्श
2 टिप्पणियां:
सुंदर रचना. "लोभ को लगाम दो" यही सुख शांति का बीज मंत्र है.
नव वर्ष आपके और आपके परिवार के लिए मंगलमय हो. ईश्वर आपकी झोली में खुशियाँ ही खुशियाँ भर दे.
http://mallar.wordpress.com
नये साल की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ
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