शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

... अब क्या बताऊं आपको

दहाये हुए देस का दर्द - 24
जाने कितने मुद्दत पहले कोशीमारों ने कोई अच्छी खबर सुनी थी। अच्छी खबर सुनने के लिए कोशीमारों के कान तरस कर रह गए हैं । बाढ़ की मार से बचने वाले हर शख्स की जुबान पर इन दिनों एक ही सवाल है कि कब तक बंध जायेगा कुसहा का कटान ? बाढ़ के समय तूफान की तरह आने वाले छद्म शुभचिंतक-मददगार और छद्म फरिश्ते आंधी की तरह उड़ चुके हैं। अब तो सिर्फ उदासियों का सिलसिला ही शेष रह गया है गया है, जो बंजर हो चुके खेतों को देखकर श्मसानी हो जाता है तो कभी बहे घरों के खड़े खूंटे को देखकर मुर्दनी में तब्दील हो जाता है। शायद इसलिए या फिर इंसानी जिजीविषा की खातिर शहर से लौटने वाले हर व्यक्ति से आजकल कोशी क्षेत्र में जो पहल सवाल पूछा जाता है वह है- बाबू कि हाल छै कुसहा कें? कहिया तक बंधतै कोशी कटान ? (बाबू क्या हाल है कुसहा का ? कब तक कटाव को बांधा जायेगा)। अगर संयोग से शहर से गांव पहुंचने वाला शख्स पेशे से पत्रकार हो, तो फिर क्या कहना। गली-कूचे, चौक-बाजारों में लोग उनके रास्ते रोक लेते हैं। उनकी जिज्ञाशा कोशी से भी ज्यादा प्रचंड है। वैसे यही सवाल वे अपने मुखिया व विधायकों से भी पूछ रहे हैं, लेकिन उनके जवाब पर एक पैसा भरोसा भी नहीं करते हैं।
राह-बाट चलते मैं भी नेतानुमा बयान देकर अपना पिंड छुड़ा लेता हूं। शायद यह सोचकर कि जीने के लिए कोई उम्मीद तो हर किसी को चाहिए। अगर ये लोग यह सोचकर भी दिन गुजार लेते हैं कि अगले साल तक उनके खेतों से नदी हंट जायेगी और उनकी बिखर चुकी दुनिया फिर से संवर जायेगी, तो उनका दिल क्यों तोड़ा जाय। लेकिन कुसहा में कुछ और हो रहा है। वहां कच्छप गति से काम चल रहा है। कटाव के भराव के कार्य की गति को देखकर तो इस बात की संभावना काफी कम है कि अगामी बरसात के मौसम से पहले इसे ठीक कर लिया जायेगा और नदी को पुरानी धारा में लौटायी जा सकेगी। कटाव को बांधना तो दूर अभी तक पायलट चैनल का काम भी अधूरा है। तीन बार काम रोका जा चुका है। वशिष्ठा कंपनी को तटबंध को बांधने का कार्यादेश मिले दो महीने से ज्यादा हो चुके हैं। योजना के अनुसार नदी को पुरानी धारा में लौटाने के लिए 14 किलोमीटर के पायलट चैनल के निर्माण का कार्य 10 दिसंबर तक पूरा कर लिया जाना था। लेकिन 4 दिसंबर तक बामुश्किल साढ़े चार किलोमीटर का चैनल भी नहीं बन सका है। कटाव को भरने के लिए कंपनी और सरकार के बीच में जो समझौते हुए थे उसके मुताबिक 300 टिपर, 40 एक्सकेवेटर और 8 वाइवरेटर मशीन-संयंत्र की मदद ली जानी थी। लेकिन अभी तक कंपनी सिर्फ 50 टिपर 8 एक्सकेवेटर और दो वाइवरेटर ही हासिल कर पायी है। जब यही सवाल सरकार की ओर से कार्य की निगरानी कर रहे मुख्य अभियंता श्यामानंद प्रसाद से मैंने पूछा तो उन्होंने भी स्वीकार किया कि काम काफी सुस्त गति से चल रहा है। बकौल प्रसाद- मैंने कार्य की सुस्ती की रिपोर्ट उच्च अधिकारी को दे दी है। वास्तव में कार्य की रफ्तार काफी कम है।
अब कोई क्या बताये उन निरीहों को, जो पूछते हैं कि कब तक बंध जायेगा तटबंध ! क्या सरकार यह नहीं समझ रही कि कोशी दो बार समय नहीं देती। अगर बरसात से पहले कटाव को नहीं भरा गया तो एक और जल प्रलय तय है। हां, एक बात और है- अगर बरसात तक कार्य पूरा नहीं हुआ, तो आधे-अधूरे कार्य के नाम बेहिसाब राशि जरूर आवंटित हो जायेगी। यहां पर यह सवाल भी खड़ा होता है कि कहीं देरी जानबूझकर तो नहीं की जा रही ! कोशी के नाम पर खरबों रुपये गबन करने वाले के लिए यह कोई असंभव कार्य नहीं है। उनकी जीभ कोशी के रक्त पीने के अभ्यस्त हैं। मालूम नहीं कब उनकी जीभ लपलपाने लगे और वे कौन-सी योजना बना डालें।

1 टिप्पणी:

mala ने कहा…

आपके विचार बहुत सुंदर है , आप हिन्दी ब्लॉग के माध्यम से समाज को एक नयी दिशा देने का पुनीत कार्य कर रहे हैं ....आपको साधुवाद !
मैं भी आपके इस ब्लॉग जगत में अपनी नयी उपस्थिति दर्ज करा रही हूँ, आपकी उपस्थिति प्रार्थनीय है मेरे ब्लॉग पर ...!