ताकत खोने का ग़म क्या होता है यह कोई रूस से पूछे। चार दशक तक दुनिया की महाशक्ति कहलाने वाला रूस पिछले लगभग सोलह वर्षों से इस ग़म को ढो रहा है। लेकिन एक बार फिर वह अपनी बिखरी हुई शक्ति को समेटने में लग गया है। रूस ने अपने पुराने पड़े हथियारों की जंग छुड़ाना शुरू कर दिया है। सुसुप्तावस्था में पड़ी रूस की सामरिक नीतियां पुनः सक्रिय होती दिख रही हैं। जैसे-जैसे उसकी अर्थ-व्यवस्था पटरी पर आ रही है वैसे-वैसे उसके हौसले बुलंद हो रहे हैं। पिछले दो वर्षों में रूस ने जिस बेफिक्री के साथ अपनी सामरिक नीतियों में बदलाव किया है उससे साफ जाहिर हो रहा है कि रूसी नेताओं को अब एक ध्रुवीय अमेरिकानीत दुनिया कबूल नहीं ।
इन्हीं वज़हों से र्स्टाट-1, स्टार्ट-2 (स्ट्रेटजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटि) और आइएनएफ ट्रीटि (इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्सेस ट्रीटि-1987) जैसे समझौते में रूस की कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं रह गयी है। जबकि सोवियत संघ के पतनोपरान्त स्थगित हुए हथियार परीक्षण कार्यक्रम को उसने तेज़ी से अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है। इसके कारण संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो (नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटि ऑरगेनाइजेशन) के कान खड़े हो गये हैं। पश्चिमी मीडिया ने तो लिखना शुरू कर दिया है कि रूस ने शीत युद्ध-2 की शुरूआत कर दी है। वैसे इस बार रूस के मुकाबले नाटो के देशों को खड़ा किया जा रहा है। पिछले दिनों यह चर्चा और तेज़ हो गयी जब रूस का एक टोही विमान इंग्लैंड की हवाई सीमा में प्रवेश कर गया। इसके अलावा ईरान मसले पर रूस ने जब अमेरिका का साथ देने से साफ इनकार कर दिया तो अमेरिकी मीडिया ने लिखा कि रूस दूसरे शीत युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा है। इस चर्चा में तब और गर्माहट आ गयी जब अमेरिकी मीडिया में ही ख़बर आयी कि रूस यामताउ पर्वत श्रृंखला में अवस्थित दो रहस्यमय भूमिगत शहरों में हथियारों का जखीरा जमा कर रहा है। अमेरिकी मीडिया ने रूस के एक बर्खास्त केजीबी अधिकारी के हवाले से कहा कि इन भूमिगत शहरों में नाभिकीय हथियारों को प्रतिस्थापित किया जा रहा है। ख़बरों में यह भी कहा गया कि इन दोनों शहरों के कायाकल्प के लिए रूस ने पच्चीस हजार मजदूरों को काम पर लगा रखा है। उल्लेखनीय है कि शीत युद्ध के जवाने से ही यामताउ पर्वत श्रृंखला के अंदर बने इन तथाकथित भूमिगत शहरों का जिक्र हो रहा है। लेकिन तमाम बहस और कयास के बावजूद आजतक इन शहरों की असलियत दुनिया के सामने नहीं आ पायी । सोवियत संघ या रूस ने कभी भी इस आरोप का कोई खंडन नहीं किया कि उसने नाभिकीय हथियारों के सुरक्षित इस्तेमाल के लिए भूमिगत शहर बना रखे हैं। रूसी सरकार ने उस आरोप पर भी कान नहीं दिया जिसमें कहा गया था कि रूसी राजनेताओं ने नाभिकीय युद्ध की स्थिति में ख़ुद को बचाने के लिए इन भूमिगत शहरों को तैयार किया है।
उल्लेखनीय है कि यामताउ पर्वत श्रृंखला के इन भूमिगत शहरों के बारे में तरह-तरह की किंवदंतियां मशहूर हैं। पश्चिमी मीडिया के अनुसार इन शहरों का क्षेत्रफल अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी के बराबर है। इनमें साठ हजार लोगों की ठहरने की व्यवस्था है। इस शहर के अंदर 3620 लाख टन अनाज-भंडारन की व्यवस्था है। इसके अलावा इस शहर में विभिन्न स्थानों पर आण्विक हथियारों के इस्तेमाल के लिए 200 न्यूक्लियर बेस भी हैं जहां से अंतरमहाद्वीपीय नाभिकीय मिसाइल छोड़े जा सकते हैंै। कहा जाता है कि 400 वर्गकिलोमीटर के दायरे में बनाये गये इन भूमिगत शहरों की वास्तु-तकनीक ऐसी है कि ये लगातार सात परमाणु बम की मार को झेल सकते हैं। पश्चिमी मीडिया के अनुसार 1970 के दशक में ब्रेझनेव के शासन काल में बने इन भूमिगत शहरों को सोवियत संघ के विघटन के बाद कुछ समय तक बंद कर दिया गया था। लेकिन पिछले वर्षों में रूस ने इसके पुनर्निमाण के लिए करोड़ों रुपये लगाये हैं। पश्चिमी मीडिया ने अमेरिकी खुफिया अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि रूस ने विगत वर्षों में पुनर्निमाण की इस परियोजना पर छह अरब अमेरिकी डॉलर की राशि खर्च की है।
इन सबके इतर रूस ने बुलावा सबमैराइन मिसाइल (एसएलबीएम) का सफलतापूर्वक परीक्षण करके अमेरिका और अन्य पश्चिमों देशों की चिंता बढ़ा दी। विगत जून में किए गये इस परीक्षण पर रूसी नाव सेना के अधिकारी ने कहा कि यह उसके प्रस्तावित महा परीक्षण श्रृंखला की महज़ शुरूआत ही है तथा अभी विभिन्न प्रकार के और 14 परीक्षण होने हैं। मालूम हो कि इससे कुछ माह पहले ही रूसी नाव सेना ने यूरी डॉलगोरकी नामक मिसाइल का परीक्षण किया था। बोलावा मिसाइल के बारे में कहा जाता है कि यह नाभिकीय शक्ति से संपन्न है। इसके मुकाबले लायक मिसाइल सिर्फ अमेरिका के पास ही है। जब विदेशी पत्रकारों ऐसे परीक्षणों के औचित्य के बारे में जानना चाहा तो उन्हें बताया गया कि रूस अपनी सामरिक तैयारियों के लिए स्वतंत्र है। लगे हाथ कुछ रूसी रक्षा विशेषज्ञों ने पुतीन के उस बयान का उल्लेख कर डाला जिसमें पूर्व रूसी राष्ट्रपति ने अमेरिका पर आरोप लगाया था कि वह निरशस्त्रीकरण के प्रति गंभीर नहीं है।
इससे कुछ महीने पहले ही रसियन एकेडमी ऑफ मिलेट्री साइंस ने मिलिट्री डाक्टरीन -2000 पर पुनर्विचार के लिए एक सेमिनार का आयोजन किया था। इसमें रूस के रक्षा विशेषज्ञों, सैनिक अधिकारियों समेत कई मंत्रियों ने भी भागेदारी की । बैठक में तय किया गया कि रूस दुनिया के वर्तमान रणनीतिक समीकरण को देखते हुए अपने नाभिकीय कार्यक्रम को जारी रखे। बैठक में एकमत से फैसला लिया गया कि रूस अपनी नाभिकीय तकनीक और प्रौद्योगिकी को लगातार अद्यतन करता रहे। किसी भी स्थिति में रूस नाभिकीय कटौती न करे। यह देश और दुनिया की सुरक्षा के लिए आवश्यक है। रूसी सेना अध्यक्ष यूरी बेल्यूव्सकी ने कहा कि ऐसे तो दुनिया में अब राजनीतिक विचारों की टकराहट नहीं हो रही, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दुनिया पूरी तरह से महफूज हो गयी है। उन्होंने कहा कि दुनिया में तनाव और टकराहट का माहौल है। अमेरिका अभी भी दुनिया को नाभिकीय हथियारों का भय दिखाता है। वह नाभिकीय हथियारों में कटौती के बारे में सोच भी नहीं रहा। ऐसे में रूस की सैनिक क्षमताओं में कटौती देश के लिए हितकारी नहीं है। बेल्यूव्सकी ने कहा कि रूस और अन्य देशों को अपनी सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहने की ज़रूरत है। इसलिए मिलिट्री डाक्ट्रीन-2000 में सुधार की आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पूर्व रूसी राष्ट्रपति पुतीन ने इस योजना की घोषणा की थी, जिसके तहत रूसी सेना के पास मौजूद नाभिकीय हथियारों के में कटौती करने का प्रावधान किया गया था । हालांकि बैठक के निर्णय पर रूसी राष्ट्रपति की ओर से कोई बयान नहीं आया, लेकिन कहा जाता है कि मिलिट्री डॉक्ट्रीन-2000 पर पुनर्विचार से रूसी संसद ड्यूमा भी सहमत है।
उल्लेखनीय है कि मिलिट्री साइंस की इसी बैठक में एक रूसी रक्षा विशेषज्ञ ने अमेरिका और नाटो के ख़िलाफ जमकर शाब्दिक हमले किए। विशेषज्ञ ने कहा कि अमेरिका की मंशा है कि वह पूरी दुनिया को अपने इशारे पर नचाये। अमेरिका सोवियत संघ से अलग हुए देशों पर अपना नियंत्रण चाह रहा है । उसके इस नापाक इरादे में नाटो भी बराबर का साझीदार है। इसलिए हमें अपनी सुरक्षा व्यवस्था लगातार मजबूत रखने की आवश्यकता है।
पश्चिमी देशों के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि रूस ़ज़्यादा दिनों तक खामोश नहीं रहेगा। जैसे ही उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी वह अपने पुराने गौरव को पाने का प्रयास शुरू कर देगा। इस वर्ष रूस ने तेल और प्रेट्रोलियम गैस के निर्यात से काफी धन कमाया है । उसके अन्य व्यापारिक प्रक्षेत्र भी मजबूत हो रहे हैं। इसलिए वह फिर से रक्षा बजट का आकार बढ़ाने में संलग्न हो गया है। लेकिन यह दुनिया के लिए कितना हितकर है, यह तय होना अभी शेष है।
इन्हीं वज़हों से र्स्टाट-1, स्टार्ट-2 (स्ट्रेटजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटि) और आइएनएफ ट्रीटि (इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्सेस ट्रीटि-1987) जैसे समझौते में रूस की कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं रह गयी है। जबकि सोवियत संघ के पतनोपरान्त स्थगित हुए हथियार परीक्षण कार्यक्रम को उसने तेज़ी से अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है। इसके कारण संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो (नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटि ऑरगेनाइजेशन) के कान खड़े हो गये हैं। पश्चिमी मीडिया ने तो लिखना शुरू कर दिया है कि रूस ने शीत युद्ध-2 की शुरूआत कर दी है। वैसे इस बार रूस के मुकाबले नाटो के देशों को खड़ा किया जा रहा है। पिछले दिनों यह चर्चा और तेज़ हो गयी जब रूस का एक टोही विमान इंग्लैंड की हवाई सीमा में प्रवेश कर गया। इसके अलावा ईरान मसले पर रूस ने जब अमेरिका का साथ देने से साफ इनकार कर दिया तो अमेरिकी मीडिया ने लिखा कि रूस दूसरे शीत युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा है। इस चर्चा में तब और गर्माहट आ गयी जब अमेरिकी मीडिया में ही ख़बर आयी कि रूस यामताउ पर्वत श्रृंखला में अवस्थित दो रहस्यमय भूमिगत शहरों में हथियारों का जखीरा जमा कर रहा है। अमेरिकी मीडिया ने रूस के एक बर्खास्त केजीबी अधिकारी के हवाले से कहा कि इन भूमिगत शहरों में नाभिकीय हथियारों को प्रतिस्थापित किया जा रहा है। ख़बरों में यह भी कहा गया कि इन दोनों शहरों के कायाकल्प के लिए रूस ने पच्चीस हजार मजदूरों को काम पर लगा रखा है। उल्लेखनीय है कि शीत युद्ध के जवाने से ही यामताउ पर्वत श्रृंखला के अंदर बने इन तथाकथित भूमिगत शहरों का जिक्र हो रहा है। लेकिन तमाम बहस और कयास के बावजूद आजतक इन शहरों की असलियत दुनिया के सामने नहीं आ पायी । सोवियत संघ या रूस ने कभी भी इस आरोप का कोई खंडन नहीं किया कि उसने नाभिकीय हथियारों के सुरक्षित इस्तेमाल के लिए भूमिगत शहर बना रखे हैं। रूसी सरकार ने उस आरोप पर भी कान नहीं दिया जिसमें कहा गया था कि रूसी राजनेताओं ने नाभिकीय युद्ध की स्थिति में ख़ुद को बचाने के लिए इन भूमिगत शहरों को तैयार किया है।
उल्लेखनीय है कि यामताउ पर्वत श्रृंखला के इन भूमिगत शहरों के बारे में तरह-तरह की किंवदंतियां मशहूर हैं। पश्चिमी मीडिया के अनुसार इन शहरों का क्षेत्रफल अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी के बराबर है। इनमें साठ हजार लोगों की ठहरने की व्यवस्था है। इस शहर के अंदर 3620 लाख टन अनाज-भंडारन की व्यवस्था है। इसके अलावा इस शहर में विभिन्न स्थानों पर आण्विक हथियारों के इस्तेमाल के लिए 200 न्यूक्लियर बेस भी हैं जहां से अंतरमहाद्वीपीय नाभिकीय मिसाइल छोड़े जा सकते हैंै। कहा जाता है कि 400 वर्गकिलोमीटर के दायरे में बनाये गये इन भूमिगत शहरों की वास्तु-तकनीक ऐसी है कि ये लगातार सात परमाणु बम की मार को झेल सकते हैं। पश्चिमी मीडिया के अनुसार 1970 के दशक में ब्रेझनेव के शासन काल में बने इन भूमिगत शहरों को सोवियत संघ के विघटन के बाद कुछ समय तक बंद कर दिया गया था। लेकिन पिछले वर्षों में रूस ने इसके पुनर्निमाण के लिए करोड़ों रुपये लगाये हैं। पश्चिमी मीडिया ने अमेरिकी खुफिया अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि रूस ने विगत वर्षों में पुनर्निमाण की इस परियोजना पर छह अरब अमेरिकी डॉलर की राशि खर्च की है।
इन सबके इतर रूस ने बुलावा सबमैराइन मिसाइल (एसएलबीएम) का सफलतापूर्वक परीक्षण करके अमेरिका और अन्य पश्चिमों देशों की चिंता बढ़ा दी। विगत जून में किए गये इस परीक्षण पर रूसी नाव सेना के अधिकारी ने कहा कि यह उसके प्रस्तावित महा परीक्षण श्रृंखला की महज़ शुरूआत ही है तथा अभी विभिन्न प्रकार के और 14 परीक्षण होने हैं। मालूम हो कि इससे कुछ माह पहले ही रूसी नाव सेना ने यूरी डॉलगोरकी नामक मिसाइल का परीक्षण किया था। बोलावा मिसाइल के बारे में कहा जाता है कि यह नाभिकीय शक्ति से संपन्न है। इसके मुकाबले लायक मिसाइल सिर्फ अमेरिका के पास ही है। जब विदेशी पत्रकारों ऐसे परीक्षणों के औचित्य के बारे में जानना चाहा तो उन्हें बताया गया कि रूस अपनी सामरिक तैयारियों के लिए स्वतंत्र है। लगे हाथ कुछ रूसी रक्षा विशेषज्ञों ने पुतीन के उस बयान का उल्लेख कर डाला जिसमें पूर्व रूसी राष्ट्रपति ने अमेरिका पर आरोप लगाया था कि वह निरशस्त्रीकरण के प्रति गंभीर नहीं है।
इससे कुछ महीने पहले ही रसियन एकेडमी ऑफ मिलेट्री साइंस ने मिलिट्री डाक्टरीन -2000 पर पुनर्विचार के लिए एक सेमिनार का आयोजन किया था। इसमें रूस के रक्षा विशेषज्ञों, सैनिक अधिकारियों समेत कई मंत्रियों ने भी भागेदारी की । बैठक में तय किया गया कि रूस दुनिया के वर्तमान रणनीतिक समीकरण को देखते हुए अपने नाभिकीय कार्यक्रम को जारी रखे। बैठक में एकमत से फैसला लिया गया कि रूस अपनी नाभिकीय तकनीक और प्रौद्योगिकी को लगातार अद्यतन करता रहे। किसी भी स्थिति में रूस नाभिकीय कटौती न करे। यह देश और दुनिया की सुरक्षा के लिए आवश्यक है। रूसी सेना अध्यक्ष यूरी बेल्यूव्सकी ने कहा कि ऐसे तो दुनिया में अब राजनीतिक विचारों की टकराहट नहीं हो रही, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दुनिया पूरी तरह से महफूज हो गयी है। उन्होंने कहा कि दुनिया में तनाव और टकराहट का माहौल है। अमेरिका अभी भी दुनिया को नाभिकीय हथियारों का भय दिखाता है। वह नाभिकीय हथियारों में कटौती के बारे में सोच भी नहीं रहा। ऐसे में रूस की सैनिक क्षमताओं में कटौती देश के लिए हितकारी नहीं है। बेल्यूव्सकी ने कहा कि रूस और अन्य देशों को अपनी सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहने की ज़रूरत है। इसलिए मिलिट्री डाक्ट्रीन-2000 में सुधार की आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पूर्व रूसी राष्ट्रपति पुतीन ने इस योजना की घोषणा की थी, जिसके तहत रूसी सेना के पास मौजूद नाभिकीय हथियारों के में कटौती करने का प्रावधान किया गया था । हालांकि बैठक के निर्णय पर रूसी राष्ट्रपति की ओर से कोई बयान नहीं आया, लेकिन कहा जाता है कि मिलिट्री डॉक्ट्रीन-2000 पर पुनर्विचार से रूसी संसद ड्यूमा भी सहमत है।
उल्लेखनीय है कि मिलिट्री साइंस की इसी बैठक में एक रूसी रक्षा विशेषज्ञ ने अमेरिका और नाटो के ख़िलाफ जमकर शाब्दिक हमले किए। विशेषज्ञ ने कहा कि अमेरिका की मंशा है कि वह पूरी दुनिया को अपने इशारे पर नचाये। अमेरिका सोवियत संघ से अलग हुए देशों पर अपना नियंत्रण चाह रहा है । उसके इस नापाक इरादे में नाटो भी बराबर का साझीदार है। इसलिए हमें अपनी सुरक्षा व्यवस्था लगातार मजबूत रखने की आवश्यकता है।
पश्चिमी देशों के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि रूस ़ज़्यादा दिनों तक खामोश नहीं रहेगा। जैसे ही उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी वह अपने पुराने गौरव को पाने का प्रयास शुरू कर देगा। इस वर्ष रूस ने तेल और प्रेट्रोलियम गैस के निर्यात से काफी धन कमाया है । उसके अन्य व्यापारिक प्रक्षेत्र भी मजबूत हो रहे हैं। इसलिए वह फिर से रक्षा बजट का आकार बढ़ाने में संलग्न हो गया है। लेकिन यह दुनिया के लिए कितना हितकर है, यह तय होना अभी शेष है।
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