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उल्लेखनीय है कि पिछले चार माह में यह सातवां मामला है जब किसी नेपाली पत्रकार को मौत के घाट उतार दिया गया है। वैसे एफएनजे समेत अन्य नेपाली मीडिया संगठन इसका लगातार विरोध कर रहा है, लेकिन अराजकतावादियों पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा है। नेपाल स्थित मेरे पत्रकार मित्रों का कहना है कि हत्यारों को प्रशासन और सरकार का समर्थन प्राप्त है और वे अपने खिलाफ लिखने वाले पत्रकारों के सफाये में जुटे हैं। इसका मतलब साफ है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार संगठनों की जिम्मेदारी बनती है कि वह नेपाल की सरकार से बात करें । लोकतंत्र के समर्थकों के लिए नेपाल की ये घटनाएं चिंता का विषय होना चाहिए। लेकिन अभी तक अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संगठनों ने इस पर खामोशी ओढ़ रखी है। पता नहीं ये संगठन अपनी भूमिका से भी अवगत हैं या नहीं।
1 टिप्पणी:
बहुत ही शर्मनाक घटनाएं हैं ये सब....चाहे इसे जो भी अंजाम दे रहे हों।
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