बुधवार, 16 सितंबर 2009

बाइ इलेक्शन वाया वाइ पास

दहाये हुए देस का दर्द-56
साठ साल में तो घूरे के दिन भी फिर जाते हैं । लेकिन इस देश की राजनीति के दिन फिरने के संकेत कहीं नहीं दिखते। हमारी बदकिस्मती यह है कि बार-बार नेताओं के हाथों मोहरा बनना हमारी नियति बन गयी है। आज भी राजनेताओं की नजर में समाज एक चेश बोर्ड ज्यादा कुछ नहीं, जिस पर सिर्फ चाल चले जा सकते हैं और जीत हासिल कर सत्ताई कुर्सी कब्जाया जा सकता है। साल-दर-साल यही होता आ रहा है। कहते हैं कि विपत्ति में इंसान अपनी क्षुद्रता को भूल जाता है, लेकिन हमारे राजनेता दैवी आपदा और राष्ट्रीय संकट के समय भी शतरंज के खिलाड़ी ही बने रहने के आदि हैं। इसका ताजा उदाहरण है- बिहार का हालिया विधानसभा उपचुनाव।
बिहार में कुल सत्रह विधानसभा सीटों पर हाल में ही उपचुनाव संपन्न हुये हैं। बाढ़ से उजड़े कोशी अंचल की तीन विधानसभा सीटों पर भी उपचुनाव हुये। इनमें सुपौल जिले की त्रिवेणीगंज, सहरसा जिले की सिमरी बख्तियारपुर और अररिया जिले की अररिया सीटें शामिल हैं। ये सीटें विधायकों के एमपी बन जाने के कारण खाली हुई थीं। उम्मीद थी कि चुनाव प्रचार के दौरान नेता बाढ़ से तबाह हुये लोगों की बात सुनेंगे और कोशी अंचल में चारों ओर यत्र-तत्र बिखरी हुई तबाहियों को मुद्दा बनायेंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। सभी पार्टियों ने इस मुद्दे को नक्कारखाने में डाल दिया। बड़ी कुशलता से राजनीतिक पार्टियों ने बाढ़ के मुद्दे पर मिट्टी डाल दी और लोगों को पता भी नहीं चला। कोई सांप्रदायिकता का बेसुरा राग अलापने लगा, तो कोई जातिवाद के ठुमके लगाने लगे। और इस तरह जनता के असल मुद्दे गौण हो गये। चुनावी प्रचार के दौरान किसी भी पार्टी के किसी नेता ने बाढ़ का जिक्र तक नहीं किया। चाहे केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस हो या राज्य में सत्तासीन राजग या फिर बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी, राजद और लोजपा।
सब-के-सब एक साथ अंधे हो गये । कांग्रेस की ओर से काबिल माने जाने वाले सलमान खुर्शीद और जगदीश टाइटलर ने अपने प्रत्याशियों के लिए कई सभाएं कीं। दोनों नेता केंद्र सरकार का गुणगान करते रहे और हर सभा में कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली। लालू और रामविलास महादलित-दलित के राग पर सवारी करते रहे। संक्षेप में कहें, तो सब पार्टियों ने उसी पुराने फार्मूले का इस्तेमाल किया- तुम मुझे गाली दो, मैं तुझे गाली दूंगा। जनता जब तक समझ सकें कि किसने किसको गाली दी, तब तक वोट हो जायेगा।
जबकि बाढ़ से उजड़े इलाके के लोग आज भी किसी फरिश्ता का इंतजार कर रहे हैं। रोजगार के अभाव में लोग पलायन कर रहे हैं। यहां तक कि बाढ़ में ध्वस्त हो चुकी आधारभुत संरचना की पुनर्स्थापना जनता की महती जरूरत है। अभी तक न तो ध्वस्त हुई सड़कों का पुणनिर्माण हो सका है और न ही टूटे रेलवे ट्रैक दुरूस्त हो सके हैं। केंद्र सरकार के कामों की दुहाई देने वाले सलमान खुर्शीद को शायद पता नहीं कि केंद्र सरकार का रेलवे मंत्रालय 15 महीने में बाढ़ से टूटे महज 40 किलोमीटर रेलवे ट्रैक को रिस्टोर नहीं कर सका। कोशी नदी को साधने के लिए केंद्र सरकार पिछले एक साल में एक कदम आगे नहीं बढ़ सकी है। उन्हें नहीं मालूम कि कोशी अंचल के लोग इसका स्थायी समाधान चाहते हैं। लोग पूछ रहे हैं कि पिछले एक साल में केंद्र सरकार ने इस दिशा में क्या किया? लेकिन किसी नेता ने इसका जवाब नहीं दिया । जवाब दें भी तो कैसे, वे तो वाय पास से निकलने के आदि हैं। शहर में बिना घुसे ही शहर को पार कर जाते हैं।

2 टिप्‍पणियां:

रंजना ने कहा…

बिलकुल सही कहा आपने.....सब बाय पास से निकल जाने में ही यकीन रखते हैं....गलियों के कीचड में कौन अपने पाँव गंदे करे....

इस उपचुनाव में मतदान भी तो तीस पैतीस प्रतिशत से अधिक नहीं हुआ कहीं भी....लगता है अब मतदान का प्रतिशत पांच सात प्रतिशत तक पहुच जायेगा आयेगा जल्दी ही..

आखिर मतदान करके भी क्या फायदा...भ्रष्ट तथा चोरों के बीच से ही तो एक को चुनना है....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

SACH KHHA ..... NETAAON SE UMMEED LAGANA VYARTH HAI ... SAB EK HI THAILI KE CHATTE BATTE HAIN ....