मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

धरती का एसाइनमेंट करोगे क्या

धरती एक यान है जिसे उस इंजीनियर ने डिजाइन किया है, जिसे हम प्रकृति कहते हैं। बेहद कुशलता के साथ । सटीक इतना कि हजारों किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ने के बावजूद इसका संतुलन नहीं बिगड़ता। इसकी धुरी नहीं टूटती। लेकिन इस यान पर सवार हम मानव इसे लगतार छेड़ते जा रहे हैं। इसलिए इसका संतुलन बिगड़ रहा है। प्रकृति इसे ठीक नहीं कर सकती। प्रकृति रिपेयर का काम नहीं करती। वह हमेशा नया सृजन करती है। और सृजन की ओर मुखातिब प्रकृति अपनी रुग्ण रचना को समाप्त करने में जरा सी नहीं हिचकती। तो इसे हमें ही रिपेयर करना है। पर क्या हम इसके लिए तैयार हैं ? हाल में ही पोर्टलैंड विश्वविद्यालय में विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद्‌ पॉल हॉकेन ने इस सवाल पर छात्रों के बीच एक मर्मस्पर्शी व्याख्यान दिया है। यह सुनने और सुनाने लायक है। इसलिए यहां रख रहा हूं- रंजीत।

जब मुझे यहां भाषण देने के लिए बुलाया गया तो कहा गया,मैं कोई छोटा सा ऐसा भाषण दूं जो उत्साहवर्धक और हैरतंगेज हो।ठीक है तो हैरतंगेज भाग से शुरू करते हैं.....
इस पीढ़ी के नौजवानों!
यहां से डिग्री हासिल करने के बाद अब तुम्हे यह समझना है कि धरती पर मनुष्य होने का क्या मतलब है, वह भी ऐसे समय में जब यहां मौजूद पूरा तंत्र विनाश के गर्त में जा रहा है, आत्मा तक को हिला देने वाली स्थिति है
पिछले तीस सालों में कोई ऐसा पेपर नहीं छपा जो मेरे इस बयान को झुठलाता हो। दरअसल धरती को जल्द से जल्द एक नए ऑपरेटिंग सिस्टम की जरूरत है और आप सब उसके प्रोग्रामर हैं।
पृथ्वी नाम का यह ग्रह कुछ ऑपरेटिंग निर्देशों के सेट के साथ अस्तित्व में आया था,जिनको शायद हमने भुला दिया है। इस सिस्टम के महत्वपूर्ण नियम कुछ इस तरह थे-
जैसे पानी,मिट्टी या हवा में जहर नहीं घोलना है, पृथ्वी पर भीड़ जमा नहीं करनी है, थर्मोस्टैट को छूना नहीं है लेकिन अब हमने इन सभी नियमों को ही तोड़ दिया है। बकमिन्स्टर फुलर ने कहा था कि धरती का यह यान इतना बेहतर डिजाइन किया गया है कि कोई भी यह नहीं जान पाता कि हम सभी एक ही यान पर सवार हैं, यह यान ब्रह्मांड में एक लाख मील प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ रहा है, किसी सीटबेल्ट की ज़रूरत नहीं है, इस यान में कई कमरे और बेहतर स्वादिष्ट खाना भी मौजूद हैं- पर अफसोस! अब यह सब बदल रहा है।
जो डिप्लोमा आप सब हासिल करोगे उसके पीछे अदृष्य लिखावट में कुछ लिखा होगा और अगर तुम इसे लेमन जूस का इस्तेमाल करके डिकोड न कर सके तो मैं तुम्हे बता सकता हूं कि वहां क्या लिखा होगा। वहॉं लिखा होगा- तुम मेधावी हो और पृथ्वी तुम्हें काम पर रख रही है। पृथ्वी किसी रिक्रूटर को तुम्हारे पास नहीं भेजेगी क्योंकि उसे भेजने का खर्च उठाने की स्थिति में वह नहीं है। इसने तुम्हारे पास बारिश,सूर्यास्त,मीठे-रसीले फल, रजनीगंधा, चमेली और वह सुंदर साथी भेजा है जिसके साथ तुम डेटिंग कर रहे हो। यही संकेत है तुम्हारे लिए, इसे सुनो-
डील यह हैः याद रखो तय समय सीमा में धरती को बचाना असंभव नहीं है। वही करो जिसे करने की जरूरत है और तुम पाओगे कि यह तभी तक असंभव था जब तक तुमने किया नहीं था।
जब कभी यह पूछा जाता है कि मैं आशावादी हूँ या निराशावादी,मेरा जवाब हमेशा यही होता है: धरती पर क्या हो रहा है, यह जानने के लिए विज्ञान की ओर देखोगे तो उस वक्त अगर आप निराशावादी नहीं हैं तो आंकडे समझ में नहीं आ सकते।
पर अगर तुम ऐसे लोगों को देखते हो जो धरती और गरीबों के जीवन को बचाने में जुटे हैं तो आशावादी हुए बिना तुम कुछ भी नहीं समझ सकते। मैंने देखा है कि दुनिया में हर जगह लोग निराशा,शक्ति और परेशानियों का सामना कर रहे हैं फिर भी सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् को बहाल करने में जुटे हैं- कवि एड्रिने रिच कहते हैं, "इतना कुछ बरबाद हो चुका है और अब मैंने अपनी सामर्थ्य के मुताबिक अपना सब कुछ उन्हें सौंप दिया है जो युग-युगान्तर से किसी असाधारण शक्ति के बगैर दुनिया को बनाने में जुटे हैं।" इससे बेहतर कोई उदाहरण नहीं हो सकता कि मानवता जुटी हुई है। वह दुनिया का पुनर्निर्माण करने में जुटी है और स्कूलों, खेतों, जंगलों, गांवों, मैदानो, कंपनियों, शरणार्थी शिविरों, रेगिस्तानों और झुग्गियों में काम जारी है।
तुम भी इन काम करने वाले लोगों के समूह में शामिल हो जाओ। कोई नहीं जानता कि कितने समूह और संगठन इस समय जलवायु परिवर्तन,गरीबी,वनों की कटाई, शांति, पानी, भूख, संरक्षण, मानवाधिकार आदि पर काम कर रहे हैं। यह दुनिया में अब तक का सबसे बड़ा आंदोलन है। नियंत्रण के बजाय यह संपर्क चाहता है। प्रभुत्व के बजाय यह शक्ति के विकेंद्रीकरण के लिए प्रयास कर रहा है।
मरसी कोर्प्स की तरह यह पर्दे के पीछे रह कर काम कर रहा है। यह इतना बड़ा आंदोलन है कि कोई इसके सही आकार को नहीं पहचानता। यह दुनिया के अरबों लोगों को आशा, सहायता और अर्थ प्रदान कर रहा है। इसका प्रभाव विचार में है शक्ति में नहीं। शिक्षक, बच्चे, किसान, व्यवसायी, जैविक खेती करने वाले किसान, नन, कलाकार, सरकारी कर्मचारी, मछुआरे, इंजीनियर, छात्र, लेखक, मुसलमान, चिंतित माताएं, कवि, डॉक्टर, इसाई, गलियों के संगीतकार यहां तक कि संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति सब इसमें शामिल हैं और जैसा कि लेखक डेविड जेम्स डंकन कहते हैं, सृष्टिकर्ता जो हम सबों को इतना प्यार करते हैं वो भी इसमें शामिल है।
एक यहूदी बोधकथा के मुताबिक अगर दुनिया खत्म होने वाली है और मसीहा आ चुका है तो पहले एक पेड़ लगाओ और देखो कि क्या यह कहानी सच है। हमें प्रेरणा सिर्फ उन चीजों की चर्चा से नहीं मिलती जो हम पर बीती है, बल्कि यह मानवता की बहाली, निवारण, सुधार, पुनर्निर्माण, पुनर्कल्पना और पुनर्विचार की इच्छा से मिलती है। "आखिरकार एक दिन तुम जान जाओगे कि तुम्हें क्या करना था और तब तुम काम शुरू कर दोगे, जबकि तुम्हारे चारों ओर के लोग चिल्ला-चिल्लाकर तरह तरह की बुरी सलाह देते रहेंगे।" लाखों लोग अजनबियों के लिए काम करते हैं फिर भी शाम की खबर में आम तौर पर अजनबियों की मौत की सूचनाएं होती हैं। अजनबी की यह दयालुता, धार्मिक, मिथकीय हैं और इसकी जडें अठारहवीं शताब्दी की में हैं। उन्मूलनवाली पहले इंसान थे जिन्होंने उन लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन को खडा किया था जिन्हें वे नहीं जानते थे। उस समय तक किसी समूह ने दूसरों की ओर से शिकायत दर्ज नहीं की थी। इस आंदोलन के संस्थापकों ग्रान्विले क्लार्क, थॉमस क्लार्कसन, योशिय्याह वेजवूड आदि ज्यादातर जाने-पहचाने नहीं थे और उनके लक्ष्य काफी हास्यास्पद थे क्योंकि उस वक्त दुनिया में हर चार में से तीन लोग ग़ुलाम थे। एक दूसरे को गुलाम बनाना यही तो लोगों ने वर्षों से किया था। उन्मूलनवादी आंदोलन का स्वागत अविश्वास के साथ किया गया। रूढ़िवादी प्रवक्ताओं ने उन्हें प्रगतिशील, भला करने वाला, हस्तक्षेप करने वाला और आंदोलनकारी तक कहकर उपहास उडाया। उन्होंने कहा कि ये लोग अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर देंगे और इंग्लैंड को गरीबी के दलदल में ढकेल देंगे।
लेकिन इतिहास में पहली बार लोगों का ऐसा समूह संगठित हुआ जो उन लोगों की मदद करना चाह रहे थे जिन्हें वे नहीं जानते थे और उनसे उन्हें किसी भी तरह का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ भी प्राप्त नहीं होने वाला था। आज करोडों लोग ऐसा हर दिन कर रहे हैं। यह स्वयंसेवी संस्थाओं, नागरिक समाज, स्कूलों, सामाजिक उद्यमिता और गैर सरकारी संगठनों की दुनिया है जो सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय को अपनी रणनीतियों के शीर्ष पर रखते हैं। इस प्रयास की संभावनाएं और पैमाने इतिहास में अद्वितीय है।
जीवित दुनिया कहीं और नहीं बल्कि हमारे भीतर है। हम जीवन के बारे में क्या जानते हैं? जीवविज्ञानी जेनिन बेन्यूस के शब्दों में जीवन उन परिस्थितियों की रचना करता है जो जीवन के लिए अनुकूल हैं। मैं भविष्य की अर्थव्यवस्था के लिए कोई बेहतर आदर्श वाक्य नहीं सोच पाता हूं। हमारे पास लाखों ऐसे मकान हैं जहां कोई नहीं रहता और लाखों ऐसे लोग हैं जो घरों के बगैर रहते हैं। हमारे असफल बैंकर, असफल नीति नियंताओं को सलाह देते हैं कि असफल संपत्तियों को कैसे बचाएं। इसके बारे में सोचो: हम इस ग्रह पर एकमात्र ऐसी प्रजाति हैं जो संपूर्ण रोजगार के बिना हैं। बहुत खूब। हमारे पास ऐसी अर्थव्यवस्था है जो बताती है कि मौजूदा समय में धरती को बरबाद कर देना कहीं अधिक सस्ता है बनिस्बत इसकी सुरक्षा,स्थायित्व और पुनर्निर्माण के। आप एक बैंक को बचाने के लिए पैसे प्रिंट कर सकते हैं लेकिन ग्रह को बचाने के लिए जीवन को प्रिंट नहीं कर सकते। इस वक्त हम एक ओर तो भविष्य की चोरी कर उसे वर्तमान में बेच रहे हैं और दूसरी ओर इसे सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं।
हमें तो बस एक ऐसी अर्थव्यवस्था चाहिए जो भविष्य के उपचार पर आधारित हो न कि उसकी चोरी पर। या तो हम भविष्य के लिए परिसंपत्तियां बना सकते हैं या भविष्य की परिसंपत्तियां ले सकते हैं। एक को बहाली कहा जाता है और दूसरे को शोषण।
जब हम घरती का शोषण करते हैं तो हम लोगों का भी शोषण करते हैं और अनकही पीड़ा का कारण बनते हैं। धरती के लिए काम करना अमीरी पाने का तरीका नहीं है बल्कि अमीर होने का एक तरीका है।
प्रथम जीवित कोशिका 4 करोड सदियों पहले अस्तित्व में आई थी और इसके वंशज हमारे खून में हैं। इस वक्त जिन अणुओं से तुम सांस ले रहे हो वही मूसा, मदर टेरेसा, और बोनो ने लिए थे। हम लोग बेहद करीब से जुड़े हैं। हमारा भविष्य अलग नहीं किया जा सकता। हम यहां सिर्फ इस लिए हैं क्योंकि यहॉं हर कोशिका का सपना दो कोशिकाओं में तब्दील होना है। तुममें से हर एक में दसियों खरब कोशिकाएं हैं,जिनमें से 90 प्रतिशत मानव कोशिकाएं नहीं हैं। तुम्हारा शरीर एक समुदाय है और इन लघुतर जीवों के बिना तुम्हारा शरीर कुछ पलों में खत्म हो सकता है। प्रत्येक मानव कोशिकाओं में 400 अरब अणु हैं जो दसियों खरब परमाणुओं के साथ लाखों प्रतिक्रियाएं करते हैं। एक मानव शरीर में कुल कोशिकीय गतिविधियां अस्थिर कर देने वाली है: एक पल में एक सेप्टेलियन गतिविधियां यानी एक के पीछे चौबीस शून्य। एक मिली सेकेंड में हमारा शरीर दस गुणी गतिविधियां करता है बनिस्पत ब्रह्मांड में सितारों की संख्या के - ठीक यही तो चार्ल्स डार्विन ने कहा था कि विज्ञान इस बात की खोज करेगा कि प्रत्येक जीवित प्राणी में एक छोटा ब्रह्मांड है, जो स्व प्रचारित अवयवों से मिलकर बना है जो अकल्पनीय रूप से छोटा और स्वर्ग के सितारों की संख्या के बराबर है।
तो मैं तुम्हारे सामने दो सवाल रख रहा हूं: पहला कि क्या तुम अपने शरीर को महसूस कर सकते हो? एक पल के लिए ठहरो और अपने शरीर को महसूस करो। यहां एक सेप्टीलियन गतिविधियां चल रही हैं और तुम्हारा शरीर इसे इतनी अच्छी तरह से कर रहा है कि तुम्हे इसका भान तक नहीं हो रहा है और तुम इसे नजरअंदाज करके हैरान होकर सोच रहे हो कि यह भाषण कब खत्म होगा।
दूसरा सवाल: तुम्हारे शरीर का प्रभारी कौन है? जाहिर है कोई राजनीतिक दल तो है नहीं। जीवन आपके भीतर खुद से वें जरूरी परिस्थितियां ठीक उसी तरह से पैदा कर रहा है जैसे प्रकृति करती है। कुल मिलाकर मैं चाहता हूं कि आप इस बात को सोचें कि पूर्व की अवमाननाओं और घावों पर मरहम रखने के लिए सामूहिक मानवता किस तरह से समीप आने के लिए एक साथ बौद्धिकता का इस्तेमाल कर रही है।
राल्फ वाल्डो ने एक बार पूछा था- अगर सितारे एक हजार साल में एक बार निकलते तो हम क्या करते? बेशक! उस रात कोई नहीं सोता! शायद पूरी रात पूजा-अर्चना में बिताते कि यह भगवान का अनोखा करिश्मा है!अब जबकि तारे हर रात निकलते हैं तो हम उंहें देखने के बजाय टीवी में मशगूल रहते हैं!
अब ऐसा अनोखा समय आ गया है कि हम विश्व स्तर पर एक दूसरे को जानते हैं और मानव सभ्यता के लिए ऐसे कईं खतरों के बारे में जानते हैं जो हजार, दस हजार सालों में भी कभी नहीं हुए। हम सभी उन सितारों की तरह ही खूबसूरत हैं। हमने बड़े-बड़े काम किए हैं और बेशक हमने सृष्टि का सम्मान भी किया है। तुम सब एक अनोखी चुनोती को पास करने जा रहे हो जिसे तुमसे पहले किसी पीढ़ी ने पास नहीं किया। वें सभी रास्ता भटक गए और इस सच्चाई को नहीं जान सके कि जीवन हर क्षण एक चमत्कार है। प्रकृति हर कदम पर तुम्हें रास्ता दिखाती है उससे ज्यादा अच्छा बोस तुम्हे मिल नहीं सकता। इस दुनिया में सबसे ज्यादा अयथार्थवादी आदमी सनकी है, स्वप्नदृष्टा नहीं। यह तुम्हारी सदी है! इसे संभालों और ऐसे चलाओ जैसे कि तुम्हारा जीवन इस पर निर्भर है।
( पॉल हॉकेन एक प्रसिद्ध उद्यमी, दूरदर्शी पर्यावरण कार्यकर्ता और कई पुस्तकों के लेखक हैं। )
 
 

5 टिप्‍पणियां:

BrijmohanShrivastava ने कहा…

पालन करने योग्य भाषण लिखा आपने बहुत परिश्रम किया ,भाषणं बडा था । हवा पानी मे जहर नही घोलना है और यह समझना कि प्रथ्वी हमे काम पर रख रही है । आपने हिन्दी मे अनुवाद किया । आपको बधाई

प्रीतीश बारहठ ने कहा…

साधु !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

संजोने और पालन करने की बात है .............. बेहतरीन ..........

sandhyagupta ने कहा…

Yah blog nahin ek muhim hai.Ise jari rakhen.

Water Community ने कहा…

श्रीमान् हिंदी इंडिया वाटर पोर्टल से लेख उठाने के लिये धन्यवाद।
अगर तकलीफ न हो तो पोर्टल का लिंक अवश्य दें और आपकी जानकारी के लिये बताना चाहूंगी कि यह मेरा अनुवादित आलेख है।
आगे से कहीं से कोई लेख लें तो साभार स्रोत अवश्य लिखें। इस आलेख पर भी लिख देंगें तो आपकी अति कृपा होगी।

मीनाक्षी अरोरा, हिंदी इंडिया वाटर पोर्टल