( छातापुर प्रखंड कार्यालय : कार्यालय या लूट का अड्डा ?)
दहाये हुए देस का दर्द -59
हाल में ही खुलासा हुआ है कि बिहार के सुपौल जिले के छातापुर प्रखंड में बाढ़ राहत के नाम पर आवंटित करोड़ों रुपये गबन हो गये हैं। प्रारंभिक जांच से पता चला है कि प्रखंड मुख्यालय से करोड़ों रुपये के हस्ताक्षरित चेक गायब हैं, जिन्हें विभिन्न बैंकों से कैस भी करा लिया गया है। अधिकारियों को मालूम नहीं कि ये राशि किसने कैस करायी? कैसे कैस करायी ? और अगर वे इस गोरखधंधे में शामिल नहीं थे, तो इतनी संख्या में हस्तक्षारित चेक कार्यालय में क्यों रखे हुए थे। और उन्हें चेकों के कैस हो जाने के बाद ही इसकी चोरी चले जाने की बात मालूम क्यों हुई ? इन सवालों के जवाब अधिकारियों के पास नहीं है और उनकी चुप्पी यह बताने के लिए काफी है कि वे इस गबन में तन-मन से शामिल हैं। यह अलग बात है कि अदालत में यह बात साबित होगी कि नहीं, इसकी गारंटी आज कोई नहीं दे सकता। न लोक और न ही तंत्र ।
पिछले अगस्त में प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पत्रिका "द पब्लिक एजेंडा' ने कोशी बाढ़ पर एक विशेष रिपोर्ट प्रकाशित की थी। पत्रिका कोशी की प्रलयंकारी बाढ़ के साल भर बाद के सामाजिक-राजनीतिक हाल को दुनिया के सामने लाना चाहती थी। पत्रिका के प्रधान संपादक श्री शाजी एम जोसफ और कार्यकारी संपादक श्री मंगलेश डबराल ने इसके लिए मुझे कोशी के बाढ़ग्रस्त इलाके के दौरे पर भेजाथा और निर्देश दिया था कि मैं बाढ़ की मार से आहत लोगों की मनोदशा पर एक रिपोतार्ज जरूर लिखूं। तीन दिनों तक मैं कोशी के बाढ़ग्रस्त इलाके में घूमते रहा और हेडक्वार्टर आते ही अपने संपादक को बताया कि इलाके में बाढ़ राहत के नाम पर भारी लूट मची हुई है, जिसे हम दरकिनार नहीं कर सकते। तत्पश्चात इस लूट-कथा को भी विशेष रिपोर्ट में प्रमुखता से शामिल किया गया। पत्रिका के चौदहवें अंक में यह रिपोर्ट प्रकाशित हुई थीजिसमें स्पष्ट तौर पर बाढ़ग्रस्त सुपौल जिले के छातापुर प्रखंड के अधिकारियों की मदद से चल रही लूट कथा का विशेष तौर पर उल्लेख किया गया है। लेकिन तब बिहार सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। अगर तब इस खुलासे को गंभीरता से लिया गया होता तो शायद ये भ्रष्ट अधिकारी बाढ़पीड़ितों के मुंह से उनका निवाला छीनने में कामयाब नहीं होते और जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपये चरित्रहीन-नैतिकताविहीन अधिकारियों के समुद्री-उदर में जाने से बच जाते। द पब्लिक एजेंडा की उस रिपोर्ट को यहां रख रहा हूं ताकि सनद रहे।- रंजीत
बाढ़ बड़ी या लूट ?
"कोसी कें माइर से पैग, त घूसखोरक कें माइर छै हो बाबू ! कोसी कें प्रेत स त बइच गेलयेअ , मुदा ई द्विटंगा टकाखोर प्रेत सें के बचैतअ हमरा सब कें ? (कोसी की मार से बड़ी तो इन घूसखोरों की मार है, बाबू साहेब ! कोसी के प्रेत से तो बच गये, लेकिन हमें अब इन दो पैर वाले रुपयेखोरों से कौन बचायेगा ?)'' यह पीड़ा है सुपौल जिले के छातापुर प्रखंड के चयनपुर के 38 वर्षीय किसान हरिनारायण मेहता की। छातापुर प्रखंड कार्यालय के प्रवेश द्वार पर मीडिया का नाम सुनते ही पल भर में बाढ़ पीड़ित लोगों की एक बड़ी टोली जमा हो गयी और एक सूर में राहत राशि में मची लूट का दुखड़ा सुनाने लगी। भीड़ को देख छातापुर के प्रखंड विकास पदाधिकारी (बीडीओ) बृज बिहारी भगत बाहर निकले और इस संवाददाता को किनारे ले जाने की कोशिश करने लगे। लेकिन लोगों ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया और बीडीओ के सामने ही उनकी लूट-कथा की गाथा सुनाने लगे। जिसका सारांश यह था कि छातापुर प्रखंड में सहायता राशि उन्हीं को मिल रही है, जो बीडीओ के "दलालों' को खुश करने में सक्षम हैं और मिलने वाली सहायता राशि का तीस फीसद उन्हें अग्रिम तौर पर दे देते हैं। हालांकि यह दीगर बात है कि स्थानीय मीडिया में इस आशय की कोई खबर नजर नहीं आती।
दरअसल, बाढ़ के बाद सहायता राशि के नाम पर मची लूट की ये शिकायत सिर्फ छातापुर प्रखंड तक सीमित नहीं है। बाढ़ प्रभावित इलाके के 14 प्रखंडों के लगभग दो दर्जन गांवों में घूमने के दौरान इस संवाददाता ने डेढ़ सौ से ज्यादा बाढ़-प्रभावित लोगों से बात किया, लेकिन उन्हें एक भी ऐसा आदमी नहीं मिला जिसे बिना घूस दिये किसी भी प्रकार की कोई सरकारी सहायता मिली हो। क्षेत्र के लोगों की शिकायत सिर्फ प्रखंड और अनुमंडल के अधिकारियों से ही नहीं है, बल्कि उन्हें पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधियों से भी भारी शिकायत है। लोगों का कहना है कि सहायता राशि के आवंटन में भारी अनियमितताएं बरती जा रही हैं। पहुंच और रसूख वाले लोग प्रावधानों का ताख पर रखकर राशि प्राप्त कर रहे हैं । जिनके घर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है, घूस देने के बाद उन्हें भी सहायता राशि मिल जाती है, लेकिन बेघर गरीबों का सुनने वाला कोई नहीं क्योंकि न तो उनके पास घूस के अग्रिम भुगतान के लिए धन है और न ही उनकी कोई पहुंच है। मधेपुरा जिले के त्रिवेणीगंज के हरनारायण शाह भी इसी श्रेणी में आते हैं, परिणामस्वरूप उन्हें अभी तक एक रुपये की सरकारी सहायता नहीं मिल सकी। मानगंज गांव के जयनारायण ॠषिदेव भ्रष्टाचार के इस गंधाते व्यापार पर कहते हैं , "किस से शिकायत करें, गांव के वार्ड मेंबर से लेकर मुखिया तक भी इसमें लिप्त हैं।' '
लेकिन हैरत की बात यह है कि प्रशासन इससे अनजान है। 29 जुलाई तक इलाके के किसी भी थाने या इलाके में इन लूटों के खिलाफ एक भी शिकायत दर्ज नहीं हुई है। इसलिए अधिकारी बहुत आसानी से अपना दामन बचा लेते हैं। जब कोसी प्रमंडल के आयुक्त सचिव राजेंद्र प्रसाद को भ्रष्टाचार के इस खुले खेल के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने शिकायत नहीं होने की बात कहकर खुद को कार्रवाई करने में असक्षम बताया। जिले के जिलाधिकारियों की भी यही राय थी। हालांकि यह सच है कि लोग भ्रष्टाचारियों की शिकायत नहीं कर रहे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे उनके कृत्य को अपनी स्वीकृति दे चुके हैं। लगभग चार दशकों तक कोसी क्षेत्र की पत्रकारिता करने वाले वयोवृद्ध पत्रकार और समाजसेवी हरि अग्रवाल कहते हैं, "दरअसल पंचायत प्रतिनिधियों ने सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से लोगों को काफी डरा दिया है और उन्हें स्पष्ट हिदायत दी है कि जो कोई उनके खिलाफ जायेगा उन्हें भविष्य की हर सरकारी सहायता और योजनाओं से वंचित कर दिया जायेगा। विधायक और सांसद की भी इसमें मौन सहमति है, क्योंकि भ्रष्टाचार में शामिल पंचायती स्तर के नेता उनके लिए वोट मैनेजर का काम करते हैंंं।'' जब हजार-दो हजार की राशि तक में लूट का यह आलम है, तो अरबों की योजनाओं का हाल क्या होगा , इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे में यह तय करना मुश्किल है कि कोसी की बाढ़ ज्यादा भयावह थी या उसके बाद राहत को लेकर मची लूट बड़ी है ? - रंजीत
(साभार- द पब्लिक एजेंडा, वर्ष 2, अंक 14 )
दहाये हुए देस का दर्द -59
हाल में ही खुलासा हुआ है कि बिहार के सुपौल जिले के छातापुर प्रखंड में बाढ़ राहत के नाम पर आवंटित करोड़ों रुपये गबन हो गये हैं। प्रारंभिक जांच से पता चला है कि प्रखंड मुख्यालय से करोड़ों रुपये के हस्ताक्षरित चेक गायब हैं, जिन्हें विभिन्न बैंकों से कैस भी करा लिया गया है। अधिकारियों को मालूम नहीं कि ये राशि किसने कैस करायी? कैसे कैस करायी ? और अगर वे इस गोरखधंधे में शामिल नहीं थे, तो इतनी संख्या में हस्तक्षारित चेक कार्यालय में क्यों रखे हुए थे। और उन्हें चेकों के कैस हो जाने के बाद ही इसकी चोरी चले जाने की बात मालूम क्यों हुई ? इन सवालों के जवाब अधिकारियों के पास नहीं है और उनकी चुप्पी यह बताने के लिए काफी है कि वे इस गबन में तन-मन से शामिल हैं। यह अलग बात है कि अदालत में यह बात साबित होगी कि नहीं, इसकी गारंटी आज कोई नहीं दे सकता। न लोक और न ही तंत्र ।
पिछले अगस्त में प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पत्रिका "द पब्लिक एजेंडा' ने कोशी बाढ़ पर एक विशेष रिपोर्ट प्रकाशित की थी। पत्रिका कोशी की प्रलयंकारी बाढ़ के साल भर बाद के सामाजिक-राजनीतिक हाल को दुनिया के सामने लाना चाहती थी। पत्रिका के प्रधान संपादक श्री शाजी एम जोसफ और कार्यकारी संपादक श्री मंगलेश डबराल ने इसके लिए मुझे कोशी के बाढ़ग्रस्त इलाके के दौरे पर भेजाथा और निर्देश दिया था कि मैं बाढ़ की मार से आहत लोगों की मनोदशा पर एक रिपोतार्ज जरूर लिखूं। तीन दिनों तक मैं कोशी के बाढ़ग्रस्त इलाके में घूमते रहा और हेडक्वार्टर आते ही अपने संपादक को बताया कि इलाके में बाढ़ राहत के नाम पर भारी लूट मची हुई है, जिसे हम दरकिनार नहीं कर सकते। तत्पश्चात इस लूट-कथा को भी विशेष रिपोर्ट में प्रमुखता से शामिल किया गया। पत्रिका के चौदहवें अंक में यह रिपोर्ट प्रकाशित हुई थीजिसमें स्पष्ट तौर पर बाढ़ग्रस्त सुपौल जिले के छातापुर प्रखंड के अधिकारियों की मदद से चल रही लूट कथा का विशेष तौर पर उल्लेख किया गया है। लेकिन तब बिहार सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। अगर तब इस खुलासे को गंभीरता से लिया गया होता तो शायद ये भ्रष्ट अधिकारी बाढ़पीड़ितों के मुंह से उनका निवाला छीनने में कामयाब नहीं होते और जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपये चरित्रहीन-नैतिकताविहीन अधिकारियों के समुद्री-उदर में जाने से बच जाते। द पब्लिक एजेंडा की उस रिपोर्ट को यहां रख रहा हूं ताकि सनद रहे।- रंजीत
बाढ़ बड़ी या लूट ?
"कोसी कें माइर से पैग, त घूसखोरक कें माइर छै हो बाबू ! कोसी कें प्रेत स त बइच गेलयेअ , मुदा ई द्विटंगा टकाखोर प्रेत सें के बचैतअ हमरा सब कें ? (कोसी की मार से बड़ी तो इन घूसखोरों की मार है, बाबू साहेब ! कोसी के प्रेत से तो बच गये, लेकिन हमें अब इन दो पैर वाले रुपयेखोरों से कौन बचायेगा ?)'' यह पीड़ा है सुपौल जिले के छातापुर प्रखंड के चयनपुर के 38 वर्षीय किसान हरिनारायण मेहता की। छातापुर प्रखंड कार्यालय के प्रवेश द्वार पर मीडिया का नाम सुनते ही पल भर में बाढ़ पीड़ित लोगों की एक बड़ी टोली जमा हो गयी और एक सूर में राहत राशि में मची लूट का दुखड़ा सुनाने लगी। भीड़ को देख छातापुर के प्रखंड विकास पदाधिकारी (बीडीओ) बृज बिहारी भगत बाहर निकले और इस संवाददाता को किनारे ले जाने की कोशिश करने लगे। लेकिन लोगों ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया और बीडीओ के सामने ही उनकी लूट-कथा की गाथा सुनाने लगे। जिसका सारांश यह था कि छातापुर प्रखंड में सहायता राशि उन्हीं को मिल रही है, जो बीडीओ के "दलालों' को खुश करने में सक्षम हैं और मिलने वाली सहायता राशि का तीस फीसद उन्हें अग्रिम तौर पर दे देते हैं। हालांकि यह दीगर बात है कि स्थानीय मीडिया में इस आशय की कोई खबर नजर नहीं आती।
दरअसल, बाढ़ के बाद सहायता राशि के नाम पर मची लूट की ये शिकायत सिर्फ छातापुर प्रखंड तक सीमित नहीं है। बाढ़ प्रभावित इलाके के 14 प्रखंडों के लगभग दो दर्जन गांवों में घूमने के दौरान इस संवाददाता ने डेढ़ सौ से ज्यादा बाढ़-प्रभावित लोगों से बात किया, लेकिन उन्हें एक भी ऐसा आदमी नहीं मिला जिसे बिना घूस दिये किसी भी प्रकार की कोई सरकारी सहायता मिली हो। क्षेत्र के लोगों की शिकायत सिर्फ प्रखंड और अनुमंडल के अधिकारियों से ही नहीं है, बल्कि उन्हें पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधियों से भी भारी शिकायत है। लोगों का कहना है कि सहायता राशि के आवंटन में भारी अनियमितताएं बरती जा रही हैं। पहुंच और रसूख वाले लोग प्रावधानों का ताख पर रखकर राशि प्राप्त कर रहे हैं । जिनके घर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है, घूस देने के बाद उन्हें भी सहायता राशि मिल जाती है, लेकिन बेघर गरीबों का सुनने वाला कोई नहीं क्योंकि न तो उनके पास घूस के अग्रिम भुगतान के लिए धन है और न ही उनकी कोई पहुंच है। मधेपुरा जिले के त्रिवेणीगंज के हरनारायण शाह भी इसी श्रेणी में आते हैं, परिणामस्वरूप उन्हें अभी तक एक रुपये की सरकारी सहायता नहीं मिल सकी। मानगंज गांव के जयनारायण ॠषिदेव भ्रष्टाचार के इस गंधाते व्यापार पर कहते हैं , "किस से शिकायत करें, गांव के वार्ड मेंबर से लेकर मुखिया तक भी इसमें लिप्त हैं।' '
लेकिन हैरत की बात यह है कि प्रशासन इससे अनजान है। 29 जुलाई तक इलाके के किसी भी थाने या इलाके में इन लूटों के खिलाफ एक भी शिकायत दर्ज नहीं हुई है। इसलिए अधिकारी बहुत आसानी से अपना दामन बचा लेते हैं। जब कोसी प्रमंडल के आयुक्त सचिव राजेंद्र प्रसाद को भ्रष्टाचार के इस खुले खेल के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने शिकायत नहीं होने की बात कहकर खुद को कार्रवाई करने में असक्षम बताया। जिले के जिलाधिकारियों की भी यही राय थी। हालांकि यह सच है कि लोग भ्रष्टाचारियों की शिकायत नहीं कर रहे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे उनके कृत्य को अपनी स्वीकृति दे चुके हैं। लगभग चार दशकों तक कोसी क्षेत्र की पत्रकारिता करने वाले वयोवृद्ध पत्रकार और समाजसेवी हरि अग्रवाल कहते हैं, "दरअसल पंचायत प्रतिनिधियों ने सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से लोगों को काफी डरा दिया है और उन्हें स्पष्ट हिदायत दी है कि जो कोई उनके खिलाफ जायेगा उन्हें भविष्य की हर सरकारी सहायता और योजनाओं से वंचित कर दिया जायेगा। विधायक और सांसद की भी इसमें मौन सहमति है, क्योंकि भ्रष्टाचार में शामिल पंचायती स्तर के नेता उनके लिए वोट मैनेजर का काम करते हैंंं।'' जब हजार-दो हजार की राशि तक में लूट का यह आलम है, तो अरबों की योजनाओं का हाल क्या होगा , इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे में यह तय करना मुश्किल है कि कोसी की बाढ़ ज्यादा भयावह थी या उसके बाद राहत को लेकर मची लूट बड़ी है ? - रंजीत
(साभार- द पब्लिक एजेंडा, वर्ष 2, अंक 14 )
2 टिप्पणियां:
BAHUT SAHI KAHA AAPNE...IS TARAH KE MANJARON KO NIKAT SE DEKHA SUNA HAI....
JAN TANTRA KI YAHI TO VISHESHTA HAI...JISKE HAATH TANTRA HAI,WAH JAN KO LOOTNE KO UTNA HI SWACHHAND HAI...
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