सोमवार, 14 दिसंबर 2009

घोघो रानी कितना पानी

बचपन में दादी कहानी सुनाती थीं, घोघो रानी की। कहानी एक भोली-भाली लड़की घोघो रानी और एक निर्मम राजा की है। नदी में उतरने के लिए विवश घोघो पूछती रही- अब कते दूर ? राजा वहलाता रहा- थोड़ी दूर और ... घोघो आगे बढ़ती गयी, पानी भी बढ़ता गया । घोघो पूछती रही- भर कमर पानी में पहुंचे हो राजा, अब कते दूर ? ... बस थोड़ी ही दूर और ... भर नाक पानी में पहुंचे हो राजा, और कते दूर ? थोड़ी ही दूर... अंततः रानी डूब गयी...
भ्रष्टाचार के विषबेल से आच्छादित देश को देख घोघो रानी की वह प्राणांतक कहानी याद आ जाती है। भ्रष्टाचार की नदी में समाजरूपी घोघो डूब रहा है, लेकिन समाज के नियंता फुसलाते ही जा रहे हैं- थोड़ी दूर और ... खबर आयी है कि देश के उपराष्ट्रपति की पत्नी से भी अधिकारियों ने रिश्वत की मांग ली। नहीं मिली तो उनके आवेदन को डस्ट बीन में डाल दिया। खबर के अनुसार, उपराष्ट्रपति डॉ. हामिद अंसारी की पत्नी सलमा अंसारी ने कहा है कि रिश्वत नहीं देने के कारण उनके स्कूल को अनुदान की राशि आवंटित नहीं की गयी। पांच साल बीत गये पर अलीगढ़ में गरीबों के लिए संचालित उनके स्कूलों को फंड नहीं मिला। कई बार स्कूल के स्टाफ से फंड रिलीज करने की एवज में रिश्र्वत मांगी गयी।
खबर के अनुसार, अलीगढ़ में अलनूर चैरिटेबिल सोसायटी संस्था द्वारा चाचा नेहरू व अलनूर मदरसे के अलावा एक स्कूल संचालित किया जाता है, जिसमें 1800 गरीब बच्चे पढ़ते हैं। संस्था वित्तीय संकट से गुजर रही है। वित्तीय मदद के लिए सलमा अंसारी ने केन्द्र सरकार से अनुरोध की थी, जिस पर राज्य सरकार से अनापत्ति प्रमाण पत्र आवश्यक था। पांच साल बीत गये पर राज्य के अधिकारियों ने प्रमाण पत्र निर्गत नहीं किया। अधिकारियों ने 5 से 25 हजार रुपए की रिश्वत मांगी। मांग पूरी नहीं हुई, तो फंड भी रिलीज नहीं हुआ।
यह घटना साबित करती है कि देश में भ्रष्टाचार का आलम क्या है। इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि भ्रष्टाचार अब विषाणु ही नहीं रहा, जो चोरी-छिपे समाज को अपनी गिरफ्त में ले रहा है, बल्कि यह बेखौफ राक्षस हो चुका है । इस वाकये से स्पष्ट है कि भ्रष्टाचारियों को अब किसी का भय नहीं रहा। और यही बात सबसे ज्यादा खौफ पैदा करती है। भ्रष्टाचार और बेखौफ भ्रष्टाचार में बहुत बड़ा अंतर है। भ्रष्टाचार कहीं भी और किसी भी समाज-व्यवस्था में हो सकता है, लेकिन बेखौफ भ्रष्टाचार उसी सामाजिक व्यवस्था में रह सकता है जो व्यवहारिक तौर पर अप्रसांगिक हो चुकी हो। कहने की आवश्कता नहीं कि अप्रसांगिक सामाजिक व्यवस्था में कोई भी अनर्थ संभव है। अप्रसांगिक सामाजिक व्यवस्था उस छतरी की तरह है जिसमें हजारों छेद हो, लेकिन जो बारिश से बचाने का भ्रम तो पैदा कर सके, लेकिन बारिश में कोई राहत नहीं दे।
लोग चुप हैं। कोई इसे सामाजिक शिष्टाचार कह रहा है, तो कोई आधुनिक जीवन की शैली। इसलिए हमारी शिक्षा प्रणाली पर भी संदेह पैदा होता है। हमारे यहां साक्षरता का ग्राफ बढ़ रहा है, लेकिन समाज का बौद्धिक स्तर शायद गिर रहा है। हम शिक्षित हो रहे हैं, शायद जागरूक नहीं हो रहे। समझ में नहीं आता कि बढ़ती साक्षरता के बाद भी समाज यह कैसे मान ले रहा है कि भ्रष्टाचार सामाजिक शिष्टाचार हो सकता है। यह तो कुछ एैसी ही बात हो गयी कि कोई कहे कि एड्‌स के विषाणु शरीर के अंग हो गये हैं। भ्रष्टाचार, न सिर्फ समाज के चरित्र को कमजोर करता है, बल्कि उसके भविष्य को भी निगल जाता है। भ्रष्ट समाज की संप्रभुता कभी भी सुरक्षित नहीं रह सकती। भ्रष्ट समाज में सामूहिक सौहार्द नहीं आ सकता। वहां स्थायी शांति कभी नहीं आ सकती।
 

6 टिप्‍पणियां:

Bhawna Kukreti ने कहा…

sachh sirf sikdhit hne se kaam nhin banega ....sahi likha apne ham jagruk nahin ho rahe......

श्यामल सुमन ने कहा…

गाँव घर की प्रचलित लोकोक्ति के सहारे आपने अपनी बात सफलता पूर्वक कह दी।

भ्रष्टाचार एक घाव था छोटा बढ़कर अब नासूर हुआ।
हाल यहाँ तक आ पहुँचा कि जान बचाना मुश्किल है।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

मनोज कुमार ने कहा…

भ्रष्टाचार के विषबेल से आच्छादित देश ... भ्रष्टाचार, न सिर्फ समाज के चरित्र को कमजोर करता है, बल्कि उसके भविष्य को भी निगल जाता है।
आपका आलेख बहुत अच्छा लगा। आपसे बिल्कुल सहमत हूं।

अजय कुमार झा ने कहा…

हां रंजीत जी सच तो यही है । घोघो रानी की कहानी के बहाने से बहुत कुछ कह डाला आपने ...देखें ये पानी आम लोगों को अपने सर के ऊपर से गुजरता कब तक दिखता है क्योंकि जब तक आम आदमी को खुद के डूब जाने का एहसास नहीं होगा तब तक तो ये पानी बढता ही जाएगा ..

अजय कुमार झा

sandhyagupta ने कहा…

Aapka aalekh sochne ko majboor karta hai.

BrijmohanShrivastava ने कहा…

भ्रष्टाचार की नदी , समाज घोघो / भ्रष्टाचार अब बिषाणु नही रहा /भ्रष्टाचार और बेखौफ़ भ्रष्टाचार /क्या किया जा सकता है । आपका हकीकत का बयान और उसमे व्यंग्य की पुट ,बचपन के खेल की तुलना -शरद जी याद आगये ""।==एक ज़माना था अफ़सर खुद रिश्वत लेते थे और खा जाते थे। हमने सवाल खड़ा किया कि हमारा क्या होगा, पार्टी का क्या होगा=='हमने अफ़सरों को रिश्वत लेने से रोका और खुद ली।