बुधवार, 4 जुलाई 2012

एक लोकप्रिय सरकार की नोज डाइविंग



ज्ञानी अक्सर कहते हैं- अति आत्मविश्वास आत्मघाती होता है। लेकिन विधि का विधान यह कि अप्रत्याशित सफलता आदमी को अति आत्मविश्वासी बना ही देती  है। इससे बचना बहुत कठिन होता है।  अति विश्वास एक संक्रामक रोग की तरह है, जो पहले इंसान को अहंकारी और बाद में लापरवाह बनाकर निष्क्रिय कर देता है। जमीन पांव के नीचे से खिसक जाती है, लेकिन आत्म-श्लाधा के नशा में चूर व्यक्ति को कुछ दिखाई नहीं देता। शुभचिंतकों की सलाह उन्हें बेवकूफी और आलोचना दुस्साहस लगती है। जी हां, मैं बात बिहार की नीतीश सरकार का कर रहा हूं। यह सरकार तेजी से अलोकप्रिय हो रही है, लेकिन सरकार के मुखिया और सत्तारुढ़ दलों के नेताओं को शायद इसका कोई इल्म नहीं है। हाल के दिनों में मैंने मध्य बिहार और उत्तर बिहार के कई गांवों का दौरा किया है। मुझे माहौल बदले-बदले से लगे। 
महज डेढ़-दो साल पहले तक गांवों में नीतीश और उनकी सरकार का गुणगान होता था। क्या किसान, क्या मजदूर ! शिक्षित से लेकर अशिक्षितों तक, लगभग हर जाति-समुदाय में नीतीश के समर्थक मिल जाते थे। लेकिन अब नीतीश-समर्थक आसानी से नहीं मिलते। कुछ समय पहले तक नीतीश और उनकी सरकार की चर्चा लोगों के चेहरे पर सकारात्मक भाव पैदा कर देती थी, लेकिन अब स्थिति पलट चुकी है। अब लोगों के चेहरे शिकायती हो चले हैं। मुखिया, सरपंच, बिचौलिया, कर्मचारी, अधिकारी को छोड़ दें, तो सरकार की तारीफ के शब्द सुनने के लिए आपके कान तरस जायेंगे। 
सवाल उठता है कि लोकप्रियता के सातवें आसमान पर विराजमान एक सरकार, महज एक-डेढ़ साल में इतने नीचे क्यों आ गयी है ? विस्तृत परिप्रेक्ष्य में देखें, तो इसकी कोई एक वजह नहीं है। दरअसल, जिन कामों के बदौतल इस सरकार ने लोगों के दिलों में जगह बनायी थी, अब उसकी रिवर्स करेंट उठने लगी है। मजबूत कानून-व्यवस्था, इस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। लेकिन अब कानून-व्यवस्था की स्थिति तेजी से लचर हो रही है। आलम यह है कि उत्तर बिहार के गांवों में लगभग तीन दशकों के बाद एक बार फिर लोग डकैतों के आतंक के साये में रतजग्गा कर रहे हैं। कोशी अंचल में हाल के महीनों में डकैती की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं, लेकिन पुलिस इसे रोकने में नाकामयाब है। सुपौल, अररिया, मधेपुरा जिलों में तो जिला परिषद और प्रखंड समिति के नेताओं तक के नाम डकैतों के संरक्षक के रूप में सामने आये हैं। जिस भ्रष्टाचार के टॉनिक के बल पर सरकार ने ग्रामीण इलाकों में खूब पैसे खर्च किये और कुछ काम कराने में सफलता हासिल की थी, वही भ्रष्टाचार अब सरकार की छवि को नेस्तनाबूद कर रही है। सरकारी योजनाओं में हो रही लूट जनता को साफ नजर आने लगी है। दफ्तरों में व्याप्त रिश्वतखोरी की संस्कृति इतनी मजबूत हो चली है कि दफ्तर जाने के नाम से आम आदमी के पसीने छूट जाते हैं। 
इन सब बातों के इतर सत्तारुढ़ दलों की हालिया राजनीति भी लोगों को हजम नहीं हो रही। राष्ट्रीय राजनीति में पैठ बनाने की महत्वाकांक्षा के कारण जद(यू) ने हाल के दिनों में जो करतब दिखाये हैं, लोगों को उसके मायने समझ में नहीं आ रहे। और जो मायने समझ में आ रहे हैं, उसका "न्याय के साथ विकास'' के नारे से कोई रिश्ता नहीं बनता। इस सब के अलावा आम लोगों की समस्याओं को लेकर सरकार की घटती दिलचस्पी ने भी लोगों का दिल तोड़ा है। गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से प्रदेश भाजपा और जद(यू) के नेताओं ने खुद को जमीनी राजनीति से दूर कर लिया है। दोनों दल के कार्यकर्ता जनता से कटते जा रहे हैं। शुरू-शुरू में प्रशासनिक मशीनरी ने प्रो-पीपुल होने का संकेत दिया था। लेकिन अब प्रशासन का रुख पहले की तरह एंटी-पीपुल हो गया है। प्रशासन पर सरकार की पकड़ हाल के दिनों में लगातार ढिली होती गयी है। तीसरी और सबसे बड़ी वजह अधूरी घोषणाएं हैं। गौरतलब है कि बीते वर्षों में नीतीश सरकार ने प्रदेश में रोजगार, विकास आदि की घोषणाओं की बरसात कर दी थी। इसके कारण आम आदमी की अपेक्षा काफी बढ़ गयी थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बीत रहे हैं, लोग खुद को ठगे महसूस कर रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं कि सरकार की अधिकांश घोषणाएं कागज पर ही दम तोड़ रही हैं। लेकिन इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि सत्ताधारी दल के नेता इन सबसे अनजान है। जनता ने इस सरकार को एक मजबूत राजनीतिक समीकरण दे रखा है। लेकिन राज्य के नेता किसी तीसरे समीकरण की खोज में मशगूल है। जनता को ऐसी अनावश्यक कसरतों के मायने भी समझ में नहीं आ रहे हैं। दिल्ली के लिए दुबले होते जा रहे नीतीश को शायद मालूम नहीं कि यहां पटना में ही उनकी जमीन धीरे-धीरे खिसक रही है। 

3 टिप्‍पणियां:

रचना दीक्षित ने कहा…

क्या यह सच है?

राष्ट्रीय स्तर के अखबार न्यूज़ चैनल कुछ इस तरह नहीं दिखा रहे है.

हो सकता है जमीनी हकीकत वाही हो जो आप लिख रहे हैं.

रंजीत/ Ranjit ने कहा…

Rachna jee, yah sab baat field study par aadharit hai. maine apnee or se kuch nahin kaha hai.
Nationalor regional media ke addhar par to all is well hai hee...

पुष्यमित्र ने कहा…

सटीक विश्लेषण