दहाये हुए देस का दर्द-54
इन दिनों बिहार के कोशी प्रमंडल में कबीर की वाणी- "मरनो भला विदेश में जहां न अपना कोय'' साकार हो रही है। कोशी प्रमंडल के गांवों में पलायन की आंधी आयी हुई है। जिसे देखो वही कंधे पर गठरी बांधकर रेलवे स्टेशन की ओर भागे जा रहा है। कोई गुजरात जा रहा है, तो कोई पंजाब। कोई लुधियाना तो कोई सूरत। कोई अजमेर तो कोई कश्मीर भी। और न जाने कहां-कहां... गांव- के- गांव खाली हो गये हैं। सिर्फ बच्चे, बुढ़े और औरतें ही बच गये हैं। सुपौल के राघोपुर स्टेशन पर एक मजदूर से पूछता हूं, "क्यों भाई, अभी तो धान रोपाई का सीजन है, क्यों भागे जा रहे हो ?'' जवाब मिलता है, " नै रोपाया धान, अब तो पूर्वा नक्षत्र जाने वाला है। अब का होगी रोपाई-धोपाई ? कब तक सरं (आकाश) की ओर ताकते रहते? तो सोचे कि परदेश ही चला जाऊं, वैसे भी गांव में अब लालटेन लेकर भी खोजियेगा तो एको जन (आदमी) नहीं मिलेगा।'
जी हां, गांव खाली हो गये हैं। आदमी को जीने के लिए अन्न चाहिए। अन्न की खोज में इंसान गांव क्या दुनिया तक को छोड़ देता है। झारखंड के गांवों में अक्सर देखते रहा हूं। पलामू में तो हजारों किसानों ने सरकार से दुनिया छोड़ने की लिखित अनुमति मांगी है। उनका कहना कि वे मरने से पहले कलंकित होना नहीं चाहते। भुखमरी के बाद हमारी बहुत फजीहत होती है। सरकार और राजनीतिक पार्टियां हमारी लाशों पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आती। कोई हमारी मौत को भुखमरी साबित करने के लिए पिल पड़ता है तो कोई इसे बीमारी से हुई मौत साबित करने के लिए एड़ी-चोटी एक कर देता है। इससे तो बहुत बेहतर है- इच्छा मौत। हम भूख के हाथों मरना नहीं चाहते, हमें इच्छा मौत का अधिकार दे दो।
यह हमारी व्यवस्था का एक पहलू है। इसमें भूख है, गरीबी है, पलायन है, बाढ़ और सुखाड़ है और असंतोष भी है । दूसरी ओर व्यवस्था का दूसरा पहलू भी है। इसमें सरकार है, मंत्री-विधायक-एमपी हैं, अधिकारी और सत्ताई दलाल हैं और सब-के-सब चकाचक हैं। व्यवस्था के इस पहलू में करोड़ों रुपये का बजट वाला स्वनामधन्य नरेगा भाी है। बकौल प्रधानमंत्री, "नरेगा ने मजदूर-पलायन को रोकने में बहुत मदद की है।' सच में, इस नरेगा में बहुत पैसा खर्च हो रहा है। तभी तो हर बीडीओ के चार-पांच शहरों में फ्लैट हो गये हैं। गांव में मुखिया लोगों की जमीन का रकवा बढ़ रहा है। अब वे भी चरपहिया से कम पर पैर नहीं धरते। जन सेवक बाबू लोगों के बच्चे हैवी डोनेशन पर डॉक्टरी की पढ़ाई करने बड़े शहर जा रहे हैं। और जिला परिषद एवं ब्लॉक समिति वाले विधायक बनने के लिए कसमसा रहे हैं। नरेगा का कमाल जो है भैया।
कोशी प्रमंडल के सुपौल जिले के ही नरेगा-बजट को देखें। 50 करोड़ रुपये सालाना । अभी तक 19 करोड़ वे खर्च भी कर चुके हैं। आप पूछेंगे कैसे - वे जवाब देंगे, रिकॉर्ड बुक देख लीजिए। अब तक कई लाख मजदूरों को काम दिया जा चुका है। तीन लाख मजदूरों को जॉब कार्ड वितरीत किया जा चुका है। आप पूछेंगे- हुजूर वहां गांव में तो कोई है ही नहीं, फिर आपने आप रजिस्टर में हजारों मजदूरों की अंगुलियों के निशान कहां से ले आये? आप तो जादूगर ठहरे हुजूर! जो पिछले दो साल से गांव में नहीं है, आपने उसकी उंगली के निशान भी ले लिये! जादूगरी के इस हुनर पर दिलो-जां लुटाने का मन करता है! वो जवाब देंगे- गांव जाकर देखिये, हर दिन हजारों मजदूरों को रोजगार दिया जा रहा है। आप कहेंगे- हुजूर वहां कोई नहीं है! बुढ़े-बच्चे से काम लेते हैं क्या ?
इसके बाद वे आपको, ड्रिंक ऑफर करेंगे, तले हुए चखना के साथ। चौअन्नी बिखेरते हुए अठन्नी दिखायेंगे ! अगर मान गये तो बल्ले-बल्ले, नहीं तो ? वे आपको पागल-ढागल करार देकर हाजत में बन करवा देंगे। आप हाजत में रोयेंगे और वे आपका मजाक उड़ायेंगे। सा.. बहुत आया था मजदूरों का फरिश्ता बनने।
इन दिनों बिहार के कोशी प्रमंडल में कबीर की वाणी- "मरनो भला विदेश में जहां न अपना कोय'' साकार हो रही है। कोशी प्रमंडल के गांवों में पलायन की आंधी आयी हुई है। जिसे देखो वही कंधे पर गठरी बांधकर रेलवे स्टेशन की ओर भागे जा रहा है। कोई गुजरात जा रहा है, तो कोई पंजाब। कोई लुधियाना तो कोई सूरत। कोई अजमेर तो कोई कश्मीर भी। और न जाने कहां-कहां... गांव- के- गांव खाली हो गये हैं। सिर्फ बच्चे, बुढ़े और औरतें ही बच गये हैं। सुपौल के राघोपुर स्टेशन पर एक मजदूर से पूछता हूं, "क्यों भाई, अभी तो धान रोपाई का सीजन है, क्यों भागे जा रहे हो ?'' जवाब मिलता है, " नै रोपाया धान, अब तो पूर्वा नक्षत्र जाने वाला है। अब का होगी रोपाई-धोपाई ? कब तक सरं (आकाश) की ओर ताकते रहते? तो सोचे कि परदेश ही चला जाऊं, वैसे भी गांव में अब लालटेन लेकर भी खोजियेगा तो एको जन (आदमी) नहीं मिलेगा।'
जी हां, गांव खाली हो गये हैं। आदमी को जीने के लिए अन्न चाहिए। अन्न की खोज में इंसान गांव क्या दुनिया तक को छोड़ देता है। झारखंड के गांवों में अक्सर देखते रहा हूं। पलामू में तो हजारों किसानों ने सरकार से दुनिया छोड़ने की लिखित अनुमति मांगी है। उनका कहना कि वे मरने से पहले कलंकित होना नहीं चाहते। भुखमरी के बाद हमारी बहुत फजीहत होती है। सरकार और राजनीतिक पार्टियां हमारी लाशों पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आती। कोई हमारी मौत को भुखमरी साबित करने के लिए पिल पड़ता है तो कोई इसे बीमारी से हुई मौत साबित करने के लिए एड़ी-चोटी एक कर देता है। इससे तो बहुत बेहतर है- इच्छा मौत। हम भूख के हाथों मरना नहीं चाहते, हमें इच्छा मौत का अधिकार दे दो।
यह हमारी व्यवस्था का एक पहलू है। इसमें भूख है, गरीबी है, पलायन है, बाढ़ और सुखाड़ है और असंतोष भी है । दूसरी ओर व्यवस्था का दूसरा पहलू भी है। इसमें सरकार है, मंत्री-विधायक-एमपी हैं, अधिकारी और सत्ताई दलाल हैं और सब-के-सब चकाचक हैं। व्यवस्था के इस पहलू में करोड़ों रुपये का बजट वाला स्वनामधन्य नरेगा भाी है। बकौल प्रधानमंत्री, "नरेगा ने मजदूर-पलायन को रोकने में बहुत मदद की है।' सच में, इस नरेगा में बहुत पैसा खर्च हो रहा है। तभी तो हर बीडीओ के चार-पांच शहरों में फ्लैट हो गये हैं। गांव में मुखिया लोगों की जमीन का रकवा बढ़ रहा है। अब वे भी चरपहिया से कम पर पैर नहीं धरते। जन सेवक बाबू लोगों के बच्चे हैवी डोनेशन पर डॉक्टरी की पढ़ाई करने बड़े शहर जा रहे हैं। और जिला परिषद एवं ब्लॉक समिति वाले विधायक बनने के लिए कसमसा रहे हैं। नरेगा का कमाल जो है भैया।
कोशी प्रमंडल के सुपौल जिले के ही नरेगा-बजट को देखें। 50 करोड़ रुपये सालाना । अभी तक 19 करोड़ वे खर्च भी कर चुके हैं। आप पूछेंगे कैसे - वे जवाब देंगे, रिकॉर्ड बुक देख लीजिए। अब तक कई लाख मजदूरों को काम दिया जा चुका है। तीन लाख मजदूरों को जॉब कार्ड वितरीत किया जा चुका है। आप पूछेंगे- हुजूर वहां गांव में तो कोई है ही नहीं, फिर आपने आप रजिस्टर में हजारों मजदूरों की अंगुलियों के निशान कहां से ले आये? आप तो जादूगर ठहरे हुजूर! जो पिछले दो साल से गांव में नहीं है, आपने उसकी उंगली के निशान भी ले लिये! जादूगरी के इस हुनर पर दिलो-जां लुटाने का मन करता है! वो जवाब देंगे- गांव जाकर देखिये, हर दिन हजारों मजदूरों को रोजगार दिया जा रहा है। आप कहेंगे- हुजूर वहां कोई नहीं है! बुढ़े-बच्चे से काम लेते हैं क्या ?
इसके बाद वे आपको, ड्रिंक ऑफर करेंगे, तले हुए चखना के साथ। चौअन्नी बिखेरते हुए अठन्नी दिखायेंगे ! अगर मान गये तो बल्ले-बल्ले, नहीं तो ? वे आपको पागल-ढागल करार देकर हाजत में बन करवा देंगे। आप हाजत में रोयेंगे और वे आपका मजाक उड़ायेंगे। सा.. बहुत आया था मजदूरों का फरिश्ता बनने।
6 टिप्पणियां:
हकीकत से आँखें मिलाती आपकी यह पोस्ट किसी भी संवेदनशील आदमी को झकझोरने के लिए काफी है। सही चित्रण - जो आज कोसी प्रभावित क्षेत्र में हो रहा है।
जीने लायक तो यह देश नहीं ही रह गया है, अब आप इसे मरने लायक भी मानने से ..........
ये इस देश की हकीकत है ........... पलायन करना जीवन की नियति बन गयी है ........
Narega kam dene ke liye nahi bana hai. hur jile ka yahi haal hai.. jutha anguthe ka nisan lagakar khub log malamal ho rahe hai.iske bangi hur jagah dekhne ko milte hai
... khud gramin vikas mantri hi is baat ko swekar karte hai...
bahut badhia lekh...
इसके बाद वे आपको, ड्रिंक ऑफर करेंगे, तले हुए चखना के साथ। चौअन्नी बिखेरते हुए अठन्नी दिखायेंगे ! अगर मान गये तो बल्ले-बल्ले, नहीं तो ? वे आपको पागल-ढागल करार देकर हाजत में बन करवा देंगे।
बहुत खूब .....!!
कलम काफी धार है ...अछि जगह वार किया है ....!!
Thanks, Hariqirat Haqeer jee.Thanks you all, who share this post and inspired me.
Ranjit
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