शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009

और अब खड़मांचल राज्य की मांग (व्यंग्य)

आम तौर पर घुंघरू दादा खड़मटोली मोहल्ले की किच-किच, खीच -खीच में कोई रूचि नहीं रखते। उनका मानना है कि मोहल्ला है, तो रगड़-झगड़, चोरी-नुक्की, छेड़-छाड़, गाली-गलौज और ओल-झोल-आफत आदि तो होंगे ही। मोहल्ले की बिजली समस्या पर उनकी टिप्पणी होती है, "बिजली किसी की घरवाली नहीं कि सात जनम तक साथ रहे । आये तो जाये नहीं।' एक दिन मोहल्ले के स्कूल के सामने वाली सड़क के खुले मेन होल में एक स्कूली बच्चा गिर गया और लोगों ने सड़क जाम कर दी। घुंघरू दादा का कहना था कि मोहल्ले के लोग पगला गये हैंं। अपने बच्चे को तो संभाल नहीं पाते, चले हैं नगर निगम को दुरूस्त करने। बुड़बक कहीं के..
घुंघरू दादा के दिन की शुरुआत हड़िया-भरे लोटा से होती है जो देर रात के गांजे की सोंट के साथ ही मुकम्मल होता है। शहर में गांजे की कमी होने पर घुंघरू दादा आपे से बाहर आ जाते हैं, सारा दिन बीड़ी फूंकते रहते हैं और सामने से गुजरने वाले हर शख्स को गलियाते रहते हैं। यहां तक कि कभी-कभी हवा, धूप, पेड़-पौधे तक को अपनी देसी-मार्के गालियों से रगेद देते हैं। "इ पुरवा हवा को ससुरा यही मोहल्ला भेंटाया था, चौबीसों घंटे सर्र-सर्राने के लिए...।
मोहल्ले के चौक के पीछे हाउसिंग बोर्ड के खंडहरनुमा घर के उत्तरवरिया कोने में मंगरा की चाय दूकान, उनका पसंदीदा बैठकखाना है। मंगरा को कभी-कभी गांव जाना पड़ता है। तब घुंघरू दादा ही दूकान के कर्ता-धर्ता की भूमिका में आ जाते हैं। हालांकि मंगरा की घरवाली हमेशा इसका विरोध करती है और कहती है, " मंगरा की अनुपस्थिति में दूकान का चारज उसके हाथ में होना चाहिए। घुंघरूआ दस के बेचकर पांच का हिसाब देता है और बाकी हड़िया-गांजे के लिए हड़प लेता है।'
लेकिन इधर तीन-चार दिनों से घुंघरू दादा के ऊपर एक नया सनक सवार हो गया है। बीच चौक में उन्होंने आमरन अनशन ठान दिया है। हड़िया और गांजा भी त्याग दिए हैं। कहते हैं, इस मोहल्ले को अलग करो। इसे राज्य का दर्जा दो। जब तक इस मोहल्ले को अलग राज्य नहीं बनाया जायेगा, हम अनशन नहीं तोड़ेंगे। घुंघरू दादा के इस आंदोलनकारी भेष को देखकर समूचा खड़मटोली सकते में है। लोग पूछ रहे हैं कि अचानक घुंघरू दादा पर अलग राज्य का भूत कहां से सवार हो गया ? उत्सुकता जब हद पार कर गयी, तो लोगों ने जाकर पूछ ही लिया, "दादा आप खड़मटोली को राज्य क्यों बनाना चाहते हैं, भला मोहल्ला भी राज्य बन सकता है क्या ? दादा कहने लगे,"प्रेस वालों को बुलाओ, फोटोग्राफरों को बुलाओ। कैमरे के सामने ही यह राज खोलेंगे। तुम्हें क्या मालूम कि यह खड़मटोली स्वतंत्रता से पहले से ही राज्य बनने की हैसियत रखता है। इस मोहल्ले के लोगों की जुबान दूसरे मोहल्ले के लोगों से अलग है। यहां के लोग मां की गाली से पहले बाप की गाली देते हैं। हड़िया बनाने में इस मोहल्ले का जवाब नहीं। इसे तो बहुत पहले अलग राज्य बना दिया जाना चाहिए था। अबे, मोहल्ला राज्य क्यों नहीं बन सकता ? हमारे मोहल्ले की आबादी, कई देशों से ज्यादा है। समूचे कामतापुर से ज्यादा लोग रहते हैं खड़मटोली में । सुन लो सब कोई, अगर अलग राज्य नहीं मिला तो मैं अनशन करके जान दे दूंगा।' लोगों ने कहा, "ठीक है दादा, प्रेस वाले आ जायेंगे, लेकिन पहले आप हमलोगों को तो बता दीजिए कि अलग राज्य बनाकर हमें मिलेगा क्या ? ' लोगों की जिज्ञाशा देखकर दादा भावुक हो गये। बोले, "अलग राज्य बनेगा, तो अपना शासन होगा। दूसरे मोहल्ले के लोगों के शोषण से मुक्ति मिलेगी। मैं इस राज्य का सीएम बनूंगा। खड़मटोली को को स्वर्ग बना दूंगा। ' लोगों ने पूछा,"लेकिन आप सीएम ही क्यों बनना चाहते हैं।' दादा बोले, "सीएम बनूंगा और सीएम ही बनूंगा। मोहल्ले के सबसे बड़े घर को मुख्यमंत्री आवास बनाऊंगा। देश-विदेश का दौरा करूंगा। दुनिया के सारे बैंकों में खाते खुलबाऊंगा। पत्नी, बेटे-बेटी के नाम से कई प्लॉट खरीदूंगा।' लोगों ने पूछा, "पर इससे मोहल्लेवालों को क्या फायदा होगा ?' दादा बोले, "फायदा होगा कैसे नहीं, सीएम बनते ही मैं हड़िया को राज्यकीय पेय घोषित कर दूंगा। गांजा की बिक्री खुलेआम होगी। मोहल्ले के सभी बेरोजगारों को सचिवालय में नौकरी दिला दूंगा। इस राज्य में कोई भी बेरोजगार नहीं रहेगा। जिसे नौकरी नहीं मिलेगी उसे बैठे-बिठाये पेंशन मिलेगा। सैर करने के लिए दोपहिया मोटर साइकल, बात करने के लिए मोबाइल और जेब खर्चे के लिए मासिक भत्ते मिलेेंगे। खड़मटोली में कोयले-लोहे की जितनी भी खदाने हैं, उन्हें मोहल्ले वालों के नाम लिख दूंगा।'
फिर क्या था, मोहल्लेवासियों में गजब की जोश आ गयी । दादा की जय-जयकार होने लगी । नारे गुंजने लगे, "हमारी मांग पूरी करो।' ... खड़मटोली को खड़मांचल बनाओ। घुंघरू दादा ! जिंदावाद !! '

3 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

समय-समाज के संदर्भ में यह व्यंग्य काफी अच्छा लगा।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

जिंदाबाद, जिंदाबाद।

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सलीम खान का हृदय परिवर्तन हो चुका है।
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत तीखा व्यंग है .......... लाजवाब .........