बुधवार, 13 मई 2009

काश ! ये कोशी फिर आ जाती

दहाये हुए देश का दर्द-44
जीवछपुर का पांचू राम, बालू फांके दोनों शाम
देह से हड्डी करे लड़ाई
तीन बच्चों की हो चुकी विदाई
चौथे की हो रही तैयारी
काश ! ये कोशी फिर आ जाती
सब कष्टों से मिल जाती मुक्ति
फिर न आंख से उड़ती लुत्ती
और दिल से चूता घाम
जीवछपुर का पांचू राम, बालू फांके दोनों शाम
पंद्रह दिन प्रलय में बीता
भसिया कर पांचू भित्ता पहुंचा
राघोपुर में रिक्शा खींचा
छठे माह जीबछपुर लौटा
निज जन्म भूमि में बन अंजान
जीवछपुर का पांचू राम, बालू फांके दोनों शाम
(शब्दार्थ- लुत्तीः चिंगारी, घामः पसीना, भित्ताः किनारा)
 
 
 

1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहूत ही शशक्त रचना है..........prabhaavi लिखा है