पंद्रहवें लोकसभा चुनाव के परिणामों में एक बहुत ही शुभ संकेत सामने आ रहा है। वह यह कि पूरे देश के मतदाताओं ने स्वच्छ और ईमानदार छवि के एक भी नेता को निराश नहीं किया है। स्वच्छ छवि के लगभग सभी नेता चुनाव जीत रहे हैं। उड़ीसा के लोगों ने तो नवीन पटनायक की स्वच्छ और ईमानदार छवि के कारण उन्हें भारी बहुमत दिया है। बिजू जनता दल उड़ीसा में क्लीन स्वीप कर रहा है। बिहार में भी कमोबेश यही हुआ है। नीतीश कुमार की अच्छी छवि को लोगों ने पसंद किया है। वहां बदनाम और दागदार पार्टी के सभी नेताओं का सूपड़ा साफ हो गया है। भ्रष्टाचार के लिए कम ही दिनों में कुख्यात हो चुके झारखंड में भी ईमानदार छवि के सारे नेता चुनाव जीत रहे हैं। इनमें झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी, भारतीय जनता पार्टी के कड़िया मुंडा और रामटहल चौधरी शामिल हैं और इस बार चुनाव जीतने के करीब हैं। झारखंड के एक अन्य स्वच्छ छवि के नेता इंदर सिंह नामधारी तो निर्दलीय होकर भी जीत के करीब हैं। आंध्र प्रदेश में विकास के लिए समर्पित और ठीक ठाक छवि के नेता चंद्र बाबू नायडू की पार्टी भी बेहतर प्रदर्शन कर रही है जबकि सारे राजनीतिक पंडितों ने उन्हें चूका हुआ मान लिया था। कांग्रेस की जीत में भी मुझे लगता है कि डॉ मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि का बहुत बड़ा योगदान है। भले ही राजनीतिक पंडित कांग्रेस की जीत का सारा क्रेडिट सोनिया और राहुल को देते रहे, लेकिन मेरे विचार से इस जीत में डॉ मनमोहन सिंह का फैक्टर ने भी काम किया है। केरल में वामपंथी पार्टियों की बुरी हार हुई है। इसकी सबसे बड़ी वजह रही भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के आला नेताओं का समझौतावादी रवैया। गौरतलब है कि केरल माकपा के महासचिव पिन्नरई विजयन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे। वे करोड़ों रुपये के एक घोटाले में दोषी बताये जा रहे थे, लेकिन माकपा ने उनका समर्थन किया। पार्टी ने सबकुछ जानबूझकर भी विजयन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, बल्कि उन्हें ज्यादा तरजीह दी। नतीजा सामने है। केरल में वामपंथी पार्टियों के पांव के नीचे से जमीन खिसक चुकी है।
यह इस बात का संकेत है कि देश के लोग भ्रष्टाचार के कैंसर से मुक्ति पाना चाहते हैं। भ्रष्टाचार के राक्षस से छटपटा रहे भारतीय मतदाता अब इससे मुक्ति पाना चाहते हैं। उन्होंने राजनीतिक पतन और भ्रष्टाचार के समुद्र में डूबे भारतीय राजनीति में ईमानदार लोगों को खोज-खोजकर समर्थन दिये हैं। भले ही अधिकांश लोकसभा सीटों पर लोगों को मैदान में खड़े उम्मीदवारों में अच्छे उम्मीदवार ढूंढने से भी नहींमिले, लेकिन जहां कहीं उन्हें ईमानदार और अच्छे उम्मीदवार दिखाई दिए उन्होंने पार्टी लाइन , धार्मिक लाइन और जातीय लाइन को छोड़कर अच्छे नेताओं का समर्थन किया। यह इस बात का संकेत भी है कि आने वाले समय में वही राजनेता राजनीति में टिके रहेंगे, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ होंगे। इससे पतनशील भारतीय राजनीति को एक नया दिशा मिलेगा । उम्मीद की जानी चाहिए कि भ्रष्टाचार को राजनीतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा मानने वाले नेता इससे सबक लेंगे। आइये हम कामना करें कि पंद्रहवें लोकसभा चुनाव के समुद्र मंथन का यह अमृत देश के सभी राजनेताओं को मिले। जो युवा राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं और अपने समाज को नेतृत्व देना चाहते हैं, वे इस संदेश को हृदयागम कर लें। भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए छटपटा रहे इस देश के सवा सौ करोड़ लोग उनकी राह देख रहे हैं। हिन्दुस्तान जिंदावाद। ईमानदारी जिंदावाद।
यह इस बात का संकेत है कि देश के लोग भ्रष्टाचार के कैंसर से मुक्ति पाना चाहते हैं। भ्रष्टाचार के राक्षस से छटपटा रहे भारतीय मतदाता अब इससे मुक्ति पाना चाहते हैं। उन्होंने राजनीतिक पतन और भ्रष्टाचार के समुद्र में डूबे भारतीय राजनीति में ईमानदार लोगों को खोज-खोजकर समर्थन दिये हैं। भले ही अधिकांश लोकसभा सीटों पर लोगों को मैदान में खड़े उम्मीदवारों में अच्छे उम्मीदवार ढूंढने से भी नहींमिले, लेकिन जहां कहीं उन्हें ईमानदार और अच्छे उम्मीदवार दिखाई दिए उन्होंने पार्टी लाइन , धार्मिक लाइन और जातीय लाइन को छोड़कर अच्छे नेताओं का समर्थन किया। यह इस बात का संकेत भी है कि आने वाले समय में वही राजनेता राजनीति में टिके रहेंगे, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ होंगे। इससे पतनशील भारतीय राजनीति को एक नया दिशा मिलेगा । उम्मीद की जानी चाहिए कि भ्रष्टाचार को राजनीतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा मानने वाले नेता इससे सबक लेंगे। आइये हम कामना करें कि पंद्रहवें लोकसभा चुनाव के समुद्र मंथन का यह अमृत देश के सभी राजनेताओं को मिले। जो युवा राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं और अपने समाज को नेतृत्व देना चाहते हैं, वे इस संदेश को हृदयागम कर लें। भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए छटपटा रहे इस देश के सवा सौ करोड़ लोग उनकी राह देख रहे हैं। हिन्दुस्तान जिंदावाद। ईमानदारी जिंदावाद।
2 टिप्पणियां:
स्वच्छ छवि के नेताओं के जीतने से अब उम्मीद की जा सकती है कि भारतीय राजनीति को एक नया दिशा मिलती जाएगी ।
अभी यह इतनी ख़ुशी जताने वाली बात नहीं है. बड़ी मुश्किलें हैं आम जनता के रास्ते में. कुछ ईमानदार लोग जीत गए हैं वहां नीति नियंताओं के पास बेईमानों को थोपने का कोई उपाय नहीं था. उन्हें भी वे बहुत दिनों तक ईमानदार रहने नहीं देंगे. बहुत जगहों से बेईमान भी जीते हैं. इसी दिल्ली से ऐसे भी लोग जीत गए हैं जो 84 के नरसंहार के जिम्मेदार लोगों के रिश्तेदार हैं. अब कोई लाख कहे कि गुनहगार का रिश्तेदार होना गुनाह नहीं है, लेकिन लालू की जगह रबड़ी क्या करती हैं, यह हम सब जानते हैं. यह भी जानते हैं कि इनके पहले टिकट सीधे गुनहगारों को ही दिए गए थे. तो? इसे क्या कहेंगे?
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