दहाये हुए देस का दर्द -12
रंजीत
कुसुमलाल कुम्हार की पदोन्नति हो गयीहै। कल तक वह एक राजनीतिक पार्टी का झंडा ढोते थे आज बाढ़-राहत के ठेकेदार हैं। उनके दरवाजे पर सुबह से शाम तक लोगों की भीड़ लगी रहती है। पान चबाते, तम्बाकू मलते और चाय की चुसकियां लेते ये लोग; कुसुमलाल के अवैतनिक सहयोगी हैं। पूरा दिन कोशी की त्रासदी सुनते-सुनाते (मनोरंजन के लिए) रहते हैं और शाम को राहत सामग्रियों का प्रसाद बांधकर अपने घरों को लौट जाते हैं। सरकारी रिकार्ड में इनका नाम बाढ़ पीड़ितों की सूची में दर्ज हो चुका है। इसलिए सभी प्रकार की राहत-सामग्रियों पर इनका हक है।
हैरत, क्षोभ और घृणा होती है कुसुमलाल जैसे लोगों से। घृणा के साथ पूछता हूं- शर्म नहीं आती, ऐसी हरामखोरी करने में ? जवाब मिलता है- किसी की निजी संपत्ति नहीं लूट रहा, सरकारी है इसलिए... फिर हम अकेले थोड़े कर रहे हैं ये सब। सभी पार्टी के नेता कर रहे हैं। बीडीओ, एसडीओ, ग्रामसेवकों, विधायकों से जो झूठन बचता है हम उसी में से थोड़ा-बहुत अपने समर्थकों को दे दे रहे हैं, तो कौन-सा जुर्म हो गया ?
भ्रष्ट और चरित्रहीन तंत्र का बास्तव में कुसुमलाल बहुत छोटा हिस्सा है। जो लूट जिला अधिकारियों, विधायकों और अधिकारियों के कोकश ने मचा रखी है, उसकी तुलना में कुसुमलाल तो चिंदी चोर ही कहलायेगा। दरअसल कुसुमलालों की हाइआर्की तैयार हो गयी है। बड़ा कुसुमलाल, छोटा कुसुमलाल और मझौला कुसुमलाल। बड़े कुसुमलाल ने बड़े शहरों में फ्लैट व जमीन खरीदनी शुरू कर दी है, मझौले अगल-बगल के शहरों में निवेश कर रहे हैं और छोटे समान भरने के लिए नये घर बनवा रहे हैं।
कोशी नदी परियोजना के एक अवकाश प्राप्त अभियंता के पास पहुंचता हूं। वे जो कहानी सुनाते हैं, वह विस्मयकारी है। इस अभियंता ने 30 साल की नौकरी में आठ बार निलंबित होने का रिकार्ड बनायाहै और आजकल अकेले भपटियाही गांव के अपने पुराने पैतृक मकान में रहते हैं। कहते हैं- मैंने ईमानदारी नहीं छोड़ी, उन्होंने (कोशी माफियाओं ने) मेरी जान छोड़ दी, लेकिन जीना हराम करार दिया। वे दावा करते हैं- पिछले 45 साल में कोशी नदी परियोजना के नाम पर माफियाओं ने अरबों रुपये लूटे होंगे। अगर जांच हो, तो यह बिहार का कुख्यात चारा घोटाला से भी बड़ा घोटाला साबित होगा। यहां तक की मरम्मत और रखरखाव की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तक फर्जी बनायी गयी, लेकिन कभी किसी सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की।
.. . तो आज अगर पीड़ितों के नाम पर आने वाली राहत-सामग्री और राशि लूटी जा रही है, तो किसी को कोई हैरत नहीं होता ? न सरकार को, न समाज को। शिविरों-झुग्गी-झोप़ड़ियों में पड़े लोगों से मिलता हूं , तो रुहें कांप जाती हैं। हर जुबान पर एक ही सवाल- कहां जायेंगे ? गांव तो नदी की धारा में विलीन हो गये ?
शिविरों और झुग्गियों में हर दिन मौतें हो रहीं हैं, लेकिन बाढ़ पीड़ित वहां से हटने का नाम नहीं ले रहे। नेता, अधिकारी, ठेकेदार और बिचौलिए के उदर से होकर पहुंचने वाली राहत-सामग्री प्रभावितों के पास आते-आते इतनी कम पड़ जाती है कि वहां हंगामा खड़ा हो जाता है। एक बाल्टी खिचड़ी में एक सौ लोगों को भोजन कराने वाले सरकारी अधिकारी प्रेस में बयान देते हैं और अगले दिन अखबार में खबर छप जाती है- बाढ़ पीड़ितों के हंगामा के कारण राहत प्रभावित !!! किसी भी अखबार ने आजतक कुसुमलाल जैसे सैयादों की खबर नहीं छापी। सुपौल जिला के प्रतापगंज प्रखंड के बीडीओ को पूछा- आखिर वह किस आधार पर पानी से अप्रभावित गांवों में राहत-सामग्री भेज रहे हैं वे लोग ? तो उन्होंने कहा कि लोग प्रशासन को बहला-फुसलाकर मुख्यालय से सामग्री उठा लाते हैं, हम क्या करें ?
आप ऐसे लोगों के घर पर छापा क्यों नहीं मारते ?
छोड़िये भी, ये साधारण लोग नहीं हैं।
सच में, ये असाधारण प्राणी हैं। घर-वार, जमीन-जायदाद, परिवार-बच्चे गंवा चुके लोगों का निवाला कोई साधारण मनुष्य नहीं चुरा सकता। यह काम कोई असाधारण प्राणी ही कर सकता है।
रंजीत
कुसुमलाल कुम्हार की पदोन्नति हो गयीहै। कल तक वह एक राजनीतिक पार्टी का झंडा ढोते थे आज बाढ़-राहत के ठेकेदार हैं। उनके दरवाजे पर सुबह से शाम तक लोगों की भीड़ लगी रहती है। पान चबाते, तम्बाकू मलते और चाय की चुसकियां लेते ये लोग; कुसुमलाल के अवैतनिक सहयोगी हैं। पूरा दिन कोशी की त्रासदी सुनते-सुनाते (मनोरंजन के लिए) रहते हैं और शाम को राहत सामग्रियों का प्रसाद बांधकर अपने घरों को लौट जाते हैं। सरकारी रिकार्ड में इनका नाम बाढ़ पीड़ितों की सूची में दर्ज हो चुका है। इसलिए सभी प्रकार की राहत-सामग्रियों पर इनका हक है।
हैरत, क्षोभ और घृणा होती है कुसुमलाल जैसे लोगों से। घृणा के साथ पूछता हूं- शर्म नहीं आती, ऐसी हरामखोरी करने में ? जवाब मिलता है- किसी की निजी संपत्ति नहीं लूट रहा, सरकारी है इसलिए... फिर हम अकेले थोड़े कर रहे हैं ये सब। सभी पार्टी के नेता कर रहे हैं। बीडीओ, एसडीओ, ग्रामसेवकों, विधायकों से जो झूठन बचता है हम उसी में से थोड़ा-बहुत अपने समर्थकों को दे दे रहे हैं, तो कौन-सा जुर्म हो गया ?
भ्रष्ट और चरित्रहीन तंत्र का बास्तव में कुसुमलाल बहुत छोटा हिस्सा है। जो लूट जिला अधिकारियों, विधायकों और अधिकारियों के कोकश ने मचा रखी है, उसकी तुलना में कुसुमलाल तो चिंदी चोर ही कहलायेगा। दरअसल कुसुमलालों की हाइआर्की तैयार हो गयी है। बड़ा कुसुमलाल, छोटा कुसुमलाल और मझौला कुसुमलाल। बड़े कुसुमलाल ने बड़े शहरों में फ्लैट व जमीन खरीदनी शुरू कर दी है, मझौले अगल-बगल के शहरों में निवेश कर रहे हैं और छोटे समान भरने के लिए नये घर बनवा रहे हैं।
कोशी नदी परियोजना के एक अवकाश प्राप्त अभियंता के पास पहुंचता हूं। वे जो कहानी सुनाते हैं, वह विस्मयकारी है। इस अभियंता ने 30 साल की नौकरी में आठ बार निलंबित होने का रिकार्ड बनायाहै और आजकल अकेले भपटियाही गांव के अपने पुराने पैतृक मकान में रहते हैं। कहते हैं- मैंने ईमानदारी नहीं छोड़ी, उन्होंने (कोशी माफियाओं ने) मेरी जान छोड़ दी, लेकिन जीना हराम करार दिया। वे दावा करते हैं- पिछले 45 साल में कोशी नदी परियोजना के नाम पर माफियाओं ने अरबों रुपये लूटे होंगे। अगर जांच हो, तो यह बिहार का कुख्यात चारा घोटाला से भी बड़ा घोटाला साबित होगा। यहां तक की मरम्मत और रखरखाव की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तक फर्जी बनायी गयी, लेकिन कभी किसी सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की।
.. . तो आज अगर पीड़ितों के नाम पर आने वाली राहत-सामग्री और राशि लूटी जा रही है, तो किसी को कोई हैरत नहीं होता ? न सरकार को, न समाज को। शिविरों-झुग्गी-झोप़ड़ियों में पड़े लोगों से मिलता हूं , तो रुहें कांप जाती हैं। हर जुबान पर एक ही सवाल- कहां जायेंगे ? गांव तो नदी की धारा में विलीन हो गये ?
शिविरों और झुग्गियों में हर दिन मौतें हो रहीं हैं, लेकिन बाढ़ पीड़ित वहां से हटने का नाम नहीं ले रहे। नेता, अधिकारी, ठेकेदार और बिचौलिए के उदर से होकर पहुंचने वाली राहत-सामग्री प्रभावितों के पास आते-आते इतनी कम पड़ जाती है कि वहां हंगामा खड़ा हो जाता है। एक बाल्टी खिचड़ी में एक सौ लोगों को भोजन कराने वाले सरकारी अधिकारी प्रेस में बयान देते हैं और अगले दिन अखबार में खबर छप जाती है- बाढ़ पीड़ितों के हंगामा के कारण राहत प्रभावित !!! किसी भी अखबार ने आजतक कुसुमलाल जैसे सैयादों की खबर नहीं छापी। सुपौल जिला के प्रतापगंज प्रखंड के बीडीओ को पूछा- आखिर वह किस आधार पर पानी से अप्रभावित गांवों में राहत-सामग्री भेज रहे हैं वे लोग ? तो उन्होंने कहा कि लोग प्रशासन को बहला-फुसलाकर मुख्यालय से सामग्री उठा लाते हैं, हम क्या करें ?
आप ऐसे लोगों के घर पर छापा क्यों नहीं मारते ?
छोड़िये भी, ये साधारण लोग नहीं हैं।
सच में, ये असाधारण प्राणी हैं। घर-वार, जमीन-जायदाद, परिवार-बच्चे गंवा चुके लोगों का निवाला कोई साधारण मनुष्य नहीं चुरा सकता। यह काम कोई असाधारण प्राणी ही कर सकता है।
3 टिप्पणियां:
ये क्या रंजीत ( मलिक ) सिर्फ तीन गोली ?
सही कहा आपने. इस हाईरार्की में कुसुमलाल बीच में है. लेकिन इसे चिंदी चोर कहना ठीक नहीं होगा. किसी को चिंदी चोर कहना तो बहुत सब्जेक्टिव है. यही कुसुमलाल दस साल बाद एम एल ए हो जायेगा. जो लोग इस हाईरार्की में ऊपर बैठे हैं, पन्द्रह साल पहले कुसुमलाल की तरह 'चिंदी चोर' ही होंगे. लेकिन चूंकि उस समय किसी ने उसे चिंदी चोर कहकर छोड़ दिया होगा तो आज वे हईरार्की में ऊपर हैं. बहुत ऊपर.
बाढ़ पर आपकी पोस्ट पहली बार पढी. लेकिन इच्छा है कि बाकी भी पढूं.
shiv K jee aap ne is chor jamat kee janan prakriya ke taraf mera dhyan aakrisht karaya. badh-vyatha ke beech iskee pedigree analysis shayad vishyantar hoga. aapka aabhar
ranjit
एक टिप्पणी भेजें