शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2008

पानी और जोंक


दहाये हुए देस का दर्द-17
अब पानी ठहरने लगा है कुछ करो साथी
चिपके जोंकों से अपना दामन बचाओ साथी
तुलसी-चौरा की छोड़ो,बथान पर बंधे की सोचो काकी
सांझ के दीप से कुकुरमाछी को भगाओ काकी
जलदराजों की पाचन-शक्ति को मत कम समझो दादी
इनके उदर में है इस नदी की लाश दादी
इनके सूरतो-शक्ल पर न जाना मांझी
नाव डूबाकर लहू पीने के ये हैं आदि
अब पानी ठहरने लगा है कुछ करो साथी
घिरते जोंकों से अपना दामन बचाओ साथी

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