मंगलवार, 21 अक्टूबर 2008

नाकाबिले बर्दाश्त गुनाह

दहाये हुए देस का दर्द-14
नाफ़रमानी की हद तोड़कर
अदलहुक्मी के अंजाम से बेपरवाह होकर
तुमने यह क्या कर दी कोशी ?
क्या तुम्हें मालूम नहीं ??
कि गोल्फ कोर्स में बेधड़क घूसने
वीआइपी रेसीडेंस के नेमप्लेट को पढ़े बगैर अंदर दाखिल होने
वीआइपी प्रोटोकॉल को तोड़ने
कि सजा क्या हो सकती है ???
क्या तुम्हें पुलिस से डर नहीं लगता ?
क्या लाल बत्तियां देख तुम्हें नानी याद नहीं आती ??
क्या अंग्रेजी और देसी गालियों के कॉकटेल, तुम्हारी चमड़ी को नहीं बेधते ???
तुमने ठीक नहीं की कोशी !
गोल्फ कोर्स, लाल बत्ती और प्रोटोकॉल के बगैर जीने का दर्द
हजार-हजार गुना ज्यादा है
अन्न, पानी और छत छूटने के दर्द से
झुग्गियों-झोपड़ियों के भुक्कड़ों से बात करना
ज्यादा गमकारी है
शिविरों में दिन गुजारने के गम से
तुम सभ्य नहीं हुई , कोशी !
तुमने आम और खास के अंतर को नहीं समझा
हाकिमो-हुक्मरानो को यूं नाराज करना
एक नाकाबिले बर्दाश्त गुनाह है
विश्वास न हो, तो बाजुओं में झांक लो
चारों ओर जो सुनाई दे रहा, वह शोर नहीं
इंसानी कराह है

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