
शिक्के का यह एक पहलू है, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ-साथ उनके राजनीतिक-प्रशासनिक अमले भी शामिल है। शिक्के के दूसरे पहलू में प्रदेश की 10 करोड़ जनता है जिसे न तो विकास का अर्थ मालूम है और न ही यात्रा का । उसकी नजर में यात्रा एक जगह से दूसरे जगह जाने को कहते हैं, जिसमें काफी परेशानी होती है। लेकिन यात्रा से विकास भी हो सकता है, यह बात पहली बार उनके समक्ष आयी है। वे इन दिनों आपस में बात कर इस अतर्सबंध को जानने की कोशिश में लगे हुए हैं। उधर मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि उनकी विकास यात्रा का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार से प्रदेश को मुक्त कराना है। इस कार्य के लिए लोगों का समर्थन चाहिए , बिना उनके सहयोग के हम विकसित बिहार का ढांचा खड़ा नहीं कर सकते। संक्षेप में कहें तो नीतीश कुमार ने एक ऐसा बीड़ा उठाया है जो आजतक किसी राजनेता ने नहीं उठाया। वे चरित्रवान बिहार बनाना चाहते हैं और इस नाते समाज सुधारक की भूमिका में हैं। वे मूल्य, उसूल, सिद्धांत की पुनर्स्थापना करना चाहते हैं और इस नाते वह शिक्षक और संन्यासी की भूमिका में भी हैं।
कितनी सुंदर लगती हैं ये बातें। बिल्कुल सिनेमा की तरह। लेकिन जैसा कि सिनेमा का खुमार हॉल से कदम बाहर रखते ही उतर जाता है, कुछ उसी तरह नीतीश कुमार का सब्जबाग भी उनके काफिले की गाड़ियों के स्टार्ट होते ही छू-मंतर हो जा रहा है। नीतीश कुमार को क्या यह मालूम नहीं कि जिस जनता को वह मंच पर बुलाकर, अपने बगल में खड़ा कर भाषण दिलवा रहे हैं, वह उनके जाते ही फिर से वैसा ही बेचारा हो जायेगा जैसा पहले था।
आम जीवन से भ्रष्टाचार दूर करने की बात करते हैं, मुख्यमंत्री, लेकिन उन्हें दिन के उजाले में भी लुटेरे नजर नहीं आते। मूल्यों की बात करते हैं, मुख्यमंत्री! क्या उन्हें मालूम नहीं कि मूल्यों का निर्माण पाठशाला में होता है और बिहार के पाठशालाओं में नौकरी करने वाले शिक्षक कितना समय स्कूल में बिताते हैं। मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव से जानता हूं कि राज्य के किसी भी सरकारी स्कूल में महज दो घंटे भी पठन-पाठन का काम नहीं होता। 80 प्रतिशत शिक्षक महीना में पांच दिन भी स्कूल नहीं जाते। इस सच से बिहार का बच्चा-बच्चा अवगत है, लेकिन मुख्यमंत्री को नहीं मालूम! अगर मालूम रहता, तो कम से कम जिन जिलों से वे विकास यात्रा कर लौटे हैं वहां शिक्षक स्कूलों में दिखाई देते। सभी को मालूम है कि शिक्षक नियुक्ति के मामले में भारी अनियमितताएं हो रही है, लेकिन मुख्यमंत्री इससे अनभिज्ञ हैं। वे जनता को पूछ रहे हैं कि बताइये आपके गांव में कौन-कौन अधिकारी चोर है। हास्यास्पद यह कि नरेगा के किसी भी मजदूर को उसकी पूरी मजदूरी नहीं मिलती। पीएमजीएसवाइ के तहत पिछले साल बनी सड़कें इस साल टूट गयी हैं, लेकिन मुख्यमंत्री गांव के अपढ़ ग्रामीणों से कह रहे हैं कि सड़क के काम पर ध्यान रखें। मुख्यमंत्री जी, दो जून की रोटी के लिए हलकान रहने वाली अपढ़ जनता को क्या मालूम कि किस सड़क के लिए कितना पैसा आवंटित हुआ है और इसके लुटेरे कौन-कौन हैं। लेकिन आपके एमएलए, अधिकारी और मंत्री को सब पता है। आप कार्रवाई क्यों नहीं करते ?
अगर जनता को भावुक बनाकर वोट लेने से ही बिहार का विकास हो जायेगा तो निश्चित रूप से यह विकास यात्रा सफल है। अगर इस यात्रा का निहितार्थ बदलाव लाने का है तो छह माह बाद एक बार फिर आप इन गांवों का दौरा कीजिएगा। जो शिकायत लोगों ने की थी, उन पर क्या कार्रवाई हुई, थोड़ा इस पर नजर घूमा लीजिएगा। सब पता चल जायेगा। अन्यथा कहावत तो है ही- भर दिने चले, ढाई कोस । जैसा कि सीतामढ़ी में उनकी सभा से लौट रही एक युवा महिला अपनी आक्रोशित माता को समझा रही थी- सब तमाशा छिये वोट कें, हम काहे शिकायत करतिये मुखिया, वार्ड सदस कें ? इ सब तें चल जेतिन्ह पटना-सटना , हम गरीब कें त एहि जंगल में रहै कें छै। पानी में रहि कें मगर स बैरी ! नय गे माय नै ! कहियो नै !!
1 टिप्पणी:
आपकी बात सोलह आने सही है...लेकिन इलाज क्या है
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