सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

वाह आदमी, आह आदमी

वाह आदमी, आह आदमी
इस दौर का खासम-खास आदमी
उस आदमी के दो हाथ हैं और एक जबान
दोनों में कौन ज्यादा लंबा
वह उसके हृदय के रक्त को ही है पता
ईर्ष्या-द्वेष, घूटन-टूटन, प्यार-मोहव्वत के घोल से ?
पैदा करता है वह एक हवा
अद्‌भूत हवा, भयावह हवा, सम्मोहक हवा
और कर लेता है हर महफिल पर कब्जा
वाह आदमी, आह आदमी
इस दौर का खासम-खास आदमी
हर भले मानुष को समझता है मुर्ख
क्योंकि वह भी है सत्ता की तरह पुष्ट और दुष्ट
कायनात के सारे प्रतिभा-उपलब्धि, सुयश पर है उसका एकाधिकार
जो
भीड़ में मुखर
एकांत में जर्जर
वह आदमी
हर सवाल के प्रति सशंक
हर जवाब के प्रति निश्चंत
लेकिन पहचानता है वह समय के क्रांतिक विंदु को
और तलाशता है इंसानी कंधा
जिसे प्रजातंत्र की सबसे बड़ी पूंजी मानी जाती है
वाह आदमी, आह आदमी
इस दौर का खासम-खास आदमी
कंधे, भीड़, प्रजातंत्र, सत्ता...
मीडिया के मार्फत या भाया मीडिया के शार्ट-कट रास्ते से
वह बना लेता है सीढ़ी
जिसे सुविधानुसार मोड़ा जा सके
जैसे मुड़ते हैं विचार और वाद
और पलटते हैं पारे, देह की गर्मी से
रंडियां पॉकेट की गर्मी से
वह अवगत है अपने समय के व्यसन से
उसे मालूम है
कि इस नशेड़ समय की जेब में
कब, कहां, किस समय
कितना डालना है - नशा
वाह आदमी, आह आदमी
इस दौर का खासम-खास आदमी
उसे मालूम है
कि किसे किस बात से तोड़ा जा सकता है
कि किसे किस बात से मोड़ा जा सकता है
कि किसे किस बात से जोड़ा जा सकता है
उसके हैं अनेक रूप
जैसे वह आदमी नहीं चाक हो
जैसे वह आदमी नहीं परमाणु बम हो
जैसे वह आदमी नहीं कोई विज्ञापन हो
वाह आदमी, आह आदमी
इस दौर का खासम-खास आदमी

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बस यही दौर है-अच्छी अभिव्यक्ति!!

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुदर अभिव्‍यक्ति की है...महा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं..