दहाये हुए देस का दर्द-36
पूर्वी बिहार, असम, उत्तरी बंगाल और नेपाल के इलाके में एक खानबदोश आदिम जनजाति पायी जाती है जिसे अघोरी कहते हैं। इस समुदाय के लोग अत्यंत असभ्य और अमानवीय प्रवृत्ति के होते हैं और प्रेतात्मा की अराधना करते हैं। अस्मसान, कब्रिस्तान, मूर्दा घाट इनका प्रिय स्थल होता है। ये इतने अमानवीय होते हैं कि इन्हें अधजली लाशों के भक्षण में भी कोई हिचकिचाहट नहीं होती। मूर्दा घाट की अधजली लकड़ी, लाश दहन के कपड़े आदि का यह प्रेम से इस्तेमाल करते हैं। यही कारण है कि अधोरी समुदाय सदियों से समाज से बहिष्कृत है और असभ्य एवं अमानवीयता के प्रतीक माना जाता है। लेकिन कोशी नदी परियोजना के कुछ अभियंताओं ने इन अघोरियों को भी पीछे छोड़ दिया है। अघोर समुदाय तो लाश का शिकार करते हैं लेकिन कोशी परियोजना के अभियंता तो लाश पर कमाई कर रहे हैं। इनकी आत्मा मर चुकी है। अघोर समुदाय तो प्रेतात्मा की उपासना करते हैं और उनके भी कुछ उसूल होते हैं। लेकिन इन अभियंताओं का शायद कोई उसूल नहीं है और ये अवैध धन के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं।
मैं शुरू से कहता आ रहा हूं कि कोशी नदी ने खुद धारा नहीं बदली, बल्कि भ्रष्टाचारियों ने इस नदी को मार्ग बदलने के लिए मजबूर कर दिया। और पिछले अगस्त के ऐतिहासिक कोशी हादसे के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वह है- कोशी प्रोजेक्ट के भ्रष्ट अभियंता एवं भ्रष्ट सरकारी मशीनरी । भ्रष्टाचारियों का यह गठबंधन पिछले 20-30 वर्षों से कोशी तटबंध के रखरखाव, गाद की सफाई और मरम्मत के कार्य में अरबों रुपये का घोटाला करते आ रहा है। जिसके परिणामरूवरूप कोशी धारा बदलने के लिए मजबूर हुई। लेकिन जो बात कल सामने आयी उसने यह साबित कर दिया कि ये अभियंता इंसान हैं ही नहीं। ये तो धनलोलुप जंतु हैं, जो रुपये खाते हैं, रुपये पीते हैं, रुपये को ही पूजते हैं और रुपये को ही सोते हैं ।
कल कुसहा तटबंध के मरम्मत कार्य के दो प्रभारी अभियंताओं की गिरफ्तारी हुई। इनमें एक कार्यकारी अभियंता हैं जबकि दूसरे सहायक अभियंता। कार्यकारी अभियंता का नाम कामेश्वर नाथ सिंह है जबकि सहायक अभियंता का नाम है- विजय कुमार सिन्हा। दोनों ने कुसहा में तटबंध के मरम्मत-कार्य में जमकर लूट मचाई । महज दो महीने में ही इन्होंने लाखों रुपये का अवैध धन संचय किया। कहने की जरूरत नहीं है कि यह धन तटबंध की मरम्मत कर रहे ठेकेदारों से वसूली गयी। ऐसी स्थिति में यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि इन्होंने घूस लेकर कार्यों के जो प्रमाणपत्र दिए होंगे वे कैसे होंगे। जाहिर सी बात है कि इन्होंने पैसे के लिए तटबंध की गुणवत्ता से समझौता किया है। बिहार सरकार की निगरानी टीम ने कल इन्हें 11 लाख 36 हजार रुपये की नकदी राशि के साथ रंगे हाथ गिरफ्तार किया। ये दोनों रुपये लेकर कोशी प्रोजेक्ट के वीरपुर स्थित मुख्यालय से पटना जा रहे थे।
वीरपुर और कुसहा के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मुझे बताया है कि ये राशि पिछले सात दिनों की वसूली है। इससे पहले भी उन्होंने लाखों रुपये वसूले और उन्हें ठिकाने लगाने में कामयाब रहे, जिसका पता निगरानी अभी तक नहीं लगा पायी है। वैसे निगरानी विभाग ने इन अभियंताओं के घर से जो दस्ताबेज बरामद किए हैं उनसे खुलासा हुआ है कि इन लोगों के पास करोड़ों रुपये की नामी-बेनामी संपत्ति के प्रमाण मिल रहे हैं। जिनमें शहर में जमीन, कारखाना, मील आदि शामिल है।
घिन्न आती है ऐसे अभियंताओं पर! कोशी हादसे से बर्बाद हो चुके लाखों लोगों के कष्टों को देखकर भी इनका दिल नहीं पिघला। वीरपुर शहर के जिस कार्यालय में ये बैठते हैं उसके खिड़की से ही कोशी की बर्बादी साफ दिखाई देती है। शहर में चौबीसो घंटे उजड़े हुए लोगों की कराह गुंजती रहती है। लेकिन इन्हें लोगों के कष्टों से क्या लेना! ये तो अपना घर भर रहे हैं। भले ही इसके चलते कुसहा-2 की पृष्ठभूमी तैयार हो जाय तो हो जाय, इन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता। बात लौटकर फिर अघोर समुदाय की ओर आती है। भले ही अघोरी अमानवीयता के प्रतीक हों, लेकिन कहा जाता है कि ये जब अपने देवता (प्रेत) की अराधना करते हैं तो दुआ मांगते हैं- भगवान आर्शीवाद दो कि हमें कभी किसी अकाल मौत का शिकार लाश न मिले।
पूर्वी बिहार, असम, उत्तरी बंगाल और नेपाल के इलाके में एक खानबदोश आदिम जनजाति पायी जाती है जिसे अघोरी कहते हैं। इस समुदाय के लोग अत्यंत असभ्य और अमानवीय प्रवृत्ति के होते हैं और प्रेतात्मा की अराधना करते हैं। अस्मसान, कब्रिस्तान, मूर्दा घाट इनका प्रिय स्थल होता है। ये इतने अमानवीय होते हैं कि इन्हें अधजली लाशों के भक्षण में भी कोई हिचकिचाहट नहीं होती। मूर्दा घाट की अधजली लकड़ी, लाश दहन के कपड़े आदि का यह प्रेम से इस्तेमाल करते हैं। यही कारण है कि अधोरी समुदाय सदियों से समाज से बहिष्कृत है और असभ्य एवं अमानवीयता के प्रतीक माना जाता है। लेकिन कोशी नदी परियोजना के कुछ अभियंताओं ने इन अघोरियों को भी पीछे छोड़ दिया है। अघोर समुदाय तो लाश का शिकार करते हैं लेकिन कोशी परियोजना के अभियंता तो लाश पर कमाई कर रहे हैं। इनकी आत्मा मर चुकी है। अघोर समुदाय तो प्रेतात्मा की उपासना करते हैं और उनके भी कुछ उसूल होते हैं। लेकिन इन अभियंताओं का शायद कोई उसूल नहीं है और ये अवैध धन के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं।
मैं शुरू से कहता आ रहा हूं कि कोशी नदी ने खुद धारा नहीं बदली, बल्कि भ्रष्टाचारियों ने इस नदी को मार्ग बदलने के लिए मजबूर कर दिया। और पिछले अगस्त के ऐतिहासिक कोशी हादसे के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वह है- कोशी प्रोजेक्ट के भ्रष्ट अभियंता एवं भ्रष्ट सरकारी मशीनरी । भ्रष्टाचारियों का यह गठबंधन पिछले 20-30 वर्षों से कोशी तटबंध के रखरखाव, गाद की सफाई और मरम्मत के कार्य में अरबों रुपये का घोटाला करते आ रहा है। जिसके परिणामरूवरूप कोशी धारा बदलने के लिए मजबूर हुई। लेकिन जो बात कल सामने आयी उसने यह साबित कर दिया कि ये अभियंता इंसान हैं ही नहीं। ये तो धनलोलुप जंतु हैं, जो रुपये खाते हैं, रुपये पीते हैं, रुपये को ही पूजते हैं और रुपये को ही सोते हैं ।
कल कुसहा तटबंध के मरम्मत कार्य के दो प्रभारी अभियंताओं की गिरफ्तारी हुई। इनमें एक कार्यकारी अभियंता हैं जबकि दूसरे सहायक अभियंता। कार्यकारी अभियंता का नाम कामेश्वर नाथ सिंह है जबकि सहायक अभियंता का नाम है- विजय कुमार सिन्हा। दोनों ने कुसहा में तटबंध के मरम्मत-कार्य में जमकर लूट मचाई । महज दो महीने में ही इन्होंने लाखों रुपये का अवैध धन संचय किया। कहने की जरूरत नहीं है कि यह धन तटबंध की मरम्मत कर रहे ठेकेदारों से वसूली गयी। ऐसी स्थिति में यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि इन्होंने घूस लेकर कार्यों के जो प्रमाणपत्र दिए होंगे वे कैसे होंगे। जाहिर सी बात है कि इन्होंने पैसे के लिए तटबंध की गुणवत्ता से समझौता किया है। बिहार सरकार की निगरानी टीम ने कल इन्हें 11 लाख 36 हजार रुपये की नकदी राशि के साथ रंगे हाथ गिरफ्तार किया। ये दोनों रुपये लेकर कोशी प्रोजेक्ट के वीरपुर स्थित मुख्यालय से पटना जा रहे थे।
वीरपुर और कुसहा के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मुझे बताया है कि ये राशि पिछले सात दिनों की वसूली है। इससे पहले भी उन्होंने लाखों रुपये वसूले और उन्हें ठिकाने लगाने में कामयाब रहे, जिसका पता निगरानी अभी तक नहीं लगा पायी है। वैसे निगरानी विभाग ने इन अभियंताओं के घर से जो दस्ताबेज बरामद किए हैं उनसे खुलासा हुआ है कि इन लोगों के पास करोड़ों रुपये की नामी-बेनामी संपत्ति के प्रमाण मिल रहे हैं। जिनमें शहर में जमीन, कारखाना, मील आदि शामिल है।
घिन्न आती है ऐसे अभियंताओं पर! कोशी हादसे से बर्बाद हो चुके लाखों लोगों के कष्टों को देखकर भी इनका दिल नहीं पिघला। वीरपुर शहर के जिस कार्यालय में ये बैठते हैं उसके खिड़की से ही कोशी की बर्बादी साफ दिखाई देती है। शहर में चौबीसो घंटे उजड़े हुए लोगों की कराह गुंजती रहती है। लेकिन इन्हें लोगों के कष्टों से क्या लेना! ये तो अपना घर भर रहे हैं। भले ही इसके चलते कुसहा-2 की पृष्ठभूमी तैयार हो जाय तो हो जाय, इन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता। बात लौटकर फिर अघोर समुदाय की ओर आती है। भले ही अघोरी अमानवीयता के प्रतीक हों, लेकिन कहा जाता है कि ये जब अपने देवता (प्रेत) की अराधना करते हैं तो दुआ मांगते हैं- भगवान आर्शीवाद दो कि हमें कभी किसी अकाल मौत का शिकार लाश न मिले।
2 टिप्पणियां:
शर्मनाक !!!
aapne jo link diya ha apne blog par vo mere papaji ka ha main is blog ko chalati hun papaji ko vakt nahi milta na par vo sabke comm padhte jarur han or main unke reply bhi deti hun jasa papaji kahte han..
unko koi problem nahi hogi aapne jo link diya ha main janti hun.. :)
Aapko unka blog pasnd aaya uske papaji ki or se bhi or meri or se bhi bahut2 dhanyavad...
एक टिप्पणी भेजें