बुधवार, 4 मार्च 2009

रात वाली गाड़ी (पहली कड़ी)

इयन जैक्स
आज से तीस वर्ष पहले इंग्लैंड निवासी इयन जैक्स भारत आये थे। भारत भ्रमण के दौरान वे भारतीय रेल पर इतना मोहित हुए कि तीस साल यहां की रेलगाड़ियों में ही गुजार दिये। इस दौरान वे देश के कोने-कोने की रेल गाड़ियों में घूमते-विचरते रहे। जैक्स हाल में ही अपने देश लौट गये हैं। उन्होंने अपनी रेल-यात्राओं पर एक यात्रा वृतांत भेजा है जो काफी दिलचस्प है। यहां मैं मूल अंग्रेजी में लिखे उनके यात्रा वृतांत का हिन्दी अनुवाद रख रहा हूं ।
दिल्ली से कोलकाता जा रही रात की इस गाड़ी में मैं सोने का प्रयास कर रहा हूं, लेकिन नींद नहीं आ रही। इसलिए मैं भारत की अपनी पिछली रेल-यात्राओं का स्मरण कर रहा हूं। करीब एक सौ यात्राओं को याद कर चुका हूं। यादों का यह सिलसिला बहुत लंबा है, मन थक रहा है। जो यात्राएं अभी याद नहीं आ रहीं उसे फिर कभी पर छोड़ रहा हूं। लेकिन अजीब-अजीब बातें और चीजें याद आ रही हैं- यात्राओं की अनगिनत सुबहें, सुबह के समय चाय के कुल्हड़ में डाली गयी सिगरेट की राखें, स्टेशन के प्लैटफार्म पर बैठकर दूसरी रूट की गाड़ियों का इंतजार वगैरह-वगैरह... भारत में गोल्ड फ्लैक सिगरेटों का नामी ब्रांड है और कोयले वाली इंजन की धुआं बेहतरीन धुआं है और इंजन की सिटी सबसे बेहतरीन शोर और चाय सबसे उत्तम पेय... सहयात्रियों से की गयी बातचीत भी मुझे सिद्दत से याद आ रही है। कानपुर के खोमचे वाले की आवाज- केमको, केमको... हाथ देखने वाले ज्योतिषी की भविष्यवाणी, बैरक से घर लौट रहे भारतीय सैनिकों के अल्हड़ विचार और सहयात्रियों के साथ एक रात की दोस्ती। कभी-कभी यह अल्पकालिक दोस्ती भी काफी रागात्मक रूप ले लेती थी।
तीस वर्ष पहले जब मैं यात्रियों से मिलता था, तो वे रेलगाड़ियों से भली-भांती परिचित होते थे। इस कारण नहीं कि वे रेलगाड़ियों के प्रति विशेष रूचि रखते थे, बल्कि इसलिए कि रेल भारत में आवागमन का सबसे प्रमुख साधन है। वहां की सड़कें खतरे से खाली नहीं हैं और विमान-यात्रा तो आज भी खास व्यक्तियों के लिए ही है। भारत के लोग ट्रेनों के बारे में काफी जानकारी रखते हैं। मसलन कि कौन-सी गाड़ी वाहियात है, कौन-सी गाड़ी की टाइमिंग अच्छी है और कौन तेज चलती है और कौन-कौन सी गाड़ियां बेहद सुस्त रफ्तार से चलती हैं। लोग आपको बतायेंगे कि बरकाकाना जाने वाली गाड़ी के 9 नंबर के डिब्बे में अगर आप बैठेंगे तो आपको गोमो में गाड़ी बदलनी नहीं पड़ेगी। यह असाधारण ज्ञान है। यहां इंग्लैंड में लोग आपको ट्रेन के बारे में इतने विस्तार से नहीं बता सकते। इसके लिए आपको रेलवे कार्यालय से संपर्क करना पड़ेगा, लेकिन भारत के स्टेशनों पर ये बातें आपको साधारण यात्री भी बता देंगे। लोग कहेंगे- ओह श्रीमान आप तो अपर इंडिया से मत ही जाइये, इससे तो आप गंतव्य तक पहुंचते-पहुंचते बुढ़े हो जायेंगे। लोग आउटर सिगनल, लूप लाइन, अप ट्रेन, डाउन ट्रेन की भी सूचना दे देते हैं। वे मेल, एक्सप्रेस, सुपर फास्ट, पैसेंजर ट्रेनों के अंतर को समझते हैं। मानो उनके पास न्यूमैन की किताब हो। जब 1976 में मैं पहली बार भारत गया था तो न्यूमैन की किताब का 110वीं वर्षगांठ मनायी जा रही थी। इसमें आपको बताया जाता है कि अगर आपको पटना से पूणे जाना है तो आपके लिए कौन-कौन से मार्ग और कौन-कौन सी गाड़ियां हो सकते हैं। भारतीय लोग कहते हैं- रेल भारत को जोड़ती है, कि रेलवे ब्रिटिशों द्वारा भारत को दी गयी सर्वोतम उपहार है।
मार्क्सवादियों द्वारा शासित बंगाल में कम्युनिस्टों के बीच इस मुद्दे पर मतांतर है। कुछ लोग मार्क्स के कट्टर समर्थक हैं तो कुछ उनकी धारणा में संशोधन चाहते हैं। कट्टर मार्क्सवादियों का कहना है कि भारतीय रेल पर मार्क्स के विचार बिल्कुल ठीक थे कि ब्रिटिश ने भारत में रेलवे की स्थापना कर इस देश में क्रांति की नींव रख दी। क्योंकि रेलवे के कारण यहां औद्योगिक विकास ने गति पकड़ी जिसके कारण कामगार पैदा हुए और फिर क्रांति। लेकिन मार्क्स के विरोधियों का कहना है कि ब्रिटिश ने अपने स्वार्थ में रेलवे की स्थापना की और अगर इसमें भारतीयों को लाभ हो गया तो वह महज एक संयोग है।
मैं अब अपने कंपार्टमेंट की ओर देख रहा हूं। यह दो बर्थ का एक केबिन है। कभी यह नवविवाहितों के लिए होता था। यह राजधानी एक्सप्रेस है जिसे भारत की बेहतरीन ट्रेन कही जाती है। इसके सभी डिब्बे वातानुकूलित हैं और भारत के हिसाब से तेज भी । मैं प्रथम श्रेणी के डिब्बे में हूं जो ट्रेन का सर्वश्रेष्ठ क्लास है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इसमें आधुनिक लग्जरी की कोई निशानी भी है। इसी बात से मुझे 1977 की फ्रंटियर एक्सप्रेस की याद आ रही है। वर्ष 1977 में मैंने इसमें यात्रा की थी। उस समय इस गाड़ी के वातानुकूलित डिब्बे के शीशे से प्लैटफार्म का दृश्य स्पष्ट दिखते थे। वह दृश्य देख मेरा मन द्रवित हो जाता था। लोग प्लैटफार्म पर गंदे चादर में लिपटकर सोते रहते थे, मानो वह जिंदा इंसान नहीं बल्कि चादरों में लपेटी हुई लाश हो। हालांकि इस ट्रेन के शीशे पर डार्क पालिश चढ़ी हुई है और अंदर की रोशनी व्यवस्था एवं साज-सज्जा बेहतर है, लेकिन अब भी प्लैटफार्म पर 1977 के दृश्य वैसे ही दिखते हैं। भारत में गरीबी और अमीरी की खाई लगातार चौड़ी हो रही है, ये प्लैटफार्म उसी का सबूत है। हालांकि समाजशास्त्री इसे भारतीय समाज के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं मानते। बावजूद इसके अमीरी और गरीबी की खाई यहां बढ़ती ही जा रही है।
भारतीय रेलवे की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कभी भी यहां कि सरकार ने रेलवे के प्रति उदासीनता नहीं दिखायी। इसी का परिणाम है कि भारत में रेल सेवा लगातार विकसित की है। अब जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था की सीरत बदल रही है और साथ ही जनसंख्या का विस्फोट भी जारी है तो रेलवे को सतत विकसित करते जाना अनिवार्य है। अन्यथा भारत की नागरिक परिवहन व्यवस्था चौपट हो जायेगी और एक मात्र इस वजह से भी देश के अंदर भारी बबंडर उठ सकता है।
रेलवे भारत का सबसे बड़ा नियोजन संस्था है। लगभग 14 लाख लोग रेलवे में कार्यरत है जोकि विश्व का रिकॉर्ड है। एक ही प्रबंधन के तले इतनी बड़ी संख्या में कर्मी अन्यत्र कहीं नहीं है। हाल के दिनों में भारतीय रेलवे ने उन्नयन के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, विदेशी निवेश भी हुआ है, लेकिन अभी भी यहां की ट्रेनें कई चीजों से महरुम हैं।
(शेष अगली कड़ी में )

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