शनिवार, 7 मार्च 2009

क्या जंगल भी हमारे दुश्मन बन जायेंगे

जीवन और जंगल के मध्य सनातन काल से गहरी दोस्ती चली आ रही है। प्राचीन मानवों के लिए जंगल आवास और भोजन का का अकेला स्रोत था, तो आधुनिक मानव के लिए लकड़ी, फल, कंद-मूल के साथ-साथ शुद्ध वायु का अनन्य स्रोत। लेकिन नवीनतम अनुसंधान बताते हैं कि जंगल के चरित्र में बदलाव आ रहा है और अगर पर्यावरण असंतुलन का वर्तमान सिलसिला यों ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब जंगल दोस्त के बदले दुश्मन हो जायेंगे। पर्यावरण वैज्ञानिकों के एक दल ने हाल में ही इस बात से दुनिया को अगाह किया है। इस दल का कहना है कि सतत सूखा के कारण एशिया, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका महादेशों के विशाल वर्षा वनों की प्रकृति में बदलाव आ रहा है। इसके कारण हमेशा से कार्बनडाइऑक्साइड गैस जैसे हानिकारक गैसों का अवशोषण करने वाले ये वन अपनी भूमिका निभाने में असमर्थ हो रहे हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि सूखा, आग और प्रदूषण के कारण इन वनों की पारिस्थितिकी में परिवर्तन हो रहा है। और अगर यह सिलसिला यों ही चलता रहा तो आने वाले समय में जंगल कार्बनाडाइऑक्साइड को सोखने के बदले कार्बनडाइऑक्साइड का उत्सर्जन की करने लगेंगे। ऐसी परिस्थिति में पर्यावरण में कार्बनडाइआक्साइड गैस की मात्रा बढ़ती चली जायेगी। जिसके परिणाम सृष्टिनाशक भी हो सकते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह प्रवृत्ति आमेजन घाटी के विशाल वर्षा वन में भी देखी जा रही है, जो दुनिया का विशालतम वर्षा वन है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, आमेजन घाटी के वन के एक हिस्से में वर्ष 2005 में भारी सूखा पड़ा था। तीन वर्ष बाद जब सूखे प्रभावित हिस्से में वैज्ञानिकों सर्वेक्षण किया तो पाया कि वन के इन क्षेत्रों में कार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा सामान्य से कहीं ज्यादा है। इसके आधार पर वैज्ञानिकों ने कहा कि सूखा प्रभावित हिस्सा अब कार्बन सोखने के बदले इसका उत्सर्जन कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पिछले दो दशकों से लगातार यह देखा जा रहा है कि दुनिया के वर्षा वन सूखा की चपेट में आ रहे हैं। इसकी मुख्य वजह पर्यावरण असंतुलन है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि दुनिया में प्रदुषण और ग्रीनहाउस गैसों के कारण जो पर्यावरण असंतुलन की स्थिति पैदा हो रही है उसका शिकार जंगल भी हो रहा है। जबकि आज भी वर्षा वन मानवीय गतिविधियों द्वारा पैदा की जा रही कार्बनडाइआक्साइड गैस का सबसे बड़ा अवशोषक है। दुनिया के कुल कार्बनडाइऑक्साइड गैसों का 10 प्रतिशत अकेले वर्षा वन द्वारा अवशोषित किये जाते हैं। एक आंकड़ा के मुताबिक, अभी दुनिया में प्रति वर्ष मानवीय गतिविधियों के कारण कुल 1.2 खरब टन कार्बनडाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है। इस शोध में आगे कहा गया है कि वर्षा वनों में एक हेक्टेयर में 100 मिलीमीटर बारिश की कमी होने से उसके कार्बनडाइआक्साइड अवशोषण में प्रति हेक्टेयर 5.3 टन की घटोतरी हो जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मानवीय हस्तक्षेप के कारण ऐसे भी दुनिया भर में जंगल के रकबा में कमी आ रही है। सूखा, आग और प्रदुषण जैसी घटनाएं जले में नमक छिड़कने का काम कर रही हैं ।

1 टिप्पणी:

raviranjan kumar ने कहा…

mujhe nahi lagta ki janagal dusman ban jayenge.main jharkhand ke palamu jila ka panki block ka rahne wala hu.aaj 50% jangal kat chuke hai.jis karan waha ke local logo me berojgari ka khatra utpann ho gaya hai.abhi mahuwa ka mausam hai.aaj jangal ka mahuwa chunne ke liye log aapas me hi lad ja rahe hai.abhi holi me mai ghar gaya tha.mujhe yah dekhkar kafi aakrosh aaya,ki sarkar jangal bachne ke liye lakho rupyee ki yojnaye banati hai.dusri tharaph taskro se mil kar jangal ko katwa rahi hai.