गुरुवार, 19 मार्च 2009

आखिरी अहाते में

सत्ता की राजनीति में डूबे हमारे नेता अब शायद अंतिम अहाते में पहुंच गये हैं। उस अहाते में,जहां सरपट दौड़ा जाता है। जहां किसी को किसी चीज की फिक्र करने की कोई आवश्यकता नहीं होती। धोती खुल जाती है, दौड़ जारी रहती है। पैर टूट जाते हैं, लेकिन भागते जाने का सिलसिला नहीं थमता। किसी बात पर शर्म नहीं होती, किसी पतन का परवाह नहीं रहता। सिर्फ एक ही चीज उन्हें याद रहती है, वह है कुर्सी और सत्ता। सत्ता और कुर्सी के लिए उन्हें हर बात हर शर्त मंजूर है। जनता कह रही है आप बेहया हैं, आपको कुछ याद नहीं। एक घंटे पहले तक आप उस पार्टी के सबसे कर्मठ कार्यकर्ता थेअचानक उसके विरोधी कैसे हो गये। आप तो कसम खाकर कहते थे कि मरूंगा तो इस पार्टी के झंडे के तले और जीऊंगा तो इसी के बैनर तले। एक टिकट क्या नहीं मिली कि आप उसके दुश्मन नंबर वन हो गये। पटना में आप उनसे कुश्ती करेंगे और दिल्ली में गलबहिया ? यह कैसे संभव है ? कल तक आप जिसको शैतान की औलाद कह रहे थे पलभर में वह आपके इतने प्यारे कैसे हो गयेकि आज उनके गले में हाथ डालकर फोटो खींचवा रहे हैं ?
नेता जी का जवाब होता है- सब आपके लिए जनता जनार्दन । ये सारे बेहयापन, सारी कुर्बानियां, ये रंग बदलना, ये चोला उतारना और पहनना; सब आपके लिए सरकार। आप कुछ मत पूछो तो ही भला है। मानो जनता वैद्यनाथ धाम का भोला बाबा हो और नेता उनके पंडे। भोला बाबा का नाम लो और चढ़ावा पंडों के हवाले कर दो। इसलिए नेता कह रहे हैं- आप तो सिर्फ वोट देने के दिन घर से निकलना और हमारे निशान के सामने बटन दबा देना। देश को हम चलायेंगे। आपको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। जनता एक से नजर उठाकर दूसरे की ओर उम्मीद भरी दृष्टि से देखती है कि शायद कोई मिल जाये। लेकिन नहीं मिलता। अहाते में दूर-दूर तक बेशर्मों की फौज खड़ी है। सभी जाने-पहचाने, एक से गिरकर एक। कोई मंदिर को गलिया रहा है तो कोई मस्जिद को। कोई जाति को गलिया रहा है तो कोई मजहब को। कोई भाई बहन को ,तो कोई बहन भाई को शपिया रहे हैं। जनता इस बदबूदार अहाते से दूर भाग जाना चाहती है, लेकिन नहीं भाग पाती। टेलीविजन वाले उनका पीछा नहीं छोड़ रहे। वे अहाते को पैकेट में पैक कर जनता के बैठक खाने में भेज रहे हैं। कहां जाये जनता, क्या करे जनता। जनता की माने तो राजनीति अपनी आखिरी अहाते में दाखिल हो चुकी है। लेकिन उन्हें इससे आगे जाना होगा। इस अहाते को बंद करना होगा। नये अहाते बनाने होंगे। पता नहीं जनता इस बात को कब समझेगी।

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