गुरुवार, 26 मार्च 2009

इस दलदल में प्रेम-क्रीड़ा करो प्रिये

बेकार झगड़ा न करो प्रिये
इस अगाध आकर्षण को निष्काम न करो
चलो, उठो अपने बालों को संवारो
और इस दलदल में
प्रेम का क्रीड़ा करो
तबतक
जबतक, दलदल ठस्स नहीं होये
तबतक
जबतक, नगंई ढक नहीं जाये

हम बहुत नग्न हो चुके हैं प्रिये
चलो मैं आलिंगन करूं तुम्हें
और तुम मुझे
और चुंबन के ताप से पैदा करें कोई चिंगारी
इस जंगली बेहयाई को जला देने के लिए
सफेदपोशों की अनैतिकता की नाश के लिए
भ्रष्टाचार की इस समुद्र को सूखा देने के लिए

बेकार झगड़ा न करो प्रिये
प्यार में अगर आग होती है
तो जलन भी होनी चाहिए
हाथों की लकीर नहीं होती दरिद्रता
शर्त यह है कि क्रांति होनी चाहिए
बेकार झगड़ा न करो प्रिये
हाथों में ले लो मेरा हाथ
प्यार करने वाले देंगे हमारा साथ
हम करेंगे क्रांति की क्रीड़ा
इन मक्कार सत्तालोलुपों की छाती पर
एक दिन
क्योंकि हम हैं मनुज, मनुज, मनुज