बुधवार, 24 जून 2009

अपने विचारकों का पिंड दान करतीं पार्टियां (संदर्भ मिश्र हत्याकांड)

भारतीय राजनीति की यह मनविदारक विडंबना है। यहां हर राजनीतिक धारा अंततः सत्ता-आकांक्षा और शक्ति-पिपासा के समुद्र में तिरोहित हो जाती है। चाहे वह मुद्दों के आगोश से निकली पार्टी हो या फिर सरोकार और विचार की कोख से जन्मी पार्टी, भारत में सत्ता सब का आखिरी लक्ष्य हो जाती है।परिणामस्वरूप हर राजनीतिक पार्टी आखिरकार गिरोहों में तब्दील हो जाती है जिसकी पहली और आखिरी तमन्ना कुर्सी होती है। हर हाल में वे सत्ता के खजाने पर कब्जा जमाना चाहती हैं। और इसे पाने के लिए किन्हीं हदों की परवाह नहीं करतीं। इसका परिणाम यह होता है कि राजनीतिक पार्टियां सिद्धांत, उसूल और विचारधाराओं से दूर होती चली जाती हंै। और एक समय ऐसा आता है कि जब पार्टियों को यह भी याद नहीं रहती कि उनकी अपनी पहचान खत्म हो चुकी है। धीरे-धीरे वे अपने संस्थापकों से भी बहुत दूर हो जाती हैं। सत्ताई-वासना में पार्टियां इतना अंधा हो जाती हैं कि उन्हें पता भी नहीं चलता कि बिना गया गये ही कब उसने अपने-अपने विचार-पुरुषों का पिंड-दान कर दिया।
कांग्रेस पार्टी को आज महात्मा गांधी से कोई लेना-देना नहीं । समाजवादी पार्टियां लोहिया को भूल चुकी हैं। बहुजन समाज पार्टी में बाबा साहेब की छाया भी कहीं नहीं दिखती। भारतीय जनता पार्टी श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय, डॉ हेडगवार के विचारों का दाह-संस्कार कर चुकी है। कम्युनिस्ट पार्टियां मार्क्स और लेनिन का विसर्जन कर चुकीं हंै। ऐसे में जो नेता वैचारिक प्रतिबद्धता पर कायम रहते हैं वे या तो हाशिए पर रहते हैं या फिर पार्टियों के लिए एक बोझ की तरह होते हैं। पार्टियों को ऐसे नेताओं के जीवित रहने या मर जाने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता। वे इस बात को भूल जाती हैं कि आज वे जिस सत्ताई फसल को काट रही हैं उनकी जड़ें प्रतिबद्ध नेताओं के पसीने से ही तैयार हुई थीं।
पांच दिन पहले मौंत की नींद सुला दिए गये बिहार के अररिया के वयोवृद्ध जनसंघी नेता देव नारायण मिश्र उर्फ देबू मिश्र के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। स्वर्गीय देव नारायण मिश्र उन चंद नेताओं में शामिल थे जिसने बिहार में जनसंघ की जमीन तैयार की। प्रखर विद्धान और सरस्वती-पुत्र देव नारायण मिश्र ने अपनी सारी जिंदगी भगवा-विचार के प्रचार में लगा दिया। भागलपुर के तेज नारायण बनेली महाविद्यालय से रिकार्डतोड़ अंकों के साथ एमए करने वाले देव नारायण मिश्र ने सरकारी नौकरी को ठोकर मारकर समाज सेवा को अपना जीवन-लक्ष्य निधार्रित किया। यह उनकी अथक मेहनत का ही परिणाम था कि जब बिहार के अन्य हिस्से में भाजपा को लोग जानते तक नहीं थे तब पूर्णिया, अररिया, किशनगंज और कटिहार में उस पार्टी के उम्मीदवार अच्छा-खासा मत हासिल करने लगे थे। नब्बे के दशक आते-आते ये क्षेत्र भाजपा के गढ़ में तब्दील हो गये। लेकिन देव नारायण मिश्र को श्रेय नहीं मिला। पार्टी जब खड़ी हो गयी तो मिश्र जैसे लोग हाशिए पर डाल दिए गये और धनवानों , बाहुबलियों और जातीय समीकरण वालों को एमपी, एमएलए का टिकट दिया गया। हालांकि मिश्र को इस बात का कभी भी मलाल नहीं रहा।
छह साल पहले अररिया में एक दिन उनसे मेरी मुलाकात हुई थी। वे कई वर्षों से अररिया में रह रहे थे और इलाके के अत्यंत प्रसिद्ध वकील थे। लेकिन उनके पास रहने के लिए एक टूटा-फूटा फूस का घर ही था। पक्के और आलीशान घर बनाने की उन्हें कभी कोई इच्छा नहीं हुई। जबकि उनके कई जूनियर वकीलों ने चंद वर्षों में ही बड़े-बड़े अट्टालिका खड़े कर लिए। मुझे आज भी याद है , स्व. मिश्र के साथ , दो-घंटे की वह मुलाकात । क्या तेज था उस व्यक्ति में ? पूरी दुनिया का राजनीतिक-सामाजिक इतिहास उनकी जुबान पर था। पत्रकारिता के कॉरियर में आज तक किसी दूसरे राजनेता ने मुझे इतनी वैचारिक शीतलता प्रदान नहीं की। पत्रकारीय जिज्ञाशा को संतुष्ट करना किसी भी नेता के लिए आसान नहीं होता, लेकिन स्व. मिश्र की बात करने की यह पहली शर्त थीकि वे जबतक आपको संतुष्ट नहीं कर देंगे उठेंगे नहीं ।आज सोचता हूं तो लगता है कि मिश्र ऐसा इसलिए कर पाते थे क्योंकि सच से घबराते नहीं थे और राजनीति को समाज- सेवा मानते थे। इसलिए उन्हें बात को छिपाने की आवश्यकता नहीं होती थी।
शहर में हमेशा पैदल चलने वाले देव नारायण मिश्र (हमेशा सौ-दो- सौ मुकदमा लड़ने वाले मिश्र के पास कोई गाड़ी नहीं थी) निर्भिकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री तस्लीमुद्दीन की लाख धमकी के आगे कभी घूटने नहीं टेके। वे तस्लीमुद्दीन समेत इलाके के कई दुर्दांत अपराधियों के खिलाफ सरकारी वकील थे।
लेकिन पिछले दिनों उन्हें गोली मार दी गयी। नीतीश कुमार के तथाकथित सुशासन राज में एक प्रतिष्ठित राजनेता और नामी वकील की हत्या कर दी गयी, लेकिन किसी के कान पर जूं नहीं रेगा। पांच दिन बाद जब मुख्यमंत्री अररिया में सभा कर रहे थे तो लोगों ने उन्हें मिश्र हत्याकांड की बात बतायी। लेकिन मुख्यमंत्री ने कोई टिप्पणी नहीं की। इसलिए घटना को एक सप्ताह हो चली है, लेकिन पुलिस उनके हत्यारों की पहचान करने में असफल है। यह स्थिति तब है जब प्रदेश में भाजपा सत्तारुढ़ है। उनके चेले सैयद शाहनवाज हुसैन की पार्टी में तूती बोलती है, फिर भी पार्टी खामोश है। जिस दिन देव नारायण मिश्र को गोली मारी गयी हुसैन पार्टी कार्यकारिणी में मेनका गांधी से बहस कर रहे थे। शायद भाजपा को अब देव नारायण मिश्र जैसे नेताओं की आवश्यकता नहीं रही। इस बात को दूसरे तरीके से भी कहा जा सकता है कि पार्टी को अब किसी विचारधारा की भी आवश्यकता नहीं रही। पर समाज को हमेशा देव नारायण मिश्र जैसे लोगों की आवश्यकता रहेगी। यह बात उनके विरोधी भी कहते हैं और उनके कॉलेज के मित्र रहे मेरे पिताजी भी कहते हैं।
 

2 टिप्‍पणियां:

kalpana lok ने कहा…

parti apne mool vichardhara se kab ka piche hath chuke hai. leki party ke aam karyakarta ki ye gat hogi to kya bhavisya hogi uska sahag andaga lagay ja sakta hai. ek aam awag ko jagah dene ki ise tarah age bhi kosis karte rahe. gaon dahat ki baten purane dino ki yade taja karte hai.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सत्ता का नियम.......... आगे चलो पीछे वाले को मार कर......... बस अपनी सोचू.......कुर्सी की सोचो