अमूमन ऐसा होता नहीं है, लेकिन ऐसा हो गया। एक ऐसे दौर में जब अमीरों के कुत्ते तक भी गरीबों के कुत्तों के साथ नहीं बैठते तब एक आइएएस अधिकारी और एक आकाल पीड़ित किसान के चूल्हे में मुलाकात हो गयी। और यह चमत्कार झारखंड के कालाहांडी कहलाने वाले पलामू प्रमंडल में हुआ। शायद यह बेमेल संयोग इस कारण संभव हुआ कि पिछले कुछ दिनों से आइएएस साहेब और उस गरीब किसान, दोनों के चूल्हे बहुत परेशान थे। हालांकि दोनों के रुतबा में आसमान-जमीन का फर्क था फिर भी वे एक पेड़ की नीचे बैठे और अपना-अपना दुखड़ा सुनाने लगे।
किसान के चूल्हे ने रोते हुए कहा- " क्या कहूं हवेली वाले भाई, पिछले पंद्रह दिनों में पंद्रह बार किसान की घरवाली से मिन्नत कर चुका हूं। मुझे यूं तिरस्कृत मत करो। कुछ तो सुलगाओ, कुछ तो पकाओ। लेकिन लगता है कि पूरे परिवार ने मरने की कसम खा ली है। लेकिन उन लोगों का भी क्या दोष ? उस बेचारे के घर में अन्न का एक दाना नहीं है। पकाये तो पकाये क्या ? भुखमरी की नौबत है, भाई । मुझसे यह अपमान सहा नहीं जाता। ''
आइएएस के चूल्हे ने भी लगभग रोते हुए जवाब दिया - " भाई मेरा गम भी कुछ कम न है। मेरे साहेब के नौकर खाना तो खूब पकाते हैं। हर दिन रंग-विरंग की डिस बनती है, लेकिन मेरा दुर्भाग्य यह है कि उन्हें खाने वाला कोई नहीं। साहेब को हाइ ब्लड प्रेसर है और डॉक्टर ने उन्हें डाइटिंग की सलाह दी है। मैडम का वेट पहले से ही ज्यादा है और वे अब तला-भूना बिल्कुल ही नहीं खाती। जब से उन्हें गैस की समस्या हुई है, तब से तो मानो फास्टिंग पर ही रहती हैं। घर में खाने के समान भरे रहते हैं, लेकिन घरवालों की भूख मर गयी है। अब बताओं मैं कैसे खुश रहूं। तुम्हारे यहां भुखमरी है और मेरे यहां भूख ही मर गयी है।''
किसान के चूल्हे ने रोते हुए कहा- " क्या कहूं हवेली वाले भाई, पिछले पंद्रह दिनों में पंद्रह बार किसान की घरवाली से मिन्नत कर चुका हूं। मुझे यूं तिरस्कृत मत करो। कुछ तो सुलगाओ, कुछ तो पकाओ। लेकिन लगता है कि पूरे परिवार ने मरने की कसम खा ली है। लेकिन उन लोगों का भी क्या दोष ? उस बेचारे के घर में अन्न का एक दाना नहीं है। पकाये तो पकाये क्या ? भुखमरी की नौबत है, भाई । मुझसे यह अपमान सहा नहीं जाता। ''
आइएएस के चूल्हे ने भी लगभग रोते हुए जवाब दिया - " भाई मेरा गम भी कुछ कम न है। मेरे साहेब के नौकर खाना तो खूब पकाते हैं। हर दिन रंग-विरंग की डिस बनती है, लेकिन मेरा दुर्भाग्य यह है कि उन्हें खाने वाला कोई नहीं। साहेब को हाइ ब्लड प्रेसर है और डॉक्टर ने उन्हें डाइटिंग की सलाह दी है। मैडम का वेट पहले से ही ज्यादा है और वे अब तला-भूना बिल्कुल ही नहीं खाती। जब से उन्हें गैस की समस्या हुई है, तब से तो मानो फास्टिंग पर ही रहती हैं। घर में खाने के समान भरे रहते हैं, लेकिन घरवालों की भूख मर गयी है। अब बताओं मैं कैसे खुश रहूं। तुम्हारे यहां भुखमरी है और मेरे यहां भूख ही मर गयी है।''
4 टिप्पणियां:
भुख भुख में ऐसा अन्तर!! बताईये!
सच कहा रंजीत जी..........पर इसको वक़्त की मार कहते हैं
रंजीत जी, क्या आप अपना मोबाइल नंबर दे सकते हैं? मेरा नंबर है ०९८६८३८७७९८
bahut dukhdai lekin schhai hai bhai
shyam sunder
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