शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

अब पूंछ भी बढ़ा ही डालो

विकासवाद का सिद्धांत कहता है कि मनुष्य भी लाखों-लाख साल पहले जानवर ही था। अन्य जानवरों की तरह वह भी चार पैराें पर चलता था और नंग-धड़ंग रहता था। न जाने उसके दिमाग में कहां से सभ्यतावाद का कीड़ा प्रवेश कर गया कि वह अपने को अन्य जानवरों से अलग करने लगा। जैसे-जैसे इंसान की बुद्धि बढ़ती गयी वैसे-वैसे सभ्य होने का कारवां भी तेज होते गया। उन्होंने जंगलों से तौबा कर ली और मैदानों में आ बसे। भोजन व्यवहार बदला और बातचीत के लिए भाषा तक का इजाद कर लिया। फिर कबीले बनाकर समूह में रहने की आदत डाली। पहले टोला बनाया फिर कबीला और अंततः समाज तक रच डाला। जब इंसान समाज में रहने लगा तो उन्हें कुछ कानून-कायदों की आवश्यकता भी महसूस होने लगी। इसके लिए उसने देश बनाया, हथियार बनाया और आखिरकार चीजों को नियंत्रण करने के लिए सरकार व संस्थाएं तक बना डालीं। कहते हैं कि इन्हीं के बदौलत वे लगातार सभ्य होते गये और लाखों जीव-जंतुओं को पछाड़कर अंततः ईश्वर की सबसे खूबसूरत कृती बन बैठे। उन्होंने जानवर-सरीखे आदतों पर मिट्टी डाल दिया और जो भी पुरानी आदतों से लाचार पाये गये उन्हें सीखचों में कैद कर डाला। अगर इससे भी नहीं हुआ तो जान भी ले ली। मसलन यौन संबंधों के "व्याकरण' बनाये गये और कहा गया कि हम आदमी हैं, इसलिए जानवरों की तरह जब जिसके साथ मन किया यौन संबंध नहीं बना सकते। हमें पाश्विक विचारों का दमन करना होगा और मनुष्य बने रहने के लिए नैतिक नियमों का पालन करना होगा। भले ही हमें कितनी भी भूख लगे हम हाथ के बदले पैर से नहीं खायेंगे। काम उत्तेजना चाहे हमारी जान ले लें हम कहीं भी किसी समय किन्हीं के साथ हमबिस्तर नहीं हो सकते।
लेकिन लगता है कि मानव अब सभ्यतावाद के इस इकहरे वन डायरेक्शनल सफर से ऊब गया है। इसलिए वे सभ्यतावाद की इस गाड़ी को रिवर्स गियर में डालने को आतुर है। नंग और अर्द्धनंग रहने को वह फैशन कह रहा है। पश्चिमी देशों में लगातार नंगे रहने का अभ्यास हो रहा है। समुद्री बीच से लेकर सड़क तक। स्वीडेन में सड़क और पार्कों में यौन-संबंध बनाये जाने लगे हैं। खुल्लमखुल्ला। ऐसे कि कुत्ते और कुत्तिया भी शर्मा जाये। सिनेमा, फैशन शो, मॉडल शो, सौंदर्य प्रतियोगिताओं के जरिए वे नंगई को स्थापित करने की जीतोड़ जद्दोजहद में लगे हुए हैं। फ्रांस में कुछ दिनों पहले बाकायदे एक नंग-धड़ंग कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया। सैकड़ों स्त्री-पुरुषों ने इसमें भाग लिया और इसके फायदे गिनाये। लेकिन वापस पशु योनि में जाने के लिए उन्हें अभी लाखों मिल का सफर तय करना है। उन्हें यौन संबंधों के सदियों पुराने कायदों को बदलना है। इसके लिए पहले अप्राकृतिक यौन संबंधों को मान्यता देनी होगी। इसलिए वे समलैंगिकता को स्थापित करने में लगे हुए हैं। पांच महीने पहले ही उन्हें इस दिशा में बड़ी कामयाबी भी मिली है। फरवरी में आइसलैंड में एक समलैंगिक महिला जोहाना सिगुरदरदोत्री को वे प्रधानमंत्री बनवाने में सफल हुए हैं। लेकिन अधिकतर देश अब भी इससे परहेज कर रहे हैं, लेकिन उन्हें विश्वास है कि रिवर्स सभ्यतावाद का यह सफर एक दिन मंजिल तक अवश्य पहुंचेगा। शायद वे सही हैं, अब तो भारत में भी समलैंगिकता को मंजूरी मिल गयी है। लेकिन अभी बहुत सारे असभ्य आचरण को मंजूरी दिलानी हैै, उन्हें। जंगल पहुंचने से पहले उन्हें अपने पीछे में पूंछ विकसित करनी पड़ेगी। सभी तरह के कानून, बंदिश, सरकार, संस्था, आस्था को तिलांजलि देनी होगी। चार पैरों पर चलने का अभ्यास करना पड़ेगा और अराजकतावाद को पराकाष्ठा पर पहुंचाना पड़ेगा। जानवर से इंसान बनने में उन्हें करोड़ों वर्ष लगे थे, लेकिन पता नहीं वापसी में कितना समय लगेगा?

2 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

अच्छा आलेख है!

kalpana lok ने कहा…

ha vastav me ab puch bdhana hi baki rah gaya hai. dilli ki media ne is news ko sar Akho pur liay. aur ise dikhaya aur chapa bhi. hamare patrkar bandhu pata nahi kyo is patanounmukhi vayavastha ke lie jee jaan laga dia. yeh ek ameryadit acharan hai.... mansik rup se viklang hi iske right gina sakte hai.... bahut acha laga... age bhi samsamaik visaya par vichar dete rahe........