दहाये हुए देस का दर्द-48
नेपाल के कुसहा और मधुबन इलाके में कोशी नदी के नवनिर्मित पूर्वी तटबंध पर गंभीर संकट मंडराने लगा है। मिली जानकारी के अनुसार आज सुबह से दो स्पॉटस पर नदी ने तटबंध का अपरदन करना शुरू कर दिया है। कहा जाता है कि कल शाम नदी में पानी का डिस्चार्ज एक लाख 90 हजार क्यूसेक के आसपास पहुंचने के बाद तटबंध पर धारा का दबाव काफी बढ़ गया। वैसे कुसहा में नवनिर्मित स्परों पर तो पिछले एक सप्ताह से खतरा मंडरा रहा था। कल एक स्पर का मुहाना बुरी तरह क्षतिग्रस्त भी हो गया था। स्पर पर दबाव का मतलब साफ है कि नदी का अगला निशाना तटबंध ही होगा। लेकिन दो लाख क्यूसेक से कम में जब यह हाल है, तो आगे क्या होगा ? इस बात की सहज कल्पना की जा सकती है। उल्लेखनीय है कि कोशी में कभी-कभी पानी का डिस्चार्ज 8-9 लाख क्यूसेक तक पहुंच जाता है। वैसे सुखद समाचार यह है कि आज सुबह से ही पानी डिस्चार्ज की मात्रा में कमी आ रही है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर अविलंब युद्ध स्तर पर तटबंध को अपरदन से नहीं बचाया गया, तो पिछले साल की तरह एक बार फिर नदी तटबंध को तोड़ देगी। उधर सूचना यह भी है कि पानी के दबाव के कारण भीमनगर स्थित कोशी बराज का एक गेट (फाटक) बह गया है। फिलहाल 56 में से 29 गेट को खोलकर रखा गया है। लेकिन डाउन स्ट्रीम में पानी के दबाव को देखते हुए और गेट खोलने की जरूरत है। पता नहीं, बांकी गेटों को क्यों नहीं खोला जा रहा । पिछले साल भी जब कुसहा में तटबंध टूटा था, तो 30 से ज्यादा गेट बंद थे। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर आपात स्थितियों में भी भीमनगर बराज के सभी गेट क्यों नहीं खोले जाते? कहीं सरकार और अधिकारी किसी कड़वा सच को छिपाने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं है कि यह बराज अपनी सारी शक्ति खो चुका है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि अधिकारी समझ रहे हैं कि अगर सभी गेटों को खोला गया तो बराज ध्वस्त हो सकता है ? अगर यह सच है और इसे छिपाने की कोशिश की जा रही है, तो जनता के प्रति इससे बड़ा विश्वासघात और कुछ नहीं हो सकता है। वैसे भी भीमनगर बराज का निर्धारित कार्यकाल वर्ष 1988 में पूरा हो चुका है। कुसहा हादसे के बाद बराज के सशक्तिकरण या पुननिर्माण पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया ? किन्हीं के पास आज इस सवाल का जवाब नहीं है।
कोशी, कोशी है कोई हंसी-ठट्ठा नहीं ! पहले भी इसके साथ काफी मजाक किया जा चुका है। भ्रष्टाचार के कारण इसका तल गादों से भर चुका है। दशकों की लूट के कारण तटबंध भी मेड़ में परिणत हो चुके हैं। कोशी का फूंफकार तो पिछले वर्ष दुनिया देख ही चुकी है। अगर समय रहते नहीं चेता गया तो नदी डंसने के लिए मजबूर होगी। कोशी से खेलने वालों, जरा इस बात पर भी विचार कर लो। हमेशा तिजोरी की सोचने वालो, सोचो ! जिस दिन जनता सारी सच्चाई जान जायेगी, उस दिन तुम्हारा क्या होगा ?
नेपाल के कुसहा और मधुबन इलाके में कोशी नदी के नवनिर्मित पूर्वी तटबंध पर गंभीर संकट मंडराने लगा है। मिली जानकारी के अनुसार आज सुबह से दो स्पॉटस पर नदी ने तटबंध का अपरदन करना शुरू कर दिया है। कहा जाता है कि कल शाम नदी में पानी का डिस्चार्ज एक लाख 90 हजार क्यूसेक के आसपास पहुंचने के बाद तटबंध पर धारा का दबाव काफी बढ़ गया। वैसे कुसहा में नवनिर्मित स्परों पर तो पिछले एक सप्ताह से खतरा मंडरा रहा था। कल एक स्पर का मुहाना बुरी तरह क्षतिग्रस्त भी हो गया था। स्पर पर दबाव का मतलब साफ है कि नदी का अगला निशाना तटबंध ही होगा। लेकिन दो लाख क्यूसेक से कम में जब यह हाल है, तो आगे क्या होगा ? इस बात की सहज कल्पना की जा सकती है। उल्लेखनीय है कि कोशी में कभी-कभी पानी का डिस्चार्ज 8-9 लाख क्यूसेक तक पहुंच जाता है। वैसे सुखद समाचार यह है कि आज सुबह से ही पानी डिस्चार्ज की मात्रा में कमी आ रही है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर अविलंब युद्ध स्तर पर तटबंध को अपरदन से नहीं बचाया गया, तो पिछले साल की तरह एक बार फिर नदी तटबंध को तोड़ देगी। उधर सूचना यह भी है कि पानी के दबाव के कारण भीमनगर स्थित कोशी बराज का एक गेट (फाटक) बह गया है। फिलहाल 56 में से 29 गेट को खोलकर रखा गया है। लेकिन डाउन स्ट्रीम में पानी के दबाव को देखते हुए और गेट खोलने की जरूरत है। पता नहीं, बांकी गेटों को क्यों नहीं खोला जा रहा । पिछले साल भी जब कुसहा में तटबंध टूटा था, तो 30 से ज्यादा गेट बंद थे। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर आपात स्थितियों में भी भीमनगर बराज के सभी गेट क्यों नहीं खोले जाते? कहीं सरकार और अधिकारी किसी कड़वा सच को छिपाने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं है कि यह बराज अपनी सारी शक्ति खो चुका है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि अधिकारी समझ रहे हैं कि अगर सभी गेटों को खोला गया तो बराज ध्वस्त हो सकता है ? अगर यह सच है और इसे छिपाने की कोशिश की जा रही है, तो जनता के प्रति इससे बड़ा विश्वासघात और कुछ नहीं हो सकता है। वैसे भी भीमनगर बराज का निर्धारित कार्यकाल वर्ष 1988 में पूरा हो चुका है। कुसहा हादसे के बाद बराज के सशक्तिकरण या पुननिर्माण पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया ? किन्हीं के पास आज इस सवाल का जवाब नहीं है।
कोशी, कोशी है कोई हंसी-ठट्ठा नहीं ! पहले भी इसके साथ काफी मजाक किया जा चुका है। भ्रष्टाचार के कारण इसका तल गादों से भर चुका है। दशकों की लूट के कारण तटबंध भी मेड़ में परिणत हो चुके हैं। कोशी का फूंफकार तो पिछले वर्ष दुनिया देख ही चुकी है। अगर समय रहते नहीं चेता गया तो नदी डंसने के लिए मजबूर होगी। कोशी से खेलने वालों, जरा इस बात पर भी विचार कर लो। हमेशा तिजोरी की सोचने वालो, सोचो ! जिस दिन जनता सारी सच्चाई जान जायेगी, उस दिन तुम्हारा क्या होगा ?
4 टिप्पणियां:
इस लापरवाही का कोई कारण समझ में नहीं आता .. इसकी जवाबदेही राज्य सरकार की है या केन्द्र सरकार की ?
Sangita jee , Prarambhik taur par jimmedaaree to BIhar Sarkar kee hai, lekin ise pura karne ke liye Kendra sarkar kaa sakriya sahyog bhee aniwarya hai. widambanaa yah hai ki dono sarkar kaan me ghee dalkar soyee huee hai. Aaj se nahin salon-sal se.
जो भी हो सबसे पहले इसको ठीक करने का काम होना चाहिए...............
The land where there is now Koshi barrage belong to Nepal. But according to "Nepal-India koshi barrage agreement" did almost before half century, the technical and the financial responsibility for the management of this barrage was given to India, may be one of the reason behind that was Sapta-koshi was most dangerous to Indian Land then Nepali land. Thats why now we can see some Indian cops on the bridge inside Nepali land every time.
I heard this bridge was already expired technically. But still we have been using it. The main East-West Highway of Nepal passes through this bridge. And every time whenever I crossed this bridge.. I used to pray the god.
The recent koshi-flood harmed both country a lot. So, I don,t think its time to blame either Indian State or Central government or Nepal government... But as Digambar Naaswa says ... first we should repair it in any cost...
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