शनिवार, 27 जून 2009

जाने क्या हो गया है मानसून को

(इलाहाबाद के पास एक गांव में बारिश के लिए इंद्र भगवान को मनाते बच्चे)
बिचड़े सूख रहे हैं। खेतों में दरार पैदा होने लगी है। हरियाली गायब हो रही है। कहीं जट्ट-जट्टिन का नाच हो रहा है तो कहीं कीचड़ में लथ-पथ होकर प्रार्थना की जा रही है। लेकिन मेघ का दिल नहीं पसीज रहा। किसान माथा पर हाथ धर के बैठे हैं। गांवों में हर जुबान पर एक ही सवाल हैं, कब होगी बारिश? मृग नहीं बरसा, तो आद्रा बरस के ही क्या होगा। बिचड़े ही नहीं रहेंगे, तो रोपेंगे क्या ? रोपेंगे नहीं तो खायेंगे क्या?
जवाब किन्हीं के पास नहीं है। सरकारी अमले से आश्वासन की बारिश हो रही है। थोड़ी देर से ही सही, लेकिन इंद्र आयेंगे, मेघ लायेंगे और बारिश होगी। आदि-आदि... लेकिन वे यह नहीं कह रहे कि मानसून में देरी के कारण क्या हैं ? इस देर की असल वजह क्या है ? सरकार सच पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है। सच यह है कि पर्यावरण असंतुलन खतरनाक मोड़ तक पहुंच चुका है। समुद्र का चरित्र बदल चुका है। प्रदूषण ने पर्यावरण को घायल कर दिया है। इसलिए ये खतरे तो अब आते ही रहेंगे। कभी मानसून नहीं आयेगा, तो कभी शीत ॠतु लंबा खींच जायेगा। कभी बेमौसम अत्यधिक बारिश होगी तो कभी गर्मी में शर्दी लगने लगेगी और शर्दी में गर्मी। यह पर्यावरण की पीड़ा है, जिसे हम सुनना नहीं चाहते। और पीड़ित पर्यावरण पर इंद्र भगवान का भी नियंत्रण नहीं। टोना-टोटके में लगे मासूम किसानों को शायद यह नहीं मालूम।

2 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

पर dil yeh सब nahi maanta ranjeet ji............ vo तो kisi भी haalat पर varshaa chaahta है

विवेक सिंह ने कहा…

अब तो मानसून को आ ही जाना चाहिये !