दहाये हुए देस का दर्द-47
कुसहा हादसा को हुए नौ महीने बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक दोषियों की सिनाख्त नहीं हो पायी है। बिहार सरकार ने इस हादसे की जांच के लिए और दोषी अधिकारियों की पहचान के लिए एक जांच कमीशन बैठाया था। जांच कमीशन ने नौ महीने में क्या कार्रवाई की ? किन्हीं को नहीं मालूम। जबकि कुसहा हादसा खुली हुई किताब की तरह है। कोशी इलाके के आम लोग तक इस हादसे के दोषियों को सीधे चिह्नित कर रहे हैं, लेकिन कमीशन को दोषी दिखाई नहीं दे रहे। सच यह है कि जिन विभागों और अधिकारियों की लापरवाही के कारण कुसहा में बांध टूटा उन्हें अंधेरी रात में भी पकड़ा जा सकता है। उनकी लापरवाही और कर्त्तव्यहीनता के प्रमाण दूर से ही दिखाई पड़ते हैं। लेकिन जांच आयोग सूक्ष्मदर्शी लेकर उनकी तलाश कर रहा हैफिर भी उन्हें कुछ नजर नहीं आ रहा। "साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल'' से जुड़े हिमांशु ठक्कर ने पिछले दिनों आयोग को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में लापरवाह विभागों और अधिकारियों को प्रमाण के साथ चिह्नित किया गया है। इस पत्र को पढ़ने के बाद यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अधिकारियों ने कितनी निडरता से कर्त्तव्यहीनता की इंतिहा कर दी। लेकिन जांच आयोग ? मुझे कुछ शब्द मिल रहे हैं- दृष्टिदोष, मोतियाबिंद, लीपापोती.... भारत में जांच आयोग गोबर-माटी का ही दूसरा नाम तो नहीं ??
(हिमांशु ठक्कर के दस्ताबेजी पत्र को पढ़ने के लिए नीचे के मैटर के बॉडी पर डबल क्लिक कीजिए।)
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1 टिप्पणी:
हमारे देश की यह त्रासदी है...........
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