बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

बंद हुई नदी, कहां जायें डॉल्फिन

(नेपाल के कुसहा के समीप श्रीपुर गांव में एक भटके डॉल्फिन को निकालते नेपाली सेना के जवान )

(बिहार के सुपौल जिले में कोशी की परिवर्तित धारा में मृत पाये गये डॉल्फिन)

दहाये हुए देस का दर्द 35

नदी और इंसान के अहं के टकराव में बेचारे डॉल्फिन हलाल हो गये। उन्हें क्या पता था कि जिस धारा में वे सैर कर रहे हैं वह वास्तव में नदी नहीं , बल्कि उसकी बहकी हुई धाराएं हैं, कि कभी भी ये धाराएं बांध दी जायेगी और वे अचानक बेगाने हो जायेंगे। लेकिन पिछले दस-पंद्रह दिनों से ऐसा ही हो रहा है। कोशी नदी की परिवर्तित धारा में इन दिनों डॉल्फिन मछलियों के सामने अजीब संकट खड़ा हो गया है। बड़ी संख्या में डॉल्फिन मछली जहां-तहां फंस गयी हैं।

जैसे ही कोशी के कुसहा कटान से पानी को पुराने प्रवाह में मोड़ा गया वैसे ही उसकी परिवर्तित धारा में पानी का प्रवाह बंद हो गया। नदी के अपने पुराने प्रवाह में लौटते ही परिवर्तित धारा में पानी तेजी से घटने लगा। उसका बहाव और वेग भी स्थिर होने लगे। लेकिन धारा के विपरीत सैर करने वाले डॉल्फिनों को नदी के चरित्र में अचानक आया यह बदलाव समझ में नहीं आ रहा। वे वेग की खोज में इधर-उधर भटकते फिर रहे हैं। क्योंकि ये नदी की करेंट को पढ़कर ही दिशा का ज्ञान हासिल करते हैं। लेकिन जब से पानी स्थिर हुआ है उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा। आगे जायें या पीछे। परिणामस्वरूप वह नदी से नाले और नहर की ओर भटकते फिर रहे हैं। भटक-भटक कर सुपौल और मधेपुरा जिले के कुछ पोखरों और तालाबों में भी डॉल्फिन मछलियां पहुंच जा रही हैं। कोशी की मार से मूर्छित ग्रामीणों को समझ में नहीं आ रहा कि वह इस विशालकाय प्राणी का करें तो क्या करें। किंकर्त्तव्यविमूढ़ ग्रामीणों के बीच तरह-तरह की टिप्पणियां हो रही हैं। कोई कहता है कि भगीरथ रो रहा है। कोई कहता है - यह अनिष्ट का सूचक है। पिछले दिनों सुपौल के ललितग्राम रेलवे स्टेशन के नजदीक परिवर्तित धारा के किनारे में एक मृत डॉल्फिन पाया गया। आसपास के ग्रामीण उसे देखने के लिए उमड़ पड़े। एक बूढ़ा उसे प्रणाम कर रहा था और कह रहा था- हे भगीरथ माफ करूं। पृथ्वी पर पाप बहुत बढ़ि गेल ये, ताहि सं अहांक संग-संग हम सब कें ई हाल भ गेल अछि।

ज्ञातव्य हो कि पूर्वी बिहार के लोग समुद्र के रास्ते गंगा से होकर कोशी में दाखिल होने वाले डॉल्फिन को भगीरथ कहते हैं। नेपाली लोग इसे गोह कहते हैं। बरसात के दिनों में जब नदी उफान पर होती है, तो इसके करतब देखते ही बनते हैं। ये डॉल्फिन पानी की सतह पर अजीब तरह की क्रीड़ा करते रहते हैं। ऐसा लगता है जैसे पानी में शरारती बच्चों की टोली उतर आयी हो और लुकाछिपी का खेल खेल रहे हों। दूसरी ओर कॉफर तटबंध के सहारे कोशी को पुराने प्रवाह में मोड़ने के बाद परिवर्तित प्रवाह में पानी तेजी से घटने लगा है और जैसे-जैसे पानी की मात्रा में कमी आयेगी वैसे-वैसे भटके डॉल्फिन की समस्या बढ़ती जायेगी। देश के संरक्षित जीवों की सूची में दर्ज और विलुप्ति की आशंका वाले प्राणियों में गिने जाने वाले इन डॉल्फिनों को बचाने के लिए प्रयास होना चाहिए। लेकिन कहीं कोई प्रयास नहीं हो रहा। वैसे भी कोशी इलाके में लाखों लोगों के सामने जान रक्षा की समस्या मुंह बाये खड़ी है, लेकिन उनका सुध लेने वाला कोई नहीं है। जब इंसान का यह हाल है तो अन्य जीवों के बारे में क्या बात की जाय!

5 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

आह

Richa Joshi ने कहा…

बहुत दुखद है। डाल्फिन की सुरक्षा संवेदनाओं के साथ ही संभव है।

दीपक बाबा ने कहा…

छोटे से लेख में आपने विज्ञान, पर्यावरण, आधुनिक त्रासदी, और पुराने संस्कार सभी कुछ दिखा दिए . सहरानिये है. अच्छा लगा नदी और पर्यावरण पर और लिखिए . ... धन्यवाद्

दीपक बाबा ने कहा…

पुरे ब्लॉग पर निगाह डालने के बाद एक और टिपण्णी : आपके ब्लॉग ने मन खुश कर दिया. कभी फुर्सत मैं सभी लेख पडूंगा . खासकर कोसी से सम्बंधित. एक बार और धन्यवाद्. ज्ञानवर्धक लेखमाला के लिए.

रंजीत/ Ranjit ने कहा…

आप सबों का हार्दिक आभार। हमें आपसे ही प्रेरणा मिलती है। रंजीत