रविवार, 15 फ़रवरी 2009

जो वर्षों से गुमनाम है

वह आदमी बहुत उदास है
क्योंकि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ है
वह दुकानदार बेहद परेशान है
ठीक सिनेमा घर के सामने उसकी एक किताब दुकान है
वह जो चौराहे पर बेहाल खड़ा है
शहर का आखिरी ईमानदार है
हमेशा निर्दल ही रहा वह नेता
पार्टियों की माने तो वह बेविचार है
वह पत्रकार आज फिर बेरोजगार है
संपादकों की नजर में वह बड़ा बेवाक है
मुअत्तल होकर बिस्तर पर पड़ा है वह अधिकारी
कहते हैं कि वह एक झक्खी नाम है
सच कहूं तो दोस्तों
एक ही शख्स की ये सारी दास्तान है
जो वर्षों से गुमनाम है

2 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सटीक ....अच्‍छी अभिव्‍यक्ति।

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

जब ऐसहीं उल-जलूल काम करेगा तो रहबे करेगा.