गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

बाढ़ के समय कहां थे नेताजी ?

दहाये हुए देस का दर्द -41
मनोज कुमार गुरमैता, सुपौल
आज भी कोशी-कुसहा के कोप से टूटे लाखों लोग आंसू बहा रहे हैं । उन्हें आज भी अपनों के बेगाने होने का दर्द साल रहा है। उन्हें आज तक पुनर्वास की राशि नहीं मिल पायी है। वे आज भी सपना देखने के बाद उठकर बैठ जाते हैं । धन के साथ-साथ जन खोने वाले लोग आज भी आंखों पोंछ रहे हैं।। इधर, चुनाव क्या आया सबकी असलियत खुलने लगी है। बाढ़ के समय घर में दुबके रहने वाले नेता भी आज की तारीख में बाढ़ पीड़ितों का सच्चा शुभ चिंतक होने का दावा कर रहे है। लेकिन बेअसर ।
हर पार्टी के नेता पीड़ितों के बीच फरियाद लेकर आ रहे हैं। इस आशा के साथ कि पीड़ितों का मत शायद उन्हे मिल जाए ।यह अलग बात है कि पीड़ितों को सबकुछ मालूम है कि किसने विपदा की घड़ी में साथ दिया था और कौन घर में दुबके हुए थे। कौन हवा फायरिंग कर रहे थे और कौन- कौन सरजमीं पर काम। कुछ स्थानों पर नेताओं को विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। पीड़ित यह पूछने से नहीं हिचकते कि बाढ़ के समय कहां थे नेताजी ? बहरहाल, क्या होगा यह तो आने वाले समय में ही पता चल पाएगा लेकिन यह तय माना जा रहा है कि बाढ़ पीड़ितों का मत इस बार यहाँ निर्णायक होगा । प्रभावितों को बातों से रिझाने में लगे नेता फिलहाल मुह की खा रहे हैं। वैसे, यह तय है कि दुख की घड़ी में जिस किसी ने इन लोगों को साथ दिया, उसी को लोग वोट देंगे , लेकिन सवाल यह भी अनुतरित है की साथ दिया ही किसने ?

2 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

sahi kah rahe hain.

अभिषेक मिश्र ने कहा…

इन चुनावों में जनता के सवालों का जवाब देना आसान नहीं होगा. 'साइंस ब्लौगर्स' पर मेरी पोस्ट आपको पसंद आई, अच्छा लगा जान कर.