बिहार में पहले चरण के लिए 16 अप्रैल को मतदान हुआ। राजनेताओं के तमाम लटके-झटके के बाद भी उस दिन बिहार के 54 फीसद मतदाता अपने घरों से नहीं निकले। कम मतदान का प्रतिशत हमेशा सत्ताधारी पार्टी के लिए राहत की बात मानी जाती है, इसलिए बिहार में सत्तारूढ़ राजग के नेताओं ने इसे अपने लिए शुभ संकेत माना। लेकिन इस बात ने बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल यानी राजद के नेताओं के चैनो-अमन छीन ली है। राजद अध्यक्ष बुरी तरह से बेचैन हैं । उन्होंने अपने सिपहसलारों से जमीनी हकीकत पता की, तो मालूम चला कि लोग विकास के मुद्दे को लेकर उन पर और उनकी पार्टी पर विश्वास नहीं कर रहे। नीतीश कुमार से भले ही लोग संतुष्ट नहीं हो, लेकिन उनसे आशान्वित जरूर हैं। सिपहसलारों ने यह भी बताया कि इस बार पार्टी की रीढ़ कहा जाने वाला "एमवाई' समीकरण भी बिखर गया है। अल्पसंख्यक मतदाता तेजी से कांग्रेस की ओर मुखातिब होने लगे हैं और कहीं-कहीं तो वे जदयू उम्मीदवारों को भी वोट दे रहे हैं। सुपौल, पूर्णिया और मधेपुरा में लोग लालू से ज्यादा पप्पू यादव की बात सुन रहे हैं और पप्पू यादव अब कांग्रेसी हो चुके हैं। यानी जो काम साधु से रह गया वह पप्पू पूरा कर रहे हैं।
इन गुप्त लेकिन पुख्ता खबरों से लालू बुरी तरह परेशान हो गये। राजनीति के चतुर लालू प्रसाद जान गये कि अगर अविलंब कांग्रेस को रास्ते से नहीं हटाया गया तो उनकी लुटिया डूब सकती है। उनकी भाषा में कहें तो खोप सहित कबुतरे नमः हो सकता है। इसलिए उन्होंने यूपीए की परवाह किए बगैर तेजी से आकार लेते कांग्रेसी किले में माचिस लगाना शुरू कर दिया। कल तक भाजपा और वरुण गांधी के सहारे मुस्लिम मतदाताओं को मोहने वाले लालू ने अचानक अपने बाइस्कोप का रील बदल डाला और गुजरात, पीलीभीत के बदले बाबरी मस्जिद की तस्वीर घुमाने लगे। भाजपा की जगह कांग्रेस की रील फिट की और बाबरी मस्जिद को ढहाने के लिए उसे जिम्मेदार ठहरा दिया। लेकिन संकट फिर भी कम नहीं हुआ। क्योंकि लालू जानते हैं कि जीतने के बाद यूपीए की छतरी के बिना उनका गुजारा नहीं हो सकता। अगर कांग्रेस हद से ज्यादा नाराज हो गयी, तो संभव है कि वह चुनाव के बाद राजद के बदले जदयू से नाता जोड़ लें और उन्हें दूध की मक्खी की तरह फेंक दे, इसलिए वे दिन में कांग्रेस को मुस्लिम विरोधी बताने लगे और रात को कांग्रेस- नेताओं को फोन कर यूपीए की दुहाई देने लगे। कांग्रेस ने उनके खेल को ताड़ लिया। क्योंकि जब से पप्पू यादव एंडफै मिली ने कांग्रेस का दामन थामा है तबसे कांग्रेस खेमा यह मानने लगा है कि इस बार बिहार में उनकी संख्या पांच तक जरूर पहुंचेगी। कांग्रेस के अंतःपुर में यह भी कहा जाने लगा है कि बिहार में कम-से-कम दस सीटों पर कांग्रेस कड़े मुकाबले में है और अगर ऊपर वाले की कृपा से किसी तरह किसी हवा का सहारा मिल जाये तो चमत्कार भी हो सकता है। लिहाजा कांग्रेसी नेताओं के हेलीकॉप्टर और चार्टर विमान दनादन बिहार की धरती पर लैंड करने लगे। बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के आरोप का जवाब प्रणव मुखर्जी ने दिया और कहा कि लालू यूपीए से अलग हो जायें, अगर वह कांग्रेस पार्टी को गुनहगार मानते हैं तो पांच वर्षों तक सत्ता सुख क्यों लेते रहे? उस दौरान उन्हें यह सब बातें याद क्यों नहीं आयीं। वे आज भी मंत्रिमंडल में क्यों बने हुए हैं ? वगैरह-वगैरह...
दरअसल सिद्वांतविहीन हो चुकी भारतीय राजनीति का यह पराकाष्ठा है। जो दल सरकार में साथी हैं वे चुनाव में विरोधी हैं । यानी चुनाव से पहले दुश्मन और चुनाव के बाद दोस्त। वह भी जनता की आंत का टेस्ट किए बगैर जैसे भी हो जनता हजम करे, उन्हें करना ही पड़ेगा । बिहार में कांग्रेस और राजद अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। जब कभी चुनाव के बाद सरकार बनाने की या फिर भाजपा की बात होती है, दोनों एक-दूसरे को दोस्त बताने लगते हैं। लेकिन जनता से वोट लेने के लिए चुनावी सभा में जाते हैं, तो एक-दूसरे को गलियाने लगते हैं। मोहव्वत और युद्व दोनों साथ-साथ। जाहिर है ये अजीबोगरीब रिश्ते कदम-कदम पर एक-दूसरे के रास्ते काटते हैं और तर्कों से परे हैं, इसलिए दोनों दलों के नेता एक ही दिन में दस तरह की बात करते हैं। अगर लालू, रामविलास और बिहार के कांग्रेसी नेताओं के पिछले दस दिनों के बयान को एक साथ रखकर कोई विदेशी पत्रकार कुछ निष्कर्ष निकालना चाहे तो यकीन मानिये वे पागलखाने चले जायेंगे, लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पायेंगे। शहरी जीवन में तो ऐसा दृश्य देखने को नहीं मिलता, हां गांवों में जिसने सांप और छुछंदर को लड़ते देखा हो, वे इसे आसानी से समझ सक ते हैं।
इन गुप्त लेकिन पुख्ता खबरों से लालू बुरी तरह परेशान हो गये। राजनीति के चतुर लालू प्रसाद जान गये कि अगर अविलंब कांग्रेस को रास्ते से नहीं हटाया गया तो उनकी लुटिया डूब सकती है। उनकी भाषा में कहें तो खोप सहित कबुतरे नमः हो सकता है। इसलिए उन्होंने यूपीए की परवाह किए बगैर तेजी से आकार लेते कांग्रेसी किले में माचिस लगाना शुरू कर दिया। कल तक भाजपा और वरुण गांधी के सहारे मुस्लिम मतदाताओं को मोहने वाले लालू ने अचानक अपने बाइस्कोप का रील बदल डाला और गुजरात, पीलीभीत के बदले बाबरी मस्जिद की तस्वीर घुमाने लगे। भाजपा की जगह कांग्रेस की रील फिट की और बाबरी मस्जिद को ढहाने के लिए उसे जिम्मेदार ठहरा दिया। लेकिन संकट फिर भी कम नहीं हुआ। क्योंकि लालू जानते हैं कि जीतने के बाद यूपीए की छतरी के बिना उनका गुजारा नहीं हो सकता। अगर कांग्रेस हद से ज्यादा नाराज हो गयी, तो संभव है कि वह चुनाव के बाद राजद के बदले जदयू से नाता जोड़ लें और उन्हें दूध की मक्खी की तरह फेंक दे, इसलिए वे दिन में कांग्रेस को मुस्लिम विरोधी बताने लगे और रात को कांग्रेस- नेताओं को फोन कर यूपीए की दुहाई देने लगे। कांग्रेस ने उनके खेल को ताड़ लिया। क्योंकि जब से पप्पू यादव एंडफै मिली ने कांग्रेस का दामन थामा है तबसे कांग्रेस खेमा यह मानने लगा है कि इस बार बिहार में उनकी संख्या पांच तक जरूर पहुंचेगी। कांग्रेस के अंतःपुर में यह भी कहा जाने लगा है कि बिहार में कम-से-कम दस सीटों पर कांग्रेस कड़े मुकाबले में है और अगर ऊपर वाले की कृपा से किसी तरह किसी हवा का सहारा मिल जाये तो चमत्कार भी हो सकता है। लिहाजा कांग्रेसी नेताओं के हेलीकॉप्टर और चार्टर विमान दनादन बिहार की धरती पर लैंड करने लगे। बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के आरोप का जवाब प्रणव मुखर्जी ने दिया और कहा कि लालू यूपीए से अलग हो जायें, अगर वह कांग्रेस पार्टी को गुनहगार मानते हैं तो पांच वर्षों तक सत्ता सुख क्यों लेते रहे? उस दौरान उन्हें यह सब बातें याद क्यों नहीं आयीं। वे आज भी मंत्रिमंडल में क्यों बने हुए हैं ? वगैरह-वगैरह...
दरअसल सिद्वांतविहीन हो चुकी भारतीय राजनीति का यह पराकाष्ठा है। जो दल सरकार में साथी हैं वे चुनाव में विरोधी हैं । यानी चुनाव से पहले दुश्मन और चुनाव के बाद दोस्त। वह भी जनता की आंत का टेस्ट किए बगैर जैसे भी हो जनता हजम करे, उन्हें करना ही पड़ेगा । बिहार में कांग्रेस और राजद अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। जब कभी चुनाव के बाद सरकार बनाने की या फिर भाजपा की बात होती है, दोनों एक-दूसरे को दोस्त बताने लगते हैं। लेकिन जनता से वोट लेने के लिए चुनावी सभा में जाते हैं, तो एक-दूसरे को गलियाने लगते हैं। मोहव्वत और युद्व दोनों साथ-साथ। जाहिर है ये अजीबोगरीब रिश्ते कदम-कदम पर एक-दूसरे के रास्ते काटते हैं और तर्कों से परे हैं, इसलिए दोनों दलों के नेता एक ही दिन में दस तरह की बात करते हैं। अगर लालू, रामविलास और बिहार के कांग्रेसी नेताओं के पिछले दस दिनों के बयान को एक साथ रखकर कोई विदेशी पत्रकार कुछ निष्कर्ष निकालना चाहे तो यकीन मानिये वे पागलखाने चले जायेंगे, लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पायेंगे। शहरी जीवन में तो ऐसा दृश्य देखने को नहीं मिलता, हां गांवों में जिसने सांप और छुछंदर को लड़ते देखा हो, वे इसे आसानी से समझ सक ते हैं।
3 टिप्पणियां:
सही कहा आपने.........लालो जी और सारे नेताओं को सत्ता का स्वाद लग चूका है...और इसकी खातिस वो सब कुछ कर सकते हैं
अच्छा विश्लेषण किया..
बिल्कुल सही ..
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