ये प्यार, ये भावना, ये भक्ति, ये आसक्ति, ये नारे, ये तमगे, ये ताली और ये राष्ट्रभक्ति ... अब इनके किस काम के, क्योंकि अब ये भीड़ का हिस्सा नहीं, बल्कि सितारे हैं आसमान के। जी हां, मैं जमीन से आसमां पर पहुंचे देश के क्रिकेट सितारे महेंद्र सिंह धौनी और हरभजन सिंह प्लाहा की बात कर रहा हूं। देश ने इन्हें सितारे बनाया और बदले में इन्होंने बीच चौराहे पर 111 करोड़ जनता के सम्मान को नीलाम कर दिया। इनके इस व्यवहार से हम दुत्कारे हुए प्रेमिका की तरह आंसू बहा रहे हैं। मीडिया में दो कॉलम की खबर में इनके व्यवहार की आलोचना हो रही है और पूरे पेज में आइपीएल के बहाने इनकी बड़ी-बड़ी तस्वीरें भी छापी जा रही हैं। दोनों बातें साथ-साथ। फिर भी हम रोये जा रहे हैं। गालिब ने ठीक ही कहा है, ये इश्क बड़ा जालिम, बुझाये न बुझे।
खैर मीडिया का अपना फिलास्फी (न्यूज इज न्यूज) है, इसलिए उनके इसे विरोधाभासी आचरण पर कुछ कहने की जरूरत नहीं । लेकिन विस्मय तब होता है जब हर पल क्रिकेट में डूबे रहने वाले लोग भी धौनी और हरभजन के व्यवहार पर आंसू बहाते दिखते हैं। पिछले तीन दिनों में मैंने अपने कई दोस्तों को इस बात से काफी आहत पाया। उनकी स्थिति बेवफाई के शिकार आशिक की तरह थी, उसका दिल कुछ इस तरह रो रहा था- अच्छा सिला दिया तुने मेरे प्यार का... । ऐसे दोस्तों और देशवासियों से मैं इस मौके पर कुछ कहना चाहता हूं। आखिर क्यों आप धौनी और हरभजन के आचरण को दिल पर ले रहे हैं। उन्होंने कुछ भी अप्राकृतिक नहीं किया है। उन्होंने वही व्यवहार किया है, जो आज के दौर में उन्हें करना चाहिए और जो सफलता की सीढ़ी चढ़ने के बाद आज हर भारतीय कर रहे हैं। आखिर आप इस मुगालते में क्यों हैं कि वे आपकी भावना का ख्याल रखकर फैसला करेंगे कि उन्हें कब विज्ञापन की शूटिंग करनी है और कब टीवी प्रोग्राम में ठुमका लगाने जाने है और किस तमगा को लेना है और किसको नहीं। दोस्तों, भीड़ की भावना का ख्याल तबतक ही रखा जाता है जबतक उनकी जरूरत हो। सदियों से यही होते आया है, लेकिन भीड़ है कि कुछ समझती ही नहीं। कुछ सीखती ही नहीं। इतने राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं को देख लेने के बाद भी आपकी समझ में यह बात नहीं आयी कि जिसे आप देश और जनता कहते हैं वे उनके लिए सिर्फ शीर्ष पर पहुंचने की सीढ़ी मात्र है। नेता सिर्फ वोट लेने तक जनता की भावना का ख्याल रखते हैं और क्रिकेटर, अभिनेता वगैरह, वगैरह, सितारे बनने से पहले तक।
हरभजन के बारे में मैं नहीं जानता, लेकिन धौनी को काफी निकट से जानता हूं। पुरस्कार की बात तो छोड़िए, 2003 तक यह महाशय एक खबर छपवाने के लिए रांची के अखबारों के दफ्तरों में घंटों संवाददाताओं की चिरोरी करते रहते थे। बात बहुत सीधी है। तब ये स्टार नहीं, बल्कि बैट लेकर इधर-उधर बौखने वाले एक गुमनाम खिलाड़ी थे। आप ने उन्हें पलकों पर बिठाया और वे रातों-रात छोकरे से सितारे बन गये। अब जब वे आसमां के वाशिंदे हो गये हैं, तो उन्हें राष्ट्रभक्ति की पाठ क्यों याद दिले रहे है । उन्हें देश के बारे में क्यों बता रहे हैं। आसमां वालों के लिए जैसे भारत वैसे कोई अन्य देश। देश क्या है उनके लिए जमीन का एक टुकड़ा के सिवाय ! आप उन्हें विज्ञापन छोड़कर कौड़ी के दाम वाले पुरस्कार लेने क्यों कह रहे हैं ? आसमां में रहने के लिए पैसे की जरूरत होती है और पैसा विज्ञापन से आता है न कि पद्मश्री, पद्म भूषण जैसे तमगों से। आप ही बताइये इन तमगों की कीमत ही क्या है बाजार में। जो चीज बाजार में बेकार है उसे आप सितारे के मत्थे क्यों मढ़ना चाहते हैं। क्या आपको नहीं पता कि क्रिकेट भारत का सबसे बड़ा बाजार बन चुका है और हमारे क्रिकेटर इसके सबसे बड़े दुकानदार। और हम सभी बजारवादी युग में जी रहे हैं , खा रहे हैं, रो रहे हैं, सो रहे हैं और मर रहे हैं ... ? इसके बाद भी अगर आपका जी हल्का नहीं हो रहा है, तो क्या कहा जाये। सच में , यह एकतरफा इश्क बहुत खतरनाक चीज होती है।
खैर मीडिया का अपना फिलास्फी (न्यूज इज न्यूज) है, इसलिए उनके इसे विरोधाभासी आचरण पर कुछ कहने की जरूरत नहीं । लेकिन विस्मय तब होता है जब हर पल क्रिकेट में डूबे रहने वाले लोग भी धौनी और हरभजन के व्यवहार पर आंसू बहाते दिखते हैं। पिछले तीन दिनों में मैंने अपने कई दोस्तों को इस बात से काफी आहत पाया। उनकी स्थिति बेवफाई के शिकार आशिक की तरह थी, उसका दिल कुछ इस तरह रो रहा था- अच्छा सिला दिया तुने मेरे प्यार का... । ऐसे दोस्तों और देशवासियों से मैं इस मौके पर कुछ कहना चाहता हूं। आखिर क्यों आप धौनी और हरभजन के आचरण को दिल पर ले रहे हैं। उन्होंने कुछ भी अप्राकृतिक नहीं किया है। उन्होंने वही व्यवहार किया है, जो आज के दौर में उन्हें करना चाहिए और जो सफलता की सीढ़ी चढ़ने के बाद आज हर भारतीय कर रहे हैं। आखिर आप इस मुगालते में क्यों हैं कि वे आपकी भावना का ख्याल रखकर फैसला करेंगे कि उन्हें कब विज्ञापन की शूटिंग करनी है और कब टीवी प्रोग्राम में ठुमका लगाने जाने है और किस तमगा को लेना है और किसको नहीं। दोस्तों, भीड़ की भावना का ख्याल तबतक ही रखा जाता है जबतक उनकी जरूरत हो। सदियों से यही होते आया है, लेकिन भीड़ है कि कुछ समझती ही नहीं। कुछ सीखती ही नहीं। इतने राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं को देख लेने के बाद भी आपकी समझ में यह बात नहीं आयी कि जिसे आप देश और जनता कहते हैं वे उनके लिए सिर्फ शीर्ष पर पहुंचने की सीढ़ी मात्र है। नेता सिर्फ वोट लेने तक जनता की भावना का ख्याल रखते हैं और क्रिकेटर, अभिनेता वगैरह, वगैरह, सितारे बनने से पहले तक।
हरभजन के बारे में मैं नहीं जानता, लेकिन धौनी को काफी निकट से जानता हूं। पुरस्कार की बात तो छोड़िए, 2003 तक यह महाशय एक खबर छपवाने के लिए रांची के अखबारों के दफ्तरों में घंटों संवाददाताओं की चिरोरी करते रहते थे। बात बहुत सीधी है। तब ये स्टार नहीं, बल्कि बैट लेकर इधर-उधर बौखने वाले एक गुमनाम खिलाड़ी थे। आप ने उन्हें पलकों पर बिठाया और वे रातों-रात छोकरे से सितारे बन गये। अब जब वे आसमां के वाशिंदे हो गये हैं, तो उन्हें राष्ट्रभक्ति की पाठ क्यों याद दिले रहे है । उन्हें देश के बारे में क्यों बता रहे हैं। आसमां वालों के लिए जैसे भारत वैसे कोई अन्य देश। देश क्या है उनके लिए जमीन का एक टुकड़ा के सिवाय ! आप उन्हें विज्ञापन छोड़कर कौड़ी के दाम वाले पुरस्कार लेने क्यों कह रहे हैं ? आसमां में रहने के लिए पैसे की जरूरत होती है और पैसा विज्ञापन से आता है न कि पद्मश्री, पद्म भूषण जैसे तमगों से। आप ही बताइये इन तमगों की कीमत ही क्या है बाजार में। जो चीज बाजार में बेकार है उसे आप सितारे के मत्थे क्यों मढ़ना चाहते हैं। क्या आपको नहीं पता कि क्रिकेट भारत का सबसे बड़ा बाजार बन चुका है और हमारे क्रिकेटर इसके सबसे बड़े दुकानदार। और हम सभी बजारवादी युग में जी रहे हैं , खा रहे हैं, रो रहे हैं, सो रहे हैं और मर रहे हैं ... ? इसके बाद भी अगर आपका जी हल्का नहीं हो रहा है, तो क्या कहा जाये। सच में , यह एकतरफा इश्क बहुत खतरनाक चीज होती है।
2 टिप्पणियां:
किसी को सम्मान इसलिए दिया जाता है की उसे प्रोत्साहन मिले. अब वो पहले से ही प्रोत्साहित और मदमस्त हैं तो उन्हें सम्मानित कर के पहले जिनको सम्मान दिया गया उनको लज्जित करना है.
अब तो लगता है सम्मान को ही सम्मानित करने की कोशिश हो रही है और यह उसी का नतीजा है.
मेरा भी मानना है उन्हें आना चाहिए था.............किसी को भी राष्ट्र की किसी भी चीज का अनादर करने का हक नहीं है.............मीडिया की बात करना बेकार है...........बिका हुवा मीडिया और करेगा भी क्या
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