अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति और अपने समय के प्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक अब्राहम लिंकन ने कभी कहा था, ' आप कुछ लोगों को हमेशा उल्लू बना सकते हैं, सभी लोगों को कुछ समय तक बेवकूफ बना सकते हैं, लेकिन आप हर किसी को हमेशा मूर्ख नहीं बना सकते।' इस संसदीय चुनाव में लिंकन की बात सच साबित हो रही है। कभी समाजिक न्याय तो कभी दलित आंदोलन के नाम पर जनता को उल्लू बनाने वाले बिहारी राजनेताओं को जनता इस बार जगह-जगह ठेंगा दिखा रही है। दो दिन पहले इसका एक नमूना झारखंड के जमशेदपुर शहर में देखने को मिला। दो दिन पहले बिहार के क्षत्रप कहलाने वाले वेटरेन नेता रामविलास पासवान की यहां एक चुनावी सभा आयोजित थी। पासवान पूरे लाव-लश्कर के साथ जमशेदपुर आये। लेकिन हेलीकॉप्टर से उतरकर जैसे ही उन्होंने सभा-स्थल का रुख किया, उनके होश फाक्ता हो गये। मंच पर पहुंचने के बाद तो उनका चेहरा देखते बनते था। ऐसा लगता था कि जैसे किसी ने उनके पैर के नीचे से जमीन खींच ली हो।
दरअसल, रामविलास पासवान की उस सभा में सौ लोग भी मौजूद नहीं थे। जो दस-बीस लोग थे भी वे भी मैदान में इधर-उधर बिखरे हुए थे । मंच तैयार था, माइक तैयार था, रामविलास पासवान भाषण पढ़ने के लिए तैयार थे, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था। आखिरकार रामविलास पासवान ने बोलना शुरू किया, लेकिन सामने खाली मैदान को देखकर उनका बचा-खुचा धैर्य भी खत्म हो गया। उन्होंने तीन मिनट ही अपना भाषण पूरा कर दिया। अजी ! पूरा क्या कहिए , आधा-अधूरा छोड़ दिया और तमतमाये चेहरे के साथ मंच से नीचे उतर गये। मंच पर विराजमान उनकी पाटी के स्थानीय उम्मीदवार विनती करते रह गये , लेकिन रामविलास पासवान साहस नहीं बटोर पाये। फौरन हेलीकॉप्टर पर सवार हुए और आकाश की सैर पर निकल गये।
तो यह है खुद को जमीनी नेता कहने वाले बिहारी क्षत्रपों की लोकप्रियता की असलियत, जो खुद को राष्ट्रीय स्तर के नेता बताते हैं और आजकल देश के प्रधानमंत्री कौन हो, इसका फैसला करने का दावा करते नहीं थकते। सच में नेताओं के अवसरवादी आचरण और उनकी स्वकेंद्रित राजनीति से बिहार के लोग तंग आ गये हैं। तीन साल पहले लालू का सख्त विरोध करने वाले और उनके साथ कभी भी चुनावी व सत्ताई समझौता नहीं करने का कसम खाने वाले रामविलास पासवान से लोगों का मोहभंग हो गया है और मतदाता लोजपा एवं राजद की इस अवसरवादी दोस्ती का मतलब नहीं समझ पा रहे हैं।
दरअसल, रामविलास पासवान की उस सभा में सौ लोग भी मौजूद नहीं थे। जो दस-बीस लोग थे भी वे भी मैदान में इधर-उधर बिखरे हुए थे । मंच तैयार था, माइक तैयार था, रामविलास पासवान भाषण पढ़ने के लिए तैयार थे, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था। आखिरकार रामविलास पासवान ने बोलना शुरू किया, लेकिन सामने खाली मैदान को देखकर उनका बचा-खुचा धैर्य भी खत्म हो गया। उन्होंने तीन मिनट ही अपना भाषण पूरा कर दिया। अजी ! पूरा क्या कहिए , आधा-अधूरा छोड़ दिया और तमतमाये चेहरे के साथ मंच से नीचे उतर गये। मंच पर विराजमान उनकी पाटी के स्थानीय उम्मीदवार विनती करते रह गये , लेकिन रामविलास पासवान साहस नहीं बटोर पाये। फौरन हेलीकॉप्टर पर सवार हुए और आकाश की सैर पर निकल गये।
तो यह है खुद को जमीनी नेता कहने वाले बिहारी क्षत्रपों की लोकप्रियता की असलियत, जो खुद को राष्ट्रीय स्तर के नेता बताते हैं और आजकल देश के प्रधानमंत्री कौन हो, इसका फैसला करने का दावा करते नहीं थकते। सच में नेताओं के अवसरवादी आचरण और उनकी स्वकेंद्रित राजनीति से बिहार के लोग तंग आ गये हैं। तीन साल पहले लालू का सख्त विरोध करने वाले और उनके साथ कभी भी चुनावी व सत्ताई समझौता नहीं करने का कसम खाने वाले रामविलास पासवान से लोगों का मोहभंग हो गया है और मतदाता लोजपा एवं राजद की इस अवसरवादी दोस्ती का मतलब नहीं समझ पा रहे हैं।
2 टिप्पणियां:
फोटो देख के तो ऐसा लग रहा है जैसे झमकोइया मोरे लाल वाले हों.
गले में ढोल तो लटका ही लिया है अब वही बजायेगें.
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