सोमवार, 27 अप्रैल 2009

हमसे नहीं कहिए

हमसे नहीं कहिए कि हम कुछ नहीं करते
हम देखते हैं
एक बार , दो बार, बार-बार
हमारी टेन+टू+थ्री++ ... की डिग्रियों को
हम पागलों की तरह
ढूंढ़ते रहते हैं इश्तहारों के कतरन
दीमकों की तरह
चाटते रहते हैं किताबों के पन्ने
और नजर टिकाये रखते हैं
मोहल्ले की तमाम जवान होती लड़कियों पर
जो पता नहीं क्यों
कभी लाइन देती हैं और कभी काट लेती हैं
मालूम नहीं क्यों
वे हमसे ज्यादा हमारे निठल्लेपन को चाहती हैं
हम लिखते हैं रोज उन पर कविताएं
घोर निठल्लेपन में भी हम रचते हैं कविता
प्यार की, बेरोजगार की और भ्रष्टाचार की
हमसे मत कहिए कि हम कुछ नहीं करते
हम बहुत काम करते हैं
शाम होते-होते, हम इतने थक जाते हैं कि
कभी-कभी आइने के सामने सत्तर के लगते हैं
हम करते हैं बहस
देश, दुनियां और भ्रष्टाचार पर
ताकि बाप के कानों तक पहुंचे
मां के सामने खूब गलियाते हैं ईमानदारी को
सड़क किनारे आखिरी चाय दुकान के अंतिम कोने में
एक कप चाय के बहाने
हम घंटों पलटते है अखबारों के पन्ने
हम भी डूबना चाहते हैं
सचिन- सेहवाग-धौनी, राखी-प्रियंका- रानी... के बियरों में
लालू, आडवाणी, मनमोहन, सोनिया, करात के नारों में
हबाव, शवाब और कसाब में
बिल्कुल समाचार-पत्रों की तरह
लेकिन हर उन्माद हमें बस छूकर निकल जाती है
हर खबर हमें अकेला कर जाती है
हर नशा हमें संजिदा कर जाता है
पराये एहसास की तरह
हमसे मत कहिए कि हम कुछ नहीं करते
हम चाहते हैं कि फाड़ दे उन डिग्रियों को
और शामिल हो जायें किसी झूठे जेहाद में
ताकि लड़कियां हमें भी देखें और मुस्कुरायें
बच्चे हमारी अंगुलियां पकड़कर बागीचे में घूमें
और हम भी थोड़ा-सा इंसान बन जायें
' ठंडा-ठंडा, कूल-कूल '
 
 

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